चांदनी से ,
भर दी मैंने,
कलसी चाँद की..
..लबालब..
औंधा चाँद,
या
आधा चाँद.
बात रही पिघलती ,
उसमे..
रात रही टपकती,
उससे..
हवा का झोंका,
ऐसे बहता..
चेहरा तेरा,
जगता बुझता..
सांसे,
तपी तपी सी..
आँखे,
धुली धुली सी..
कोयल ,
कही नहीं..
पर नभ में,
कुहू कुहू..
माना बेमाया है..
पर..
ये रुत,ये बहार,ये हवा..
ये रात,ये चाँद,ये समाँ..
ज़िन्दगी यही तो है,
जीना हर लम्हा लम्हा..
चांदनी से ,
जवाब देंहटाएंभर दी मैंने,
कलसी चाँद की..
..लबालब..
औंधा चाँद,
या
आधा चाँद.
बात रही पिघलती ,
उसमे..
रात रही टपकती,
उससे..
bahut achha .....
अनिर्वचनीय.नेति नेति.
जवाब देंहटाएंक्या इसे ही दिव्य कहते है? शायद.
बात रही पिघलती ,
जवाब देंहटाएंउसमे..
रात रही टपकती,
उससे..
awesome !!!!!!!
shabd-shabd me gahrayi hai,waah
जवाब देंहटाएंचांदनी से ,
जवाब देंहटाएंभर दी मैंने,
कलसी चाँद की..
..लबालब..
जो गिर गयी छलक के
उससे एक रौशनी बनाई है तुम्हारे(रात)लिए...
bilkul yahi hai zindgi
जवाब देंहटाएंchandni aur roshni...han fuhaar bhi...man bhi bheeg gaya :-)
अब समझा आपके कारण ही चांद चमकीला है...सारी दुनिया चांद की चमक देखती रही,,,काश अपने आसपास भी देखती....
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट...साधु
जवाब देंहटाएंगुड, वैरी गुड... यही है जिंदगी हमारे लिए भी... खुबसूरत दृश्यों का टप-टप गिरना... एक भी छुटे न...
जवाब देंहटाएंमाना बेमाया है..
जवाब देंहटाएंपर..
ये रुत,ये बहार,ये हवा..
ये रात,ये चाँद,ये समाँ..
ज़िन्दगी यही तो है,
जीना हर लम्हा लम्हा..
ये लम्हे हर एक क्षण
कभी अमावस तो
कभी घाटा घन घोर तो
कभी कडती बिजलियाँ
यानि की मरना भी लम्हा लम्हा
इन सब मे रिसता हुआ वक्त
कुछ ऐसी ही जिन्दगी है !
माना बेमाया है..
जवाब देंहटाएंपर..
ये रुत,ये बहार,ये हवा..
ये रात,ये चाँद,ये समाँ..
ज़िन्दगी यही तो है,
जीना हर लम्हा लम्हा....
वाह बहुत ही लाजवाब ...... प्रेम के कोमल एहसास समेटे नाज़ुक रचना है ......... सच में जीना इसी को कहते हैं .........
चांदनी से ,
जवाब देंहटाएंभर दी मैंने,
कलसी चाँद की..
..लबालब..
औंधा चाँद,
या
आधा चाँद.
बात रही पिघलती ,
उसमे..
रात रही टपकती,
उससे..
ओर रात भर बारिश यूँ गिरी .......चाँद जैसे कुछ फेंकता रहा ...रात भर.......
zindagi bas yahi to hai
जवाब देंहटाएंjeena lamha lamha
-Sheena
हाँ वाकई में जीवन यही है....
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना.....
Ati sunder .............
जवाब देंहटाएंकोयल ,
जवाब देंहटाएंकही नहीं..
पर नभ में,
कुहू कुहू..
वाह...वाह...वाह...अद्भुत शब्द और बेजोड़ भाव...चमत्कृत करती हुई लाजवाब रचना...बधाई...
नीरज
उफ़्फ़्फ़्फ़!
जवाब देंहटाएंये मैंने क्यों नहीं लिखी?
कभी-कभी टिप्पणी में बस एक शब्द लिखने को मन करता है "सुंदर"...जैसे कि अब कर रहा है,क्योंकि शेष सारे शब्द बेमानी हो जाते हैं।
ये कविता फीलिंग्स का एक बुके है.
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