बुधवार, 25 अगस्त 2010

तारें,
टिमटिमाएंगें नहीं,
घुंघरुओं की तरह बजेंगे..

अपनी ही राख की
किसी दबी हुई चिंगारी से
जल उठेंगे
सपनो के अलाव..

रेगिस्तानों में
जंग लगी चरखी की
आवाज़ से
जाग जायेंगे
सोये हुए कुओं के पानी..

बारिश,
हो चुकी होगी..
धूप से भरी
दहलीज़ पर
बैठकर
पढूंगी तब
तुम्हारी दी हुई
आखरी किताब...

गुरुवार, 5 अगस्त 2010

सपने जो सोने नहीं देते


एक लंबा सफर,
इक छोटा सा सपना...
जादुई संकेतों की
अस्पष्ट अजनबी भाषा के नए शब्द गढ़ने के लिए
उसे कुशल कारीगर बनना है. 
सोचूंगी यही..
अच्छा होता अगर वो चला आता.
रोकूंगी नहीं पर..
प्रेम नहीं रोकता,
सपने तलाशने से.
वो,
मुझसे और उन लोगों से...
बेहतर है,
जो जानते ही नहीं उन्हें तलाश किसकी है.
हम सब फैंकते रहते हैं पासे भविष्य जानने के लिए 
और दे देते हैं अपने आज का आधा हिस्सा इसी में.
निराश नहीं होना उसे 
वह जानता है ..
रात का सबसे अँधेरा पहर भोर से ठीक पहले आता है 
उसे बस पांव के निशान छोड़ते जाना है. 
हवाओं को सब मालूम होता है. 
वह जब चूमेंगी उसके चेहरे को वो  जान लेगा  
 .....मैं अभी जिंदा हूँ... 
और उसका इंतज़ार कर रही हूँ. 
दोष नहीं दूँगी..
उसके चले जाने पे. 
वो मुझे तब भी प्यार करेगा और मैं उसे. 
जबकि दुनिया का इतिहास बनाने में 
उसकी भूमिका पहले से तय है .
मैं सपने देखना फिर भी नहीं छोड़ती.