बहुत दूर कही हूँ ख़ुद से,
किसी अनंत खोज में।
सुनती हूँ अनगिनत आवाजों में से,
इक महकती आवाज़...
देखती हूँ
इक चेहरा
करोडो जुगनू भी फीके जिसके आगे....
चाहती हूँ
इक पाक,नाज़ुक ,स्पर्श...
इक अंतहीन खोज है शायद...
पत्थर थी कभी मैं,
तेरे छूने से जी उठी थी....
मीरा भी रही हूँ शायद कभी,
विष के प्याले
कितने युगों से पी रही हूँ ....
अभी भी पड़े है
इंतजार के न जाने कितने जन्म....
तूं चला जो गया इस बार भी
बिना मिले ही मुझे......
बहुत शोर सा उठता है मेरी रूह से।
फ़िर तड़प के खामोश हो जाती है।
कोई जहाज़ मेरी छत से गुजरा है अभी...
बहुत शोर सा उठता है मेरी रूह से।
जवाब देंहटाएंफ़िर तड़प के खामोश हो जाती है।
कोई जहाज़ मेरी छत से गुजरा है अभी...
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बहुत खूबसूरत और जज्बाती रचना. जहाज की तरह मेरे दिल के करीब से गुजर गयी ये रचना.
bahut hi achhi nazm
जवाब देंहटाएंबहुत शोर सा उठता है मेरी रूह से।
जवाब देंहटाएंफ़िर तड़प के खामोश हो जाती है।
कोई जहाज़ मेरी छत से गुजरा है अभी...
wah! in panktiyon ne dil ko chhoo liya....
दिल को छूती रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंनज़्म, सूनी राह पर एक पुकार सी लगती है.
बहुत शोर सा उठता है मेरी रूह से।
जवाब देंहटाएंफ़िर तड़प के खामोश हो जाती है।
कोई जहाज़ मेरी छत से गुजरा है अभी...
dil ke kareeb lagin ..ye panktiyaan...
बहुत सुंदर...
जवाब देंहटाएंमिथको का अच्छा प्रयोग है इस कविता मे इसे और विस्तार दिया जा सकता था ।
जवाब देंहटाएंबहुत शोर सा उठता है मेरी रूह से।
जवाब देंहटाएंफ़िर तड़प के खामोश हो जाती है।
कोई जहाज़ मेरी छत से गुजरा है अभी...
इन लाइनों मे जहाज का बिम्ब, शोर का बिम्ब, और तड़प के बाद की खामोशी का बिम्ब..बहुत जीवन्त और सॉलिड बन पड़ा है...
बहूत सुंदर ...गहराइयों की थाह को छूती..
जवाब देंहटाएंआपकी रूह से उठते शोर ने बहुत भावुक कर दिया है ...बहुत अच्छा और भावप्रवण लिखती हैं आप ...!!
जवाब देंहटाएंबहुत शोर सा उठता है मेरी रूह से।
जवाब देंहटाएंफ़िर तड़प के खामोश हो जाती है।
कोई जहाज़ मेरी छत से गुजरा है अभी
waah lajawab
kasturi mrig hai tu
जवाब देंहटाएंaur wo chehra bhi tere bhitar hi hai
bas jara najar apni or kar le
सुन्दर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंबहुत शोर सा उठता है मेरी रूह से।
जवाब देंहटाएंफ़िर तड़प के खामोश हो जाती है।
कोई जहाज़ मेरी छत से गुजरा है अभी...
good one....lagta nahi kisi ne pahli baar triveni likhi hai .kisi bhi triveni ka sabse aham pahlu uski aakhiri line hoti hai...jo use twist karti hai ....naya arth deti hai ....
मीरा भी रही हूँ शायद कभी,
जवाब देंहटाएंविष के प्याले
कितने युगों से पी रही हूँ ....
wow ...its great one !!!