रविवार, 17 अक्तूबर 2010

अजीब उदास सा मंजर है...

हवा की छांव में गिरे,
पलाश के फूलों की महक..

तेरे यहीं-कहीं आस-पास
होने का अहसास शफक..

सुरमयी रेत
स्याह चट्टानों के पैरो तले..

सांसों की धुंध जैसे
लम्बे गहरे साये ऐसे..

परे असमानों में
किसी खण्डहर की मुंडेर पे
पड़े टूटे दिए सा
जल रहा है सितारा कोई..

कितना सब होने पे भी
 इतना सब खाली क्यों है..

क्या तुमको  भी
मेरी याद इस तरह आती होगी

न जाने कौन सा रंग
होता है इस उदासी का
खुले किवाड़ है
दबे पांव चली आती होगी

कोई तो बात करो
के फिर आज
बड़ी उदास है शाम...

22 टिप्‍पणियां:

  1. उदास शाम का सटीक चित्रण दिल से लिखी गयी रचना बधाई

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  2. परे असमानों में
    किसी खण्डहर की मुंडेर पे
    पड़े टूटे दिए सा
    जल रहा है सितारा कोई..

    यादें ऐसी ही तो होती हैं...
    अच्छी रचना ....

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  3. अभी एहसासों की पोटली से शब्द टटोल रहा हूँ....ख़ामोशी से कोई रूमानी ख्वाब बुन रहे हैं वे....सोने दो, न जगाओ उन्हें....क्या पता, कोई हसीन ख्वाब दिल को राहत दे जाए

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  4. हम्म!
    बढ़िया लिखा है..
    मौसम भी उदासी का चल रहा है आजकल..ऐसा लगता है..और फैशन भी....वैसे किवाड़ बंद रहें तो और अच्छा!!

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  5. न जाने कौन सा रंग
    होता है इस उदासी का
    खुले किवाड़ हैं
    दबे पांव चली आती होगी

    सुंदर भावों से अलंकृत सुंदर कविता।

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  6. अरे वाह, बहुत ख़ूबसूरत कविता लिखी है आपने...ऐसा लगा जैसे मेरे विचारों को सजा दिया हो.... अपूर्व जी ने सही कहा मौसम ही उदासी का है... अब देखिये ने मैंने भी अपने ब्लॉग पर अपनी डायरी का एक पन्ना रखा है....
    जरूर आईयेगा....

    ज़िन्दगी अधूरी है तुम्हारे बिना.....

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  7. डिम्पल जी,

    बहुत खुबसूरत अहसास .......एक बात..... उर्दू पर आपकी पकड़ पर मैं आपकी दाद देता हूँ ........इन पंक्तियों में इतनी शानदार उपमा पर फिर से दाद ...वाह

    "परे असमानों में
    किसी खण्डहर की मुंडेर पे
    पड़े टूटे दिए सा
    जल रहा है सितारा कोई."

    दूसरी बात एक गुज़ारिश है.....इस खाकसार ने आज तक पलाश के फूल नहीं देखे सिर्फ सुना है कुछ गजलों में........अगर कोई तस्वीर हो तो ज़रूर दिखाएँ या इसे किसी और नाम से भी जाना जाता हो तो बताएं.....शुभकामनाये|

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  8. सारगर्भित रचना
    बहुत - बहुत शुभ कामना

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  9. इस बार मेरे नए ब्लॉग पर हैं सुनहरी यादें...
    एक छोटा सा प्रयास है उम्मीद है आप जरूर बढ़ावा देंगे...
    कृपया जरूर आएँ...

    सुनहरी यादें ....

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  10. कोई तो बात करो
    के फिर आज
    बड़ी उदास है शाम..

    आज तो बस जैसे यही पढ़ना चाहता था मन...वाकई बहुत उदास है इन पंक्तियों की खूबसूरती...

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  11. कोई तो बात करो
    के फिर आज
    बड़ी उदास है शाम..

    -बहुत भावपूर्ण!!

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  12. kya baat karoon? kah doon auro ki tarah ki achcha likha hai.....wo to hamesha likhti ho...
    कितना सब होने पे भी
    इतना सब खाली क्यों है..
    kyonki kuch sawalon ke jawaab nahi hote

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  13. यह नज्‍़म तो गाल पर पड़े आपके नाम की तरह ही है।

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  14. गुलज़ार की एक नज़्म याद आ गयी.....कुछ तो बात करो..........

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...क्यूंकि कुछ टिप्पणियाँ बस 'टिप्पणियाँ' नहीं होती.