सोमवार, 7 अक्तूबर 2013

सफ़ैदे के ऊँचे शिखरों पर
... डोलते है हवा से ..
झुमके सोने रंगी ..

मौसम पतझड़ का है ..
मगर ..
खेतो में खिली है सरसों .
..
खाली ठूँठ पर बचे हुए है ..
घोंसले ..

बिन पत्तों की नीम पर
...नमोलियां भी ..

हिलते है देर तक झूले ..
उतर जाने के बाद भी ..

हल चल चुके खेत में ..
पिछली फसल के बचे दाने ..
चुनती है नन्ही चिड़िया ..

पंछी आसमान में उड़ता है
परछाई जमीन पर ..

बचा रहता है नये मौसम में पुराने का असर अक्सर