शनिवार, 4 अगस्त 2012

july 20,2012

मैम को लगता है कि अगर क्लास रूम बंद है तो जरूर टीचर पढ़ा नही रहे होंगे..और तमाम नियमों विनियमों के साथ एक नियम ये भी है कि कलास रूम का दरवाज़ा बंद नहीं होगा..मैम का कहना है "बंद दरवाज़े हमेशा शक पैदा करते है."दूसरी मंजिल की सीढियां खत्म होते ही पहला कमरा मेरा था.मुझे सारा दिन की आवाजों से परेशानी होती और मेरे "बेस्ट बोवायज़" का ध्यान भी हर आहट पर रहता..मैं कभी कभी दरवाज़ा बंद कर लेती और मैम भी मेरी क्लास में आए बिना लौट जाते..

ऎसी ही एक सुबह..अभी मैं बोर्ड पर थौर्ट लिख रही थी "रिवार्ड ऑफ़ गुड वर्क इज मोर वर्क"..दरवाज़े पर हल्की सी थाप पर कनवर ने फटाफट दरवाज़ा खोल दिया...सामने हमारी फ्लोर कोआरडीनेट एक ५-६ साल की लड़की का हाथ थामे खड़ी थी..चेहरे पर चिर- परिचित मुस्कान चिपकाये अंदर आते-आते  वह बोलती गयी...नई लड़की आयी है...एक-दो दिन अपनी कलास में बैठा लो..फिर बता देना इसे कौन सी कलास में बैठाना है..वैसे भी आपकी कलास में कोई लडकी नहीं है...मेरे बेस्ट बोवायज़ पर नजर डालते हुए बोली "आपके बन्दर भी शायद इंसान बन जाये.."..बिना मुझसे कोई जवाब सुने अपनी पंजाबी जूती की चीं-चीं करती हुई वह बाहर चली गयी..

मैं जानती थी कि वह बिना किसी जाँच पड़ताल के किसी होशियार बच्चे को मेरी क्लास में कभी नहीं भेजेंगी...वह जान चुकी होगी कि लड़की कैसी है..किरन से कह कर लैंगुएज लैब से कुर्सी मेज़ मंगवा कर उसे बैठाया..नाम पूछा..नहीं बोली..किताबें पूछी..नहीं बोली...उसका रंग गोरा ज्यादा सफेद सा.. लाल किनारों वाली भूरी ऑंखें..होंट गहरे लाल...उसे नोटबुक पर बोर्ड पर लिखा उतारने को कहा..उससे नहीं हुआ...बुक पकड़ कर उसे अपने पास बुलाया..गले से लगाया..गाल थपथपायी..प्यार किया और पढने को कहा..उसने एक ही लैटर पढ़ा..सी और वो भी ई को..मैं जल्दी से चीजों से उक्ताती नहीं..मैंने कहा कोई बात नहीं काउंटिंग लिखो..उसने एक से बीस तक लिखी..१६,१७,१८,१९,२० उलटे लिखे..मैंने फिर कुछ सवाल पूछे वह नहीं बोली..मैंने कहा..अच्छा ये बताओ जब मम्मा आवाज़ देते है कि इधर आओ तो क्या कहती हो...बस उसी एक वक़्त उसके चेहरे पर हलचल हुई आँखे और लाल हुई पर वह बोली नही..तभी फ़ूड बैल हो गयी..मैंने पीठ थपथपायी.गाल पर प्यार किया और कहा..जाओ,खाना खा लो..पर वह तो क्लास में खाली हाथ आयी थी..मैंने पूछा खाना..? अबकी वह बोली..
मेरे भाई पास...
कहाँ है वो?
पता नहीं..
कौन सी क्लास?
पता नही..
उफ्फ्फ्फ़..फिफ्टीन मिनट की ब्रेक में अब उसे भी खोजो..
२-३ क्लासिज़ में जाने के बाद एक न्यू ऐडमिशन मिला.रोता हुआ...
तुम्हारी बहन है कोई?
उसने रोते-रोते हाँ में सर हिलाया..
खाना लाये हो?
उसने एक कला लिफाफा मेरे आगे कर दिया..जिसमे चार कच्ची रोटीयां अखबार में लिपटी थी..और अचार..
मैंने लिफाफा उठाया और मैम के पास ले गयी..
मैम ,क्या ये खाना खाया जा सकता है?
उन्होंने पूछा..
किसका है ?
न्यू एडमिशन का  ..
ओहो..कैसी है वह लड़की..?
मैम, मेरी कलास में नहीं कर सकती..उसे सारा दिन अकेली भी काम करवा लूँ तो भी नहीं करेगी..
नहीं चलेगी उसे के जी में भेज दो..
सुंदर प्यारी बच्ची होने के बावजूद में उससे पीछा छुड़ाना चाहती थी..
मैंने फिर पूछा..
खाने का क्या करूँ?
मैम कुछ सोचते हुए रुकते हुए बोले..
खाने के लिए तो बोल देते है..आज तो यही खाना दे दो..पर वैसे मुझे लगता नहीं कोई बात बने क्यूंकि  इन बच्चों की सारी ज़िम्मेदारी हमारी अकेडमी की है..किसी ने रहने भर की जगह दी है..कोई डाक्टर है ..अब इससे ज्यादा वह नही कर  सकते की घर में रहने को एक कोना दे दें ...माँ-बाप नहीं है..अनाथ है..
और कोई भी बात जाने बिना मैं क्लास में वापिस आ गयी..
उसे खाना थमाते वक़्त पूछा..
मम्मा और पापा में से किसकी याद ज्यादा आती है..
उसके चेहरे पर फिर हलचल हुई..
भूरी ऑंखें छलकी तब भी नहीं .बस शफ़क की तरह लाल हुई..
देशवीर दरवाज़े पर खड़ा था..."मैम कम्प्लेन रजिस्टर लीजिये....कोई कम्प्लेंट हो तो लिख दो...
ऊपर सुंदर से कवर पर लिखा था..
आप शिकायत तो कीजिये