सोमवार, 26 अक्तूबर 2009


कुछ अनजाने चेहरे,
आईने के
इस पार,
कुछ उस पार.....
बीच में कुछ मीठी,
और कभी तलख होती आवाजे।
कुछ सौदे
उन सपनो के
जिनकी कोई EXR date नही।
कि कब टूट जाए।
कुछ पता नही इक latent demand की तरह।
net की दुनिया है॥
E-business है इश्क अब....











वो दरिया था जिसके किनारे बैठी रही कि भिगो देगा मुझे,
वो समुंदर होता तो लहरे उसकी भिगो जाती मुझे ।
पानी के छींटे मार ले के ये आँखे खुलें..

शनिवार, 17 अक्तूबर 2009

त्रिवेणी



वो ख़याल है कि हकीकत है कोई सबूत नही,
मेरी नज़मो में मगर वो बसता है ,
खुदा को देखा तो नही किसी ने भी।




अहसास तो था कि यादें बेतरतीब है,
हंसाते हंसाते रुला देती है मूझे ,
अलमारी खोली तो सब कपड़े बाहर गिर पड़े।




मैंने सुना नही तुम्हे कई दिन से,
शायद तुम कुछ बोले भी नही हो,
बाहर पटाको का शोर बहुत है.

शनिवार, 10 अक्तूबर 2009


उगता सूरज नहीं देख पाई कभी,
पर कल्पना कई बार की है।
डूबते सूरज के पीछे पीछे चलती हूँ,
जब डूब जाता है तो लौट आती हूँ।
कही वो भी कोई उगता सूरज तो नहीं है?




तुम कहते हो चलो रोंप देते है,
गुलमोहर के पेड़ सडको के दोनों तरफ़।
ताकि आने वाली पीढिया कर सके,
इश्क की बातें इनके नीचे।
मैं पूछती हूँ पिछली पीढियो ने ,
ये क्यूँ नहीं रोपे ???



उसके आने की खुशी और दुःख है उस पुल का।
जो बन रहा है मेरे शहर के दरवाजे पर।
वो आयेगा तो क्या सोचेगा,
कैसा बिखरा उखडा सा है शहर इसका???

बुधवार, 7 अक्तूबर 2009


मेरे रेत के घरोंदे,

हर रात कौन तोड़ जाता है??

अक्सर सोचती,

हर सुबह,

नया घर बनाते हुए।

आज सुबह,

तुम्हारे पाँव पे मिट्टी लगी हुई देखी.........