रविवार, 13 नवंबर 2016

लड़का समंदर कई बार देख चुका है 
लड़की ने पहली बार देखा था 
वह समंदरों के शहर में रहता रहा है 
पहले वो आस्मां था 
फिर समंदर था ,फिर लड़का बना 
दरअसल वह स्मृति बनना चाहता था
जब उसने पहली बार लड़की के पांव चूमे
लड़की ठिठकी
दूसरी बार चूमने पर लड़की मुस्कराई
अब वह समंदर में उतरना चाहती है
लड़का लहरों में लड़की का हाथ पकड़े रहता है
तब भी जब वह बार-बार छूट जाता है
किनारे पर सीपियाँ है, शंख हैं
और मरी हुई मछलियाँ भी
पांवों के निशाँ कोई नहीं हैं
समंदर सारी निशानियाँ मिटा देता है
नावें है ,नाविक है बंधे हुए ज़ाल भी
नाविक नौकाओं से खेलते है
नौकाएं समंदर से
एक रस्सी दोनों के बीच झूलती है
नावें ,नाविक और समंदर तीनों खुश है
लड़का और लड़की भी खुश हैं
लड़की लड़के के चेहरे से नमक चूमना चाहती है
लड़का डूबते हुए समंदर को देखना चाहता है
लड़की समंदर से बाहर निकलती है
लड़का अपने पानी में कैद कर लेता है उसकी परछाई .
...

शुक्रवार, 11 नवंबर 2016

लड़की वक़्त को कलाई पर बांधती है 
और घर से निकलती है 
उसे बताया गया था बार-बार कि 
धरती गोल है 
पर वो याद नहीं रखती 
वो थोड़ी दूर चलती है
सबकी नज़रों से बचती है
और चिड़िया बन जाती है
विशाल बादल देख चिड़िया बनी लड़की
पहले डरती है
फिर पंख में बांध कर उड़ा देती है
वह रास्ते में कहीं नहीं रूकती
उसे दूर देश जाना है
वह देश हरा है
उसकी हवा नीली है
वह बारिशों का देश है
चिड़िया फिर से लड़की है
उसके पैरों के नीचे ज़मीन है
पर वह ज़मीन से थोड़ा ऊपर चलती है
जब वह चलती है
उसे अपनी ही पायल की आवाज़ सुनाई देती है
उसे नीला रंग ज्यादा नीला लगता है
हरे पत्ते ज्यादा हरे
लड़की की गाड़ी सिग्नल पर रुकती है
लड़का इंतज़ार कर रहा है
दोनों अब साथ-साथ है
और मुस्करा रहे है
लड़का कुछ बोलता है
जिसे लड़की नहीं सुनती
लड़का कुछ कदम आगे चलता है
दरवाज़े में चाबी घुमाता है
इसी बीच लड़की सोच रही है
उसे कौन सा पांव पहले रखना है
लड़का तेजी से अंदर जाता है
लड़की वही पांव पहले रखती है
जो लड़के ने रखा था
कलाई पर बांधा वक़्त लड़की मेज़ पर रखती है
और पांवों से घर नापती है
लड़की को लगता है
सब ठहरा हुआ है
घर में एक भी घड़ी नहीं है
दीवारें बेहरकत हैं उन पर कोई भी तस्वीरें नहीं हैं
वह बेरंग भी नहीं हैं
खिड़कियाँ बंद हैं
घर का कोई आस्मां नहीं है,
न ही घर की कोई ज़मीन है
छत पर कोई जाला नहीं है
मकड़ियों का जंगल यहां नहीं होगा
लड़की चैन की साँस लेती है
दुनिया एक कहानी है
यह बात लड़के ने उसे एक दिन बतायी थी
लोग इस कहानी के पात्र है
लेकिन यह कहानी घर के बाहर है
घर के अंदर लड़का और लड़की हैं
लड़की खाना बनाते हुए कविता सोचती है
लड़का खाते हुए पढ़ लेता है
लड़का गाने सुन रहा है
लड़की अनार छील रही है
दोनों बातों का कोई मेल नहीं है
दोनों खामोश है
पर एक दुसरे को सुन सकते हैं
उन्हें बोलना कम पड़ता है क्यों कि
दोनों एक दुसरे को जानते है
वह दोनों धीरे बोलते है
क्यों जो ऊँची बोलने से फांसले लगते हैं
लड़का किताबे छांट रहा है
लड़की ढ़ेर सी किताबें नहीं पढ़ना चाहती
वो जो पढ़ती है भूल जाती है
लड़का जो उसे सुनाता है
उसे वह कभी नहीं भूलती
लड़के के हाथ में काफ्का की किताब है
लड़की का ध्यान कुकर की सीटी गिनने में है
लड़का कविता पड़ता है किसी युवा देश की
लड़की उछल पड़ती है
यह वही कविता थी
जो लड़के ने बरसों पहले सुनाई थी
और उसे अब भी याद थी ……

