जादूगरनी रात जिस तरह
सम्मोहित करती है
उजालो को
ठीक उसी तरह
तुम्हारा अक्स
मेरे वजूद पर छा जाता है.
तुम्हीं कहो
कहाँ ढूँढूं तुम्हें
कि रात भूल से भी
नहीं छोड़ा करती अपनी परछाई कभी
ये इत्तफाक था या लाज़मी ?
कि
तुम वक़्त का
इक नन्हा सा टुकड़ा
जब कर रहे थे मेरे नाम
तभी बिरह के अनगिनत पल
सेंध लगा रहे थे वहीँ
मैं इक इक निशान पे
रख देती लफ़्ज़ों को
और तय कर लेती फासले सारे
उड़ते पंछिओं के
पैरों के निशां नहीं हुआ करते.
मुझे अब तक नहीं मालूम
कि उस दिन
तुम्हारी आँखे
हँसती थी
बोलती थी
या फिर उदास सी थी..
सुना है सड़क के
उस हिस्से पे
धूप में
बेमौसमी बारिश
हुआ करती है इन दिनों.
जहाँ कुछ पल
ठिठके थे तुम
जाते जाते.
जहाँ कुछ पल
ठिठके थे तुम
जाते जाते.
तुम्हारे
वहीँ होने का भ्रम
हिलते हाथ, मुड़ती पीठ
दिखती है मुझे अब भी
आँख झपकते ही
तुम्हें न पा कर वहां
मैं अचानक रो देती हूँ
मैं अचानक रो देती हूँ
जबरन रोके भी पानी
भला कहाँ रुकते है.
तेरे जाने के बाद
ढूँढती रहती हूँ
अमर बेल की जडें
जिस्म की मिट्टी में
तुम्हारी आवाज अब भी
लिपटी हुई है..
aah......
जवाब देंहटाएंkafi marmik rachna...
aankhein bheeg aayin padhkar.....
behtareen.........
अद्भुत!
जवाब देंहटाएंबस कुछ और नहीं सुझा तो ये ही लिख दिया!
कल्पना के घोड़े भी अजीब होते है,अजीज होते है...
कुंवर जी,
बहुत सुन्दर रचना है, भावविभोर कर दिया आपने!
जवाब देंहटाएंजिस्म की मिट्टी में
जवाब देंहटाएंतुम्हारी आवाज अब भी
लिपटी हुई है..
अमरबेल की जड़े गहरी हैं लगता है
सुन्दर रचना
आपकी यह खूबसूरत कविता मेरी कविता का ही भाग जैसी लग रही है ,बहुत ही गहरी संवेदना से आपने अपनी भावनाओं को साझा किया है .... हार्दिक बधाई मेरी ।
जवाब देंहटाएंwaah dimple ji lajawaab...
जवाब देंहटाएंbahut sundar Dimple ji...
जवाब देंहटाएंये इत्तफाक था या लाज़मी ?
जवाब देंहटाएंकि
तुम वक़्त का
इक नन्हा सा टुकड़ा
जब कर रहे थे मेरे नाम
तभी बिरह के अनगिनत पल
सेंध लगा रहे थे वहीँ
SUNDAR KAVITA AUR PREM KA SANATAN DUKH
Pyar aur gehraai... shaayad inka sabse mazboot rishta hai!
जवाब देंहटाएंJab koi pyar ke baarey mein likhta hai na jaane kahaan se itni gehraai aa jaati hai!!
Main sochti hu kalaa toh ikk taraf hai likhne ki par gehraai tak jaa kar sochna aur mehsoos karna... aapko khoob aata hai :)
Regards,
Dimple
ये इत्तफाक था या लाज़मी ?
जवाब देंहटाएंकि
तुम वक़्त का
इक नन्हा सा टुकड़ा
जब कर रहे थे मेरे नाम
तभी बिरह के अनगिनत पल
सेंध लगा रहे थे वहीँ
kahna kya hai....
विक्षोह का अच्छा चित्रण ।
जवाब देंहटाएंहिज्र के दर्द को भी कोई इस ख़ूबसूरती से बयान कर सकता है भला... निशब्द हूँ... सच में अदभुत !!!
