सोमवार, 7 जून 2010

किसी किसी रात के
पिछले पहर
अचानक कई बार
मेरी नींद उचट जाती है.

सोचती हूँ

तुम भी तो नहीं
मुझे ही याद कर रहे हो कहीं
मुझे ये भी डर है
कहीं तुम टहलते टहलते
छत पे चाँद देखने न चले जाओ
मुझे पता है तुम्हारे अंधेरों का
तुमने तो सिर्फ देखे है
और मैंने
मैंने तो महसूस किये है
याद है
पिछली बार
तीज का चाँद देखने छत पे गये थे
आखरी सीढ़ी के बाद भी 
इक और सीढ़ी समझ ली थी तुमने
गिरते गिरते बचे थे


क्या पता तुम मेरे लिए 
 
कोई ख़त ही लिख रहे होगे
चाहे मैं
जानती नहीं हूँ सारे के सारे अर्थ
और कई बार तो यूँ भी होता है
तुम्हे पढने की कोशिश में मैं निरक्षर हो जाती हूँ
फिर भी कोशिश करूंगी तुम्हारा लिखा
गुनगुनाने की

उन जगी रातों की
सुबहों के सिरहानों पे अक्सर
पुराने खतों की महक जैसे
ख्वाब मिलते है मुझे..



36 टिप्‍पणियां:

  1. उन जगी रातों की
    सुबहों के सिरहानों पे अक्सर
    पुराने खतों की महक जैसे
    ख्वाब मिलते है मुझे..

    बहुत खूबसूरत .. आप मुक्त हो कर दौड़ाती हैं अपने कल्पना को ..... गहरे एहसास जाग उठते हैं पढ़ते हुवे ...

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  2. खूबसुरत!!!! सुन्दर भावनायें ....

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  3. जगजीत जी की गायी एक गजल है ......तेरे आने की जब खबर महके ,तेरे खुशबू से सारा घर महके .......बरबस याद हो आयी........बढिया !

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  4. उन जगी रातों की
    सुबहों के सिरहानों पे अक्सर
    पुराने खतों की महक जैसे
    ख्वाब मिलते है मुझे..
    उन खतों में भी तो ख्वाब ही थे. ख्वाबों को सहेज कर रखना होगा.
    सुन्दर अभिव्यक्ति

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  5. वाकई कि‍सी को पढ़ने की कोशि‍श में नि‍रक्षर होना, अदभुत मायने रखता है।

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  6. नींद की दवा खा ले

    मजाक कर रहा हूँ , कविता अच्छी है

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  7. Uff! Ek aseem dard aur ummeed kaa yah kaisa adbhut sanyog hai...padh ke dhadkan ruk-si gayi..!

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  8. तुम्हे पढने की कोशिश में मैं निरक्षर हो जाती हूँ
    फिर भी कोशिश करूंगी तुम्हारा लिखा
    गुनगुनाने की

    I loved this line....Han insano ko padhna aasan nahi hota....as usual good one !

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  9. हजारों बार मेरी भी नींद उचटती है। पर वो चांद देखने नहीं जाती क्योंकी है नहीं अब वो मेरे साथ। शब्दों में खो सा गया। कितने सुंदर रंग से रंगा है आपने रात की उचटती हुई नींद को। भई अपने बस की बात नहीं। मालूम नहीं क्यों.....

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  10. क्या कुछ कम किया प्यार.........

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  11. किसी किसी रात के
    पिछले पहर
    अचानक कई बार
    मेरी नींद उचट जाती है.

    सोचती हूँ
    तुम भी तो नहीं
    मुझे ही याद कर रहे हो कहीं

    कोई इतनी शिद्दत से याद तो करे... कमबख्त सोना कौन चाहता है फिर :)
    ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति !!

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  12. उफ्फ... फ... फ..सच दिल भर आया बेहद प्रभावशाली रचना ,कितनी कसक कितना दर्द फिर भी अपनापन लाजवाब

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  13. बहुत सशक्त अभिव्यक्ति
    .
    और रचनाओं का इंतज़ार रहेगा

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  14. सच में निरक्षर हो जाता है इंसान। पर फिर भी उसे ही पढ़ता है, बार बार पढ़ता है, क्योंकि वो शब्द उसके भीतर घर कर जाते हैं। वो ही शब्द जगाते हैं, वो शब्द रुलाते और हंसाते हैं, बस सोने ही नहीं देते। सच में आपके भाव दिल तक उतर गए।

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  15. aap ki rachana ke liye kya kahun dimple ji
    har bar yoon lagta hai, jaise koi mere dil ka dard bayan kar raha ho

    bahot bahor shukriya

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  16. मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !

