सोमवार, 7 दिसंबर 2009
दर्द कम हो जाता है,
अगर बाँट ले तो...
तुमने और मैंने भी बांटा इसे
पर ये और बढ़ गया जाने कैसे
मिल के असीम हो गया शायद
आओ चुनके देखे अपने अपने दर्द
पहचान लो तुम अपना दर्द और मैं अपना...
रंग देखे है तुमने दर्द के?
कितनो ने लिखा है दर्द?
और कितना लिखा है न?
मगर पढ़ा है किसी ने इसे?
हाँ ...उस विरहन ने पढ़ा है,
जब भी उद्धव विकल्प हुआ,
उस आत्मा ने पढ़ा
जो भ्रमर गीत गाती रह गयी जन्मान्तर....
उस शरीर ने जो अवयक्त रहा...
पढ़ पाओगे इसे?
आज तुम्हारे लिए इसे लिखा है मैंने।
और तुम हर हरफ पढ़ना इसका...
जब तक की ये अनूनादित न हो...
आख़िर एक ही तो है,
मेरी रचना...
और तुम्हारा पढ़ना...
आखिर एक ही तो है मैं और तुम...
आखिर हमारा दर्द भी एक ही है...
थोडी दूरी है बस...
समय वाकई चोथा आयाम है......
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दर्द कम हो जाता है अगर बांट लें।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
आखिर एक ही तो है मैं और तुम...
जवाब देंहटाएंहम....
आखिर हमारा दर्द भी एक ही है..
बहुत सुंदर
क्या खूब लिखा है इस कविता में आपने. कविता के माध्यम से जिस दर्द की बात की है कविता पढ़ कर वही दर्द कम हो गया है. राज जी हम दोनों में फर्क मात्र इतना है की आप अपने दिल के भावः को शब्दों में पिरो कर कविता लिखती है और मैं उन्ही भावो से गुफ्तगू करता हूँ. वैसे भी आपके ब्लॉग को फोल्लो कर लिया है. समय मिलते ही आपके ब्लॉग का चक्कर काट लिया करूँगा. मेरी गुफ्तगू में भी आपका स्वागत है. www.gooftgu.blogspot.com
जवाब देंहटाएंwaah .......kitni khoobi se dard ka marm bata diya.
जवाब देंहटाएंदर्द की सुन्दर व्याख्या
जवाब देंहटाएंपहचान लो...तुम अपना दर्द और मैं अपना...बहुत खूबसूरत.
जवाब देंहटाएंdard aur peeda ka poora darshan aa gaya hai isme.
जवाब देंहटाएंकहते हैं ना ......' दर्द रोने से या बाँट लेने से कम नहीं होगा '
जवाब देंहटाएंबहुत मासूमियत से लिखा है
मिल के असीम हो गया शायद
जवाब देंहटाएंआओ चुनके देखे अपने अपने दर्द
बहुत ही अर्थपूर्ण रचना..
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआखिर एक ही तो है मैं और तुम...
जवाब देंहटाएंहम....
आखिर हमारा दर्द भी एक ही है...
थोडी दूरी है बस...
पाट ले इस दूरी को की खुशियाँ और गम दोनों ही बाँट जाये ...!!
थोडी दूरी है बस...
जवाब देंहटाएंसमय वाकई चोथा आयाम है......
दर्द बाँटते बाँटते कितना कहा है आपने.
शायद दर्द भी तो हमदर्दों के बीच ही तो बाँटी जा सकती है.
ANTARMAN MEIN GUNJAYMAN-SI HO GAYI...
जवाब देंहटाएंmain muskuraya idhar se
जवाब देंहटाएंaur wo udhar se muskurayee
fir jaana main
khushi baantne se
har baar kaise duguni hoti jaati hai..
Superb poem and very emotional.
जवाब देंहटाएंखूब रही यह दर्द की दास्ताँ...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
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