मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010

सुबह सूरज दिखा दो अभी,
रात शबनम गिरा  दो अभी,

क्या हुआ, क्यूँ हुआ, कब हुआ?
बात सारी भुला दो अभी.

आग जंगल की बुझ जाएगी
घर का  चूल्हा जला  दो अभी.

ख्वाहिशें हैं सफ़र की अगर,
सरहदों को मिटा  दो अभी.

सब्र शामों का होता नहीं,
चाँद छत पे बुला  दो अभी.

बात उनमें नहीं है अगर,
उनसे नज़रें  हटा दो अभी.



हाँ वो दिल  को भले से लगे,
कोई उनको बता दो  अभी.

31 टिप्‍पणियां:

  1. सुबह सूरज दिखा दो अभी,
    रात शबनम गिरा दो अभी,

    घर उजाले कहीं खो न जायें
    दीपक ये सारे जला दो अभी....

    डिम्पल जी बहुत खूब...

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  2. बहुत अच्छा ।

    यूँ ही नींद में कभी देखा जिन्हें,
    वो सपने अब सोने नहीं देते।

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  3. सब्र शामों का होता नहीं,
    चाँद छत पे बुला दो अभी.

    kya baat hai.. aur abhi ahsaas hua ki ye bas 'Tippani' nahi hai :)

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  4. सब्र शामों का होता नहीं,
    चाँद छत पे बुला दो अभी.

    हाँ वो दिल को भले से लगे,
    कोई उनको बता दो अभी

    बहुत खूब ... कमाल के शेर हैं सब .. लाजवाब लिखा है ..

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  5. ख्वाहिशें हैं सफ़र की अगर,
    सरहदों को मिटा दो अभी.
    Kya khoob kaha!

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  6. "आग जंगल की बुझ जाएगी
    घर का चूल्हा जला दो अभी"
    अतिशयोक्ति बेशक लगे लेकिन लाजवाब और बहुत सटीक.

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  7. "आग जंगल की बुझ जाएगी घर का चूल्हा जला दो अभी"
    लाजवाब और बहुत सटीक.

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  8. "आग जंगल की बुझ जाएगी घर का चूल्हा जला दो अभी"
    लाजवाब

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  9. सब्र शामों का होता नहीं,
    चाँद छत पे बुला दो अभी.

    सावधान! छत गर्म हो तो चाँद के तलवे जल सकते हैं....

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  10. Hello Dimple,

    Umdaaaaah!!
    Mann ko chooh gayi... bahut achha likha hai :)

    Sensitive and Sensible :)

    Regards,
    Dimps

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  11. Raj ji,bahut dino se post bhi nahi likhi aur bahut dino se aap ka agman bhi nahi hua mere blog par.
    Ummeed hai aap theek hongi.
    Hamesha ki tarah bhavnaon se labrez aapki ghazal ,umda aur khoobsoorat bhi .
    Aameen,yoon hi likhtee rahen yahi dua hai .
    sader,
    dr.bhoopendra
    jeevansandarbh.blogspot.com

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  12. सुन्दरतम् अभिव्यक्ति। आभार!!

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  13. पहली दफा शायद आपके इधर आना हुआ है ..
    कुछ शे'र नए हैं अछे लगे ... लिखते रहें...

    आखिर से दूसरा शे'र कुछ समझ नहीं आ रहा ...
    मैं अभी जिसके काबिल नहीं
    खौफ दिल में जगा दे अभी

    अर्श

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  14. ख्वाहिशें हैं सफ़र की अगर,
    सरहदों को मिटा दो अभी.
    वाकई सरहदें ख्वाहिशों को मार डालती हैं -- सरहदों से पार जाना ही होगा.

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  15. गज़ल़ की सहजता ही में इसकी खूबसूरती है।

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  16. ख्वाहिशें हैं सफ़र की अगर,
    सरहदों को मिटा दो अभी.

    decent wordings in poem......i must say beautiful poem.....!Thanx

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  17. पहला ही शेर जबरदस्त रहा.. बहुत खूब!

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  18. "आग जंगल की बुझ जाएगी
    घर का चूल्हा जला दो अभी"
    gazab ki abhivyakti he ji,,

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  19. ख्वाहिशें हैं सफ़र की अगर,
    सरहदों को मिटा दो अभी.

    आहा !
    एक और शेर हो जाएगा।
    पेश-ए-आईना मुस्कुरा दो अभी!

    बहुत खूब मेरी शुभकामनाएँ

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  20. Lillah! der ho gai hamse aane mein
    bas aankho se hi muskura do abhi :-) Ye kaisi rahi

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  21. Dimpal Ji, bahut khoob .....Surinder
    बात उनमें नहीं है अगर,
    उनसे नज़रें हटा दो अभी.
    हाँ वो दिल को भले से लगे,
    कोई उनको बता दो अभी.

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  22. ख्वाहिशें हैं सफ़र की अगर,
    सरहदों को मिटा दो अभी.

    सब्र शामों का होता नहीं,
    चाँद छत पे बुला दो अभी.

    शेर बहुत पसंद आये..आभार!

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  23. "अच्छी कोशिश है" यह वाक्य इस आशा के साथ कह रहा हूँ, कि आपको इस रचना को रचने से पहले महसूस हो रहा होगा या होना चाहिए था कि "इस का लिखा जाना सबसे ज़रूरी है"....मैं इसे ग़ज़ल कह सकता हूँ कि यह ग़ज़ल होने का एक नियम निभा ही रही है, और छोटी बह्र की रचना होने के कारन, कुछ गलतियाँ हुई हैं....और अभिव्यक्ति की बात कहूँ तो

    हाँ वो दिल को भले से लगे,
    कोई उनको बता दो अभी।

    ख्वाहिशें हैं सफ़र की अगर,
    सरहदों को मिटा दो अभी।

    पसंद आया.........


    इसने थोडा सा परेशान किया,वजह शायद किसी रचना को अल्पतम समझ के दायरे में लाना, जो कि मेरी अधिकारिक बीमारी है। आप इस बात को मुझे समझा सकें तो ज़रूर बताएं.....

    आग जंगल की बुझ जाएगी
    घर का चूल्हा जला दो अभी।

    यह भी बताएं कि जंगल का प्रयोग क्या प्रतीकात्मक है..?

    Nishant...

    जवाब देंहटाएं
  24. छोटे बहर की उन्मुक्त ग़ज़ल
    कुछ देखे हुए से दृश्य है और कुछ सोचे हुए.

    जवाब देंहटाएं

...क्यूंकि कुछ टिप्पणियाँ बस 'टिप्पणियाँ' नहीं होती.