गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010

बिरहा का सुलतान ... पंजाबी कविता का मीर शिव कुमार बटालवी...
सिरहाने मीर  के आहिस्ता बोलो,
अभी टुक रोते रोते सो गया है..
महबूब शायर शिव..उदासी उसके गीतों में लबालब भरी हुई थी के उसे निराशावादी कवि तक कहा जाता था. जो हमेशा मौत की बातें करता था.यौवन में मरने की बात सुनाता था...इतनी कम उम्र में इतनी शोहरत फिर भी उसकी आत्मा मुक्ति की बात करती..
प्रभु जी..
बिन बिरहा की इस मिट्टी को
अब मुक्त करो..
ढूध की ऋतू में गुजरी अम्मी
बाबल बचपन में,
और यौवन की रुत में सजनी
 मरें पहले पहले सभी गीत मेरे..
 मुझे विदा करो...
प्रभु जी..मिन्नत है ...
मेरी बांह न जोर से पकड़ो,
मुझे विदा करो..
उसका हाल फकीरों का सा था...
क्या पूछते हो हाल फ़कीर का...
इस  नदी से बिछड़े नीर का
...
न जाने और कितना दर्द सहना था उसने अभी वो मरते मरते भी और दर्द और दर्द मांगता रहा..जाने कितनी प्यास थी उसे....
मैं छोटी सी उम्र में सारा दर्द सह चुका ,
जवानी के लिए थोड़ा दर्द और दो..
उसके गम की रात एक उम्र जितनी लम्बी थी...पर बहुत छोटी थी...रात भी खत्म हो गयी और बात भी..उसके बिरह से जलते गीत भी...वो कहता रहा-
गम की रात लम्बी है
या फिर मेरे गीत लम्बे है..
न ये रात खतम होती है न मेरे गीत..
न जाने क्यों बिछड़े हुए अपनों की याद उसे खाए जाती थी..ज़िन्दगी से उकताया हुआ बेजार था.अपनी सांसो का दर्द हवाओं में घोलता अपना आप भुला बैठा था..उसने गम को खाना सीख लिया था...तभी तो..



मैंने तो मरना है जवानी के किसी मौसम में.
और लौट जाना है वापिस इसी तरह भरे भराए...
तेरे हिज्र की परिक्रमा करके
मैंने जवानी में ही मर जाना है..
जो इस मौसम में मरता है
वो या फूल बनता है या सितारा..
जोबन के मौसम में आशिक मरते
या फिर कोई किस्मतवाला..
या फिर जिनकी किस्मत में जन्म से हिज्र लिखा हो..
तुम्हारा दुःख मेरे साथ बहशत तक जायेगा..
भला जीना किस लिए मुझ जैसे बदनसीब को..
जनम से ले के जवानी तक शर्म पहने रखी..
आओ जन्म से पहले ही उम्र पूरी कर ले
...फिर शर्म ओढ़ ले....
मर के एक दूजे की परिकर्मा कर ले..
.शिव एक कविता जो पूरी नहीं हुई.



शिव कुमार(जुलाई २३,१९३७ -मई ७,१९७३)
रचनाएँ:
१:पीड़ा दा परागा-१९६० 
२:लाजवंती-१९६१
३:आटे दीयां चिड़ियाँ-१९६२
४:मेनू विदा करो-१९६३ 
५:बिरहा तूं सुलतान-१९६४
६:दर्दमंदा दीयां आही-१९६४
७:लूणा-१९६५
"लूणा" शिव कुमार बटालवी (१९३७-१९७३)का लिखा एक महाकाव्य है.लूणा शिव ने १९६५ में लिखी जब वह २८ साल के थे.१९६७ में इसे साहित्य अकादमी अवार्ड मिला जब वह मात्र ३० साल के थे.

किसी आह सी नाज़ुक  ग़मगीन आवाज़....जो आसमानों का सीना चीर देगी...


12 टिप्‍पणियां:

  1. A Great Poet....

    विडियो का लिंक देने के लिए शुक्रिया

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  2. Maine Shiv ko zyada nahee padha tha..aaj aapke blog pe pahlee baar mahsoos hua,ki,kitna aseem dard bhara hua hai is shayari me!
    Yaa blog roll se mujhe ittela nahi mili ya aapne likha bade dinon baad hai?

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  3. इस परिचय का बहुत बहुत धन्यवाद.... वाकई काफी दर्द है....

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  4. twada jawab nahi...chalo saadi fariyaad sud lai .....excellent job....abhi theek se padha nahi hai....monday tak busy hain...fir aate hain

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  5. शिव कुमार जी से अपने ही अंदाज़ में परिचय करवाने का शुक्रिया......शायद कुछ लोगों ने दुःख की चादर इस लिए भी ओड़ रखी है ....ताकि उन्हें लोगों से सहानुभूति मिलती रहे|

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  6. शुक्रिया डिम्पल.....कभी यदा कदा पढ़ा है ....सुना है पर इतने डिटेल में इन नजरो से आज देखा है .......ओर आज रूबरू सुन भी लिया .......अजीब चीज़ है ये यू ट्यूब भी .....शुक्र है सनद रखती है

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  7. क्या लगा दिया है आपने आज अपनी पोस्ट पर? ह्मने तो शिव की एक कविता पढ़ी थी ’मैंनूं तेरा शबाब लै बैठा’ उससे उबरने में ही कितने सप्ताह, महीने लग गये थे।

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  8. कल ही शिव कुमार बटालवी जी की पुस्तक शिव कुमार सम्पूर्ण काव्य संग्रह पढ रही थी। इन रचनाओं मे जैसे उन्होंने अपनी आत्मा निचोड कर भर दी थी। पंजाब के लिये उनका जाना बहुत बडी क्षति है। लूणा के बाद उनकी "मैं ते मैं"और "आरती" काव्य संग्रह भी छपा।ये शिव कुमार उनकी मौत के बाद छपा एक सम्पूर्ण काव्य संग्र है जो उन्हे श्रद्धांजली स्वरूप इसे छापा गया। धन्यवाद।

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  9. शिव कुमार जी से परिचय करवाने का शुक्रिया.

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  10. shiv ji ka parichy karaya uske liye dhanywad!! keep doing well and come n join me at my blog...i hope u like it!

    JAi HO Mangalmay HO

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