अजीब उदास सा मंजर है...
हवा की छांव में गिरे,
पलाश के फूलों की महक..
तेरे यहीं-कहीं आस-पास
होने का अहसास शफक..
सुरमयी रेत
स्याह चट्टानों के पैरो तले..
सांसों की धुंध जैसे
लम्बे गहरे साये ऐसे..
परे असमानों में
किसी खण्डहर की मुंडेर पे
पड़े टूटे दिए सा
जल रहा है सितारा कोई..
कितना सब होने पे भी
इतना सब खाली क्यों है..
क्या तुमको भी
मेरी याद इस तरह आती होगी
न जाने कौन सा रंग
होता है इस उदासी का
खुले किवाड़ है
दबे पांव चली आती होगी
कोई तो बात करो
के फिर आज
बड़ी उदास है शाम...
हवा की छांव में गिरे,
पलाश के फूलों की महक..
तेरे यहीं-कहीं आस-पास
होने का अहसास शफक..
सुरमयी रेत
स्याह चट्टानों के पैरो तले..
सांसों की धुंध जैसे
लम्बे गहरे साये ऐसे..
परे असमानों में
किसी खण्डहर की मुंडेर पे
पड़े टूटे दिए सा
जल रहा है सितारा कोई..
कितना सब होने पे भी
इतना सब खाली क्यों है..
क्या तुमको भी
मेरी याद इस तरह आती होगी
न जाने कौन सा रंग
होता है इस उदासी का
खुले किवाड़ है
दबे पांव चली आती होगी
कोई तो बात करो
के फिर आज
बड़ी उदास है शाम...
उदास शाम का सटीक चित्रण दिल से लिखी गयी रचना बधाई
जवाब देंहटाएंपरे असमानों में
जवाब देंहटाएंकिसी खण्डहर की मुंडेर पे
पड़े टूटे दिए सा
जल रहा है सितारा कोई..
यादें ऐसी ही तो होती हैं...
अच्छी रचना ....
मेरा वाला ओसम :-(
जवाब देंहटाएंअभी एहसासों की पोटली से शब्द टटोल रहा हूँ....ख़ामोशी से कोई रूमानी ख्वाब बुन रहे हैं वे....सोने दो, न जगाओ उन्हें....क्या पता, कोई हसीन ख्वाब दिल को राहत दे जाए
जवाब देंहटाएंहम्म!
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिखा है..
मौसम भी उदासी का चल रहा है आजकल..ऐसा लगता है..और फैशन भी....वैसे किवाड़ बंद रहें तो और अच्छा!!
न जाने कौन सा रंग
जवाब देंहटाएंहोता है इस उदासी का
खुले किवाड़ हैं
दबे पांव चली आती होगी
सुंदर भावों से अलंकृत सुंदर कविता।
अरे वाह, बहुत ख़ूबसूरत कविता लिखी है आपने...ऐसा लगा जैसे मेरे विचारों को सजा दिया हो.... अपूर्व जी ने सही कहा मौसम ही उदासी का है... अब देखिये ने मैंने भी अपने ब्लॉग पर अपनी डायरी का एक पन्ना रखा है....
जवाब देंहटाएंजरूर आईयेगा....
ज़िन्दगी अधूरी है तुम्हारे बिना.....
उदासी की बात करो, पर बात तो करो।
जवाब देंहटाएंbahut khoobsurt
जवाब देंहटाएंmahnat safal hui
yu hi likhate raho tumhe padhana acha lagata hai.
डिम्पल जी,
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत अहसास .......एक बात..... उर्दू पर आपकी पकड़ पर मैं आपकी दाद देता हूँ ........इन पंक्तियों में इतनी शानदार उपमा पर फिर से दाद ...वाह
"परे असमानों में
किसी खण्डहर की मुंडेर पे
पड़े टूटे दिए सा
जल रहा है सितारा कोई."
दूसरी बात एक गुज़ारिश है.....इस खाकसार ने आज तक पलाश के फूल नहीं देखे सिर्फ सुना है कुछ गजलों में........अगर कोई तस्वीर हो तो ज़रूर दिखाएँ या इसे किसी और नाम से भी जाना जाता हो तो बताएं.....शुभकामनाये|
dimple...kya gutha hai tumne....shbdon se uljhna hi padta hai :)
जवाब देंहटाएंaah se wahhh tak ...... khubsurat rachna!!
जवाब देंहटाएंJai HO MANGALMAY HO
सारगर्भित रचना
जवाब देंहटाएंबहुत - बहुत शुभ कामना
इस बार मेरे नए ब्लॉग पर हैं सुनहरी यादें...
जवाब देंहटाएंएक छोटा सा प्रयास है उम्मीद है आप जरूर बढ़ावा देंगे...
कृपया जरूर आएँ...
सुनहरी यादें ....
कोई तो बात करो
जवाब देंहटाएंके फिर आज
बड़ी उदास है शाम..
आज तो बस जैसे यही पढ़ना चाहता था मन...वाकई बहुत उदास है इन पंक्तियों की खूबसूरती...
इतनी उदास शाम ,वोह ----
जवाब देंहटाएंकोई तो बात करो
जवाब देंहटाएंके फिर आज
बड़ी उदास है शाम..
-बहुत भावपूर्ण!!
kya baat karoon? kah doon auro ki tarah ki achcha likha hai.....wo to hamesha likhti ho...
जवाब देंहटाएंकितना सब होने पे भी
इतना सब खाली क्यों है..
kyonki kuch sawalon ke jawaab nahi hote
यह नज़्म तो गाल पर पड़े आपके नाम की तरह ही है।
जवाब देंहटाएंvaah.........laazawaab........
जवाब देंहटाएंगुलज़ार की एक नज़्म याद आ गयी.....कुछ तो बात करो..........
जवाब देंहटाएंलाजवाब खूब सुन्दर
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना
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