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  17. आप बहुत सुंदर लिखती हैं. भाव मन से उपजे मगर ये खूबसूरत बिम्ब सिर्फ आपके खजाने में ही हैं

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  18. तुम्हे पढने की कोशिश में मैं निरक्षर हो जाती हूँ
    फिर भी कोशिश करूंगी तुम्हारा लिखा
    .........
    डिम्पल जी कहाँ की गहराई है ??? अब बता भी डीजये ! हम तो आपके मुरीद हुये ।

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  19. तुम्हे पढने की कोशिश में मैं निरक्षर हो जाती हूँ
    फिर भी कोशिश करूंगी तुम्हारा लिखा
    गुनगुनाने की
    randomly got ur blog but got some really good poems.......awesome....

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  20. So lovely! So soft feelings direct from heart! Liked the poem very much.

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  21. :)

    उन जगी रातों की
    सुबहों के सिरहानों पे अक्सर
    पुराने खतों की महक जैसे
    ख्वाब मिलते है मुझे..


    pata hai, aasmaan jaisa shaant dhawal aur meetha likhti hain aap.

    shukriya kuboolein

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  22. मुझे ये पंक्तिया बड़ी अच्छी लगी...

    मुझे पता है तुम्हारे अंधेरों का

    तुमने तो सिर्फ देखे है
    और मैंने
    मैंने तो महसूस किये है

    एक ही कविता में तुम मेचौर भी हो....ओर शिकायत करती लड़की भी...जो कविता से बाहर नजर आती है ......

    याद है
    पिछली बार
    तीज का चाँद देखने छत पे गये थे
    आखरी सीढ़ी के बाद भी
    इक और सीढ़ी समझ ली थी तुमने
    गिरते गिरते बचे थे

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  23. मुझे पता है तुम्हारे अंधेरों का
    तुमने तो सिर्फ देखे है
    और मैंने
    मैंने तो महसूस किये है
    याद है

    और
    उन जगी रातों की
    सुबहों के सिरहानों पे अक्सर
    पुराने खतों की महक जैसे
    ख्वाब मिलते है मुझे..
    बस निशब्द हूँ कहने को क्या रह गया है बस आशीर्वाद।

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  24. पढ़ने की कोशिश मे निरक्षर होते जाना उस भय को विस्तार देने का प्रतीक है जो किसी चीज को जरूरत से ज्यादा जान लेने की वजह से पनपता है..चाहे किताब हो या जिंदगी!!..अंतिम पंक्तियाँ बेहतरीन लगी..खास कर नयी सुबहों के ख्वाबों से पुराने खतो की खुशबू आना..यह ख्वाब बैरँग ख़त की तरह हर रात वापस लौट कर आते हैं..

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  25. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  26. bahut hi achhi rachna..
    aane mein thodi deri ho gayi..
    naukri ki talaash mein thoda wyast hoon.....

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  27. bhaavon ki abhivyakti bahut sundeer hia :)


    http://liberalflorence.blogspot.com/
    http://sparkledaroma.blogspot.com/

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  28. "तुम्हे पढने की कोशिश में मैं निरक्षर हो जाती हूँ
    फिर भी कोशिश करूंगी तुम्हारा लिखा
    गुनगुनाने की"

    जैसा अपूर्व ने कहा वही लाईन परफ़ेक्ट होगी इसके लिये
    "पढ़ने की कोशिश मे निरक्षर होते जाना उस भय को विस्तार देने का प्रतीक है जो किसी चीज को जरूरत से ज्यादा जान लेने की वजह से पनपता है..चाहे किताब हो या जिंदगी!!."

    कभी कभी किसी को जरूरत से ज्यादा जानने से भी डर लगता है.. ज़िन्दगी से भी.. आजकल उसी डर मे जी रहा हू.. खूबसूरत पोस्ट..

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  29. इस भाव का मैं भी मुरीद हुआ... बहुत सुन्दर प्रेम कविता. कई लाइन अनोखे से लगे.

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