गुरुवार, 3 नवंबर 2016

जब हम एक दूसरे  के अभ्यस्त हो चले थे 
तब उस वक़्त दुनियां में शांति थी 
ज़मीन कहीं नहीं बची थी
 तृप्त आसमान फैला हुआ था 
वो भी मेरी ही तरह तुम्हारे आने की बाट  जोहता 
रात्रि- कार  के अनुभव से शायद 
वो बताता कि  जाने वाले लोट आते हैं 
जो बातें  तुम बता कर जाते वो मुझे फिर-फिर सुनाता 
काश कि  मुझे भी वो सब याद रहता 
जो मैंने सुना नहीं 
तब शायद मैं अनंत काल तक तुम्हें सुन सकती 
हम इतने आदी  हुआ करते थे एक दूसरे  के 
या तो हम रात- रात भर बातें करते 
या फिर दिन भर भी चुप रहते 
और मुट्ठी भर यादों की तह लगाते रहते 
बहुत समय तो नहीं हुआ था 
फिर तुमने ऐसा क्यों कहा 
कि  अब हमें चलना चाहिए  .... 



मंगलवार, 1 नवंबर 2016

मैं २० तारिख को नहीं लौट सकती 
क्योंकि मैं लौट चुकी हूँ 
मगर मैं तो रुकी हुई हूँ 
शायद मैंने लौटने की कोशिश की होगी 
किसी को समझ नहीं आ सकता मेरा न लौटना 
पर तुम जान जाओगे 
गाड़िया हमे दूर ले जाती है पर 
वापिस भी ले आती है 
मैं लिखना नहीं चाहती कुछ भी सिर्फ खतों के जवाब लिखना चाहती हूँ 
खत जो बिखरे हो मेज़ पर 
तुम लिखोगे कैसे मुझे मेरा पता नहीं पता मुझे 
तुम् क्या तेज़- तेज़ चल के नहीं आ सकते मी पास 
हो सकता है तुम्हे पता न हो तुम्हारे घर से बाहर निकलते ही मोड़ पर मेरा घर हो 
तुम क्या सोचते हो 
ज़मीन नीली हो तब भी तुम सुनहिरी धुप से आसमान  को ढक  लेते थे 
दिमाग ओ दिल कुछ देर तक ज़िंदा रहते है 
मर जाने के बाद भी 
उनमे कुछ बचा होता है जाने क्या 
फिर मरना क्या हुआ ?
बात ना करना ?
तो क्या मैं ज़िंदा नहीं हूँ?
पर मुझे पीपल के पेड़ से डर  लगता है 
अँधेरे में उसकी शाखाये काली होती है 
इसका मतलब मैं अकेले नहीं रह सकती 
अकेले में मेरी चुडिया बाते करती हैं 
लाल चुडिया जो तुमने नहीं ले के दी 
लगता है तुम ने बनाई थी कांच पिघला  कर 
लाल सुर्ख  पलाश के फूलो की तरह लाल 
मैंने कहा  था पहना दो मुझसे नहीं पहनी जाती 
पहनी तो जा रही थी
 मुझे कांच पर टूट न जाने का भरोसा नहीं था 
तुमने मना कर दिया 
तुमने कहा एक एक कर के पहन लो 
मैंने पहन ली 
तुम सो गए क्या 
तुम मेरी बात नहीं सुन रहे थे 
तुम को क्या लगा 
मैं हमेशा बोलती रहूंगी 
जब भी तुम आंखे खोल के मेरी तरफ देखोगे 
क्या अगर मैं चुप हो गयी तो 
पर मैं तो चुप हूँ 
कोई नही समझेगा मेरे बात करने में मेरा चुप होना 
तुम समझ जाओगे