मंगलवार, 1 दिसंबर 2009

रात फिर,
समन्दर से हुई बात...
वो कहता रहा,
मीठी हो...
शीतल हो....

आखिर ,
क्यूँ मिलती हो मुझमे?
क्यूँ न ऐसा हो,
आज़ाद बहो,
और तुम,
खुश भी रहो....


क्या समझाऊं उसे?
आज़ाद बहूँ??
ओर खुश भी रहूँ??
तब जबकि,
मेरा मिलना उससे,
मेरी आदत नहीं,
मेरी नियति है....

मेरा मिलना उससे तय है,
सदियो से,
युगों युगों से.....

न बहूँ अगर,
रुक जाऊ जो मैं....
मर जाउंगी....
तलछट में पड़ी,
मिट्टी ही बस रह जाउंगी.....
तो इसलिए,
नदी को समन्दर में समाना ही होगा....
मेरा होना,
मेरे बहने में ही है,
ओर यही मेरे लिए,
सुखकर है, हितकर है
और हाँ,
यही नियति भी है......


*************

29 टिप्‍पणियां:

  1. नदी अगर बहना छोड़ दे तो ...
    एक जगह रुक जाने वाला जल कीचड़ हो जाता है ...
    समंदर तक पहुंचा ही नदी की नियति है ...!!

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  2. बहना जिंदगी है , जीवन मीठा भी है खारा भी

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  3. बस ध्यान दिलाना चाहता हूँ पूरी विनम्रता से... मैं कोई पारखी या विशेषज्ञ नहीं हूँ...
    तलछट में पड़ी,
    मिट्टी ही बस रह जाउंगी.....

    ... इसे और बेहतर बना सकती हैं...

    नई सुबह होगी,
    जब नया सूरज निकलेगा.

    मुश्किलें हट जायेंगी,
    जब वक़त चाल बदलेगा.

    बनवास तो भगवान् जी को भी मिला था न.......
    ... क्या एडिट की जरुरत नहीं लग रही ?...

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  4. jeevan chalne ka naam , chalte raho subah -o-sham..........ek prerak rachna.

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  5. बहना तो होगा ही क्योकि फिर स्थिर हो जाना होगा और फिर जीवन का अर्थ ही बदल जायेगा.

    बहुत सुन्दर

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  6. क्यूँ मिलती हो मुझमे?
    आज़ाद बहो,
    ओर खुश भी रहो....
    क्या समझाउं उसे?
    आज़ाद बहूँ??
    ओर खुश भी रहूँ??
    बहुत कुछ कह दिया इन पंक्तियों ने....सुन्दर अभिव्यक्ति

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  7. VAAH .. KAMAAL KI ABHIVYAKTI .... SACH MEIN NADI KI TO YE REET HAI SAAGER MEIN HI USKO MILNA HAI ... AATMA AUR PARMAATMA KA BHI TO VAHI NIYAM HAI ... LAJAWAAB ABHIVYAKTI ...

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  8. अगर सागर साहब की पारखी नजर कुछ बेहतरी की अपेक्षा करती है..तो उनकी बात पर एक बार सोचने की गुंजाइश बनती है..
    बाकी बाद मे....

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  9. डिंपल जी ,
    समंदर और नदी का मिलना दोनों की नियती तो है ही , सार्थकता भी है .

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  10. सुंदर कविता है.
    ज्यादा भाव पकड़ में नहीं आ रहे फिर भी लगता है कि जो नियत है उसी के प्रति आग्रह भी और प्रश्न भी.

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  11. Kitna accha likhti hai aap!.Dimple, You have great potential. I will be looking forward to read your next poem.

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  12. नदी ने राज़ खोला
    पता चला
    गालों के गढ़ों में था
    वो नाम छुपा ...

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  13. कही -कहीं भावानुसार पंक्तियां नहीं
    बन पाई हैं , जैसे ------
    इस प्रसंग में ... '' तलछट में पड़ी,
    मिट्टी ही बस रह जाउंगी..... '' आदि ...
    ऐसा होने पर कविता के प्रवाह में बाधा आ
    रही है ...
    बाकी कविता मुझे बड़ी अच्छी लगी ...