जवाब देंहटाएंग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
जवाब देंहटाएंहर रंग को आपने बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंkai baar padha...bahut comment likhe fir mita diye...apni tipaani tak nahi jachi...aap to comment karne layak bhi nahi chodti....SHHHHHH yahi behatr hain...lekin fir bhi kuch to kahna hi tha...aap hamari fav. jo hain :-)
जवाब देंहटाएंइस जबरदस्त कविता का टाईटिल हो सकता था ’तुम्हारे जाने के बाद’..
जवाब देंहटाएंएक coincidence भी है कि मैने रामदरश मिश्र जी की एक कविता अपने ब्लोग पर शेयर की है.. उसका टाईटिल है ’मेरे जाने के बाद’.. और रामदरश मिश्र जी ऎसे कहते है कि -
"छोड़ जाऊँगा
कुछ कविता, कुछ कहानियाँ, कुछ विचार
जिनमें होंगे
कुछ प्यार के फूल
कुछ तुम्हारे उसके दर्द की कथाएं
कुछ समय – चिंताएं
मेरे जाने के बाद ये मेरे नहीं होंगे
मै कहाँ जाऊँगा, किधर जाऊँगा
लौटकर आऊँगा कि नहीं
कुछ पता नहीं
लौटकर आया भी तो
न मै इन्हे पहचानूँगा, न ये मुझे
तुम नम्र होकर इनके पास जाओगे
इनसे बोलोगे, बतियाओगे
तो तुम्हे लगेगा, ये सब तुम्हारे ही हैं
तुम्ही मे धीरे धीरे उतर रहे हैं
और तुम्हारे अनजाने ही तुम्हे
भीतर से भर रहे हैं।
मेरा क्या….
भर्त्सना हो या जय जयकार
कोई मुझतक नहीं पहुचेगी॥
- रामदरश मिश्र"
"तेरे जाने के बाद
जवाब देंहटाएंढूँढती रहती हूँ
अमर बेल की जडें
जिस्म की मिट्टी में
तुम्हारी आवाज अब भी
लिपटी हुई है.."
ये आवाज ही तो कम्बख्त चिपकी हुयी है.. न जाने दीवारो घर के किस किस कोने से..
भावोँ का अच्छा संगुंफन रचना मे है । प्रेम की सहज अभिव्यक्ति के लिए बधाई ।
जवाब देंहटाएंप्रेम भी क्या अज़ब बनाया उस खुदा ने...रचनात्मकता सिर्फ प्रेम के अनुभव में हैं..जितना ज्यादा अनुभव उतना अनुभव का रस.../
जवाब देंहटाएंइस दिलकश कविता मे प्रेम के रंग को सघन बनाते तमाम अछूते बिंब इतनी खूबसूरती से पिरोये गये हैं..जैसे कि आषाढ़ की पहली बारिश के बाद पानी से भरे खेत मे धान के छोटे-छोटे पौधे रोपे गये हों..और एक हरापन पूरी कविता पर बहार बन कर छा जाता है..
जवाब देंहटाएंरात की जादूगरनी जिस तरह उजालों को सम्मोहित कर अपनी परछाई के शॉल मे छुपा कर चुरा ले जाती है अपने साथ..वैसा ही सम्मोहन कविता की शुरुआत से असर करने लगता है...फिर आँखों की लिखावट मे छुपे तमाम कूटशब्दों को पढ़ने की नाकाम कोशिश इसी सम्मोहन को रहस्यात्मक बनाती जाती है..कि सड़क के उस हिस्से की बेमौसमी बारिश वाली धूप मे भी आँखों के बादलों के बेचैनी झलकती है..
कविता के सबसे बेहतरीन हिस्सों मे से एक यह लगा
और तय कर लेती फासले सारे
उडती परवाजों के
पैरों के निशां नहीं हुआ करते.
परवाजों के पैरों के निशां की बात नयी नही है ..मगर यहाँ पर किसी के रास्तों की निशानदेही करते लफ़्जों के मुताल्लिