ऑडिटोरियम से आ रही थी कुछ आवाजें.
दूर से ही,
दिखाई दे रहे थे.
सफ़ेद सलवार सूट,
और...
सफ़ेद मलमल के दुपट्टे,
मैं,
मैं,
चुपचाप से,
शामिल हो गयी...
उन सब में.
शांति थी सब तरफ.
बस,
कॉरीडोर में आवाज़ें थीं...
कॉरीडोर में आवाज़ें थीं...
चलने से मेरे.
हिस्ट्री की टीचर ने,
चश्मे के ऊपर से...
मुझे घूर के देखा.
और,
बंद हो गयी,
खुद ही,
मेरे जूते की ठक ठक .
मैं,
अपनी पसंदीदा जगह पर थी.
इमली के पेड़ के नीचे.
जिसके,
इमली के पेड़ के नीचे.
जिसके,
नाज़ुक तने से टेक लगाकर,
मैं अक्सर देखती थी...
मैं अक्सर देखती थी...
सामने के बाग़ में टहलते मोरों को.
और,
और,
तोड़ती रहती थी...
घास के तिनके,
बेख्याली में.
कहाँ गयी वो आवाज़ें...
जो,
अभी तक तो...
हंसती,
खिलखिलाती,
मेरे पास बैठी थीं.
मेरे पास बैठी थीं.
कुछ इक,
दूर.....
किताबों में गुम थीं.
कई,
कई,
गुज़री थीं...
मेरे पास से,
हाथ हिला के,
मुस्कुरा के
कहाँ गयी सब आवाज़ें??
मैंने हर डेस्क पे ढूँढा,
मैंने हर डेस्क पे ढूँढा,
कोइ भी नहीं यहाँ तो.
कभी लिखा था,
पेन से...
खुरच खुरच के...
अपना नाम.
कितने नाम,
आज भी थे वहां,
और मैं भी.
इक डेस्क पे पड़ा था,
मेरा हिंदी का परचा,
जिसमे मैंने लिखे थे,
जिसमे मैंने लिखे थे,
पूछे शब्दों के अर्थ,
प्यार का अर्थ मनुष्यता
और उम्मीद का भविष्य.
दोनों ही...
और उम्मीद का भविष्य.
दोनों ही...
गलत कर दिए गये थे.
बेचैन हो के,
गेट की तरफ दौड़ती हूँ,
रास्ता रोक लेता है,
रास्ता रोक लेता है,
इक आँख वाला
'गंगा राम गेट कीपर'
मांगता है,
मुझसे,
मेरा,
'आई कार्ड'
जो आज,
मैं लाना भूल गयी.
फिर चल देती हूँ,
फिर चल देती हूँ,
हॉस्टल की तरफ ,
वार्डन के साईन जो लेने हैं,
कि,
मैं,
हॉस्टलर नहीं डेस्कालर हूँ.
ऑडिटोरियम से आ रही थी अब तालियों की आवाज़.
ऑडिटोरियम से आ रही थी अब तालियों की आवाज़.
Behad sundar rachana!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी तरह पिरोया है एक एक शब्द यादों के आईने में धुंधली होती तस्वीर को साफ़ साफ़ देखने के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंपसंद आई आपकी यह रचना शुक्रिया
जवाब देंहटाएंदिलचस्प!
जवाब देंहटाएंप्यार का अर्थ मनुष्यता
जवाब देंहटाएंऔर उम्मीद का भविष्य.
दोनों ही...
गलत कर दिए गये थे.
Ek kahani jise behad sanjeedgi se parosa......aur jo ehsaason ka bhandan baandha hai.....wo bhi kabile tareef hai
भटकते हुवे मन को जैसे कोई कुम्हार की तरह साध रहा हो ......... आपने बहुत ही जीवित लम्हों को माला में पिरो कर कविता का रूप दे दिया है ........ बहुत ही लाजवाब ......... बहुत दिन बाद आपकी रचना पढ़ कर अच्छा लगा ..... आशा है आपका स्वस्थ ठीक होगा .........
जवाब देंहटाएंएक बेचैन किस्म का वीतराग उभरता है इससे.अदभुत.
जवाब देंहटाएंवापसी के लिए शुक्रिया.
कविता के लिए मन का होना आवश्यक है आपकी इस पोस्ट को पढ़ कर समझ आया है.
जवाब देंहटाएंसुरों की पेटियां, समय की अदालत, आज फिर, अभी वक्त था और कुछ दुःख इन पांच कविताओं को कितनी बार पढ़ा है, याद नहीं आता. सबका आभार व्यक्त करने को जी चाहता भी है और नहीं भी. दोस्तों आप सब हमेशा बने रहो. यूं रेगिस्तान में दरख़्त भी बहुत दूर दीखते हैं तो नर्म नाजुक लोग मुद्दतों बाद ही मेहमान हुआ करते हैं.
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंdimple aapki writing bahut sahaj hai.....man ko choo lete hai.....aisa lagta hai koi judaav ho .....ham aapse contact karna chahte hai
जवाब देंहटाएंek baar kuch alag likhne ki yeh koshish achhi lagi Dimple
जवाब देंहटाएं-Sheena
so you have a sense of humour too! A different poem as if written about a person we all long to be. You have such a pure heart, obvious from the lines everyone has appreciated.
जवाब देंहटाएं