सोमवार, 15 फ़रवरी 2010

आस्मां की बंद खिड़किया ,
सभी खुल गयी..
धरती जो धूल धूल थी,
देखो,
कैसे धुल गयी..
सीली सीली,
खुशबू खिली.
कायनात मौली हुई..
तिनके तिनके,
जोड़ के,
बनने लगे,
नये घोंसले..
ज़िन्दगी जो,
दुबकी पड़ी थी,
अंगडाइया लेने लगी..
कितना जादू,कितनी मस्ती..
हर दिशा शादाब है..
ये फागुन का शबाब है,
या तेरी संदली मुस्कान है..
तूं ही कुदरत,
तूं ही कादर..
हर शेय में तूं शुमार है..
फिर भी ,
इन अश्कबार आँखों में,
तेरा ही हसरते दीदार है...

22 टिप्‍पणियां:

  1. अति सुन्दर... दो- तीन नए शब्द मिले और उनका सुन्दर उपयोग भी

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  2. प्रेम से अब प्रक्रति पर..
    परदे हटा खिड़की से बाहर देखा!
    बाहर नज़र आता है... बिलकुल ऐसा ही..

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  3. बहुत सुन्दर प्रेमाभिव्यक्ति और हाँ उसका वर्णन व नज़ारा क्या बात है !!!!!!!!!!!!!!

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  4. bahut hee manmohak prakruti v fagun ( ke aagman ) ka swagat karatee pyaree kavita ........bahut pasand aayee .

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  5. ज़िन्दगी जो,
    दुबकी पड़ी थी,
    अंगडाइया लेने लगी..
    कितना जादू,कितनी मस्ती..
    हर दिशा शादाब है..
    ये फागुन का शबाब है,
    या तेरी संदली मुस्कान है..

    ये शायद प्रेम का खुमार है .... किसी को पाने की चाह है ... दिल का एहसास है ... बहुत लाजवाब प्रस्तुति है .....

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  6. आस्मां की बंद खिड़किया ,
    सभी खुल गयी..
    धरती जो धूल धूल थी,
    देखो,
    कैसे धुल गयी..

    क्या कहने डिम्पल जी अजब भावो को गजब के शब्दों में पिरो कर जो गजल पेश की है वाकई उसके लिए आप बधाई के पात्र है. फर्क मात्र इतना है की आप अपने दिल के भावो से गजल लिखते है और मैं गुफ्तगू करता हूँ. आपका मेरी गुफ्तगू में स्वागत है.

    www.gooftgu.blogspot.com

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  7. @इन अश्कबार आँखों में,
    तेरा ही हसरते दीदार है...
    -------- प्रकृति के गतिशील बिम्ब को रमते-रमते रखकर
    फिर आँखों में उस सी ( निसर्ग-वत ) हसरत ढूंढना गजब है !
    इसे कहते हैं दो को मिलाना ... गोया यहाँ समस्या ख़त्म सी
    है और वह चिंता नहीं है '' बाले सुजाले तव कुंत जाले / कथं
    प्रबध्नामि विलोचने मे | ''
    ........... अकादमिक व्यस्तताओं के चलते आपकी कविता पर रेगुलर
    नहीं आ पा रहा हूँ , इसका खुद को अफ़सोस है पर जब भी आता हूँ जितना
    भी पढ़ता हूँ मन खुश हो जाता है .... आभार !

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  8. तिनके तिनके,
    जोड़ के,
    बनने लगे,
    नये घोंसले..
    ज़िन्दगी जो,
    दुबकी पड़ी थी,
    अंगडाइया लेने लगी..


    bahut sunder rachna.....

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  9. फगुनवा घोषित हो गया यानि कि...?

    ग़ज़ल का भान हो रहा है आपकी इस खूबसूरत नज़्म में। कई दिनों बाद आ पाया हूँ तो पिछले सफ़े भी पलटने जा रहा हूँ अब।

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  10. आस्मां की बंद खिड़कियाँ,
    सभी खुल गयी..
    दरवाजों की जंजीरें भी उतर गयीं

    उस पार से जो झांकते थे चाँद-तारे
    आज सब आजाद

    कुछ पहुँच गए हैं
    धरती पे भी

    एक चाँद दिखा आज मुझे मेरी गली में

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  11. डिम्पल जी, आदाब
    आपके ब्लाग पर पहली हाजिरी है
    ......तिनके तिनके...जोड़ के...बनने लगे..नये घोंसले..
    ज़िन्दगी जो...दुबकी पड़ी थी....अंगडाइया लेने लगी....

    फिर भी ....इन अश्कबार आँखों में...तेरा ही हसरते दीदार है...
    वाह...वाह
    यहां आकर भावपूर्ण शब्दों की शानदार प्रस्तुति
    अनूठे अंदाज में देखने को मिली.
    बधाई

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  12. wow superb....yahan to kai rang dekhne ko mile......nature, beloved and holi....bahut sunder dimple....keep writing

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  13. अमरेन्द्र भाई ने यह सलोना ब्लॉग दिखाया ! हम भौंचक !
    रोज ही सामना हो रहा है अभिव्यक्ति-अनुभूति-कमनीयों से !

    बेहतरीन !

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  14. antim panktiyo ne gazab dhaaya hai ji ... badhai kabul kare..

    vijay
    www.poemsofvijay.blogspot.com

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  15. मूड चेंज है ..अच्छा लगा मोहतरमा ...

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  16. bahut accha prayash hai aapka aise hi likhte rahe.
    http://sameerpclab2.blogspot.com

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  17. जिंदगी
    जो दुबकी पडी थी
    अंगड़ाइयाँ लेने लगी ...

    जी हाँ !
    विश्वास ही ज़िन्दगी है
    आपकी रचना में ये आभास छिपा है
    अच्छी रचना के लिए बधाई

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  18. हर दिशा शादाब है..
    ये फागुन का शबाब है...

    वाह कितनी खूबसूरत पंक्तियाँ है.

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...क्यूंकि कुछ टिप्पणियाँ बस 'टिप्पणियाँ' नहीं होती.