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  14. क्यूँ मिलती हो मुझमे?
    आज़ाद बहो,
    ओर खुश भी रहो....
    क्या समझाउं उसे?
    आज़ाद बहूँ??
    ओर खुश भी रहूँ??
    मन को छू गयी ये पंक्ति
    बधाई

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  15. मेरा होना,
    मेरे बहने में ही है,
    ओर यही मेरे लिए,
    सुखकर है, हितकर है
    और हाँ,
    यही नियती भी है......

    नदी के बहाव की तरह बही दिल में यह कविता बहुत सुन्दर भाव

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  16. राज जी ये समंदर मुबारक आपको ......यूँ ही मीठी,शीतल नमकीन बनती रहिये ....आज़ाद रहिये .......!!

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  17. मेरा होना,
    मेरे बहने में ही है,

    नदी की यही नियति ही तो उसे गतिमय बनाती है..जिंदगी भरती है उसकी रगों मे..और यह नदी के जीवट इरादों का ही नतीजा होता है कि कभी-न-कभी अपने समंदर को पा लेती है..और पाती है तो ऐसा..कि फिर कभी और कुछ पाने की जरूरत नही रह जाती है..विछोह का डर नही..यही नदी की किस्मत है..
    ...और समंदर..उसका क्या..जिसके हिस्से मे दुनिया भर का सारा इंतजार लिखा होता है..जो कहीं जा भी नही सकता...किसी दर पे...बस अपनी गहराइयों मे डूबे रह कर अनंतकाल तक प्रतीक्षा ही कर सकता है..या ज्यादा बेसब्र होने पर साहिल की देहरी पर अपना सिर पटकता रहता है..बस..किनारे के पत्थरों को शायद पता रहता होगा उसका दर्द...ऐसा इंतजार भी खुदा किसी की किस्मत मे न लिखे...
    (अनुराग सर की लैन्ग्वेज मे बोले तो -ख्वामखयाली का असाइनमेंट..) :-)

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  18. हाँ कुछ वर्तनीगत कमियाँ की तरफ़ आप ध्यान दे सकते हैं..

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  19. बनवास तो भगवान् जी को भी मिला था न.......
    sahi baat hai..
    achi lagi aapki rachna

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  20. मेरा मिलना उससे तय है,
    सदियो से,
    युगों युगों से.....

    न बहूँ अगर,
    रुक जाऊ जो मैं....
    मर जाउंगी....
    तलछट में पड़ी,
    मिट्टी ही बस रह जाउंगी.....
    तो इसलिए,
    नदी को समन्दर में समाना ही होगा....
    मेरा होना,
    मेरे बहने में ही है,
    ओर यही मेरे लिए,
    सुखकर है, हितकर है
    और हाँ,
    यही नियती भी है......

    ****************

    नई सुबह होगी,
    जब नया सूरज निकलेगा.

    मुश्किलें हट जायेंगी,
    जब वक़त चाल बदलेगा.
    बनवास तो भगवान् जी को भी मिला था न........

    अत्यंत भावपूर्ण

    -Sulabh

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  21. आज आपकी कविता ने ये सवाल मन में जगाया कि आखिर मीठी नदी जाकर खारे सागर से क्यूँ मिल जाती है...अगर कोई जवाब हो तो बताएं...

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  22. ओम साहब ने सही और मार्के का सवाल उठाया...अपनी प्रतिभा के मुताबिक...
    मेरा अंदाजा तो यह है कि किसी भी मीठी नदी से सागर का खारापन नही देखा जाता..और उसकी जिंदगी के खारेपन को दूर करने के लिये खुद को कुर्बान कर देती है..मगर इतनी नदियों की कुर्बानी भी सागर के खारेपन को खत्म नही कर पाती है..है ना..
    ..खैर दूसरों के खयाल जुदा भी हो सकते हैं....

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  23. खारा नहीं बदलता तो न सही आप यूँ ही मिठास घोलती रहिये - शुभकामनाएं.

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  24. Aap janti hain? aap bahut accha likhti hai aapki kavitaon main ek apna sa 'Bimb' dikhta hai.Mujhe apki 'Ret ka ghar' wali kavita Sarvadhik priya hai. Ye nahi kahoonga ki aur koi kum pasand hain, parantu aapki Machli wali kavita main 'Dariya ke paksh' ko ujagar na karna man main ek akulahat aur bechani utpann kar gaya.
    Accha likhne ke liye Badhai evm,Aashervaad.
    -Santosh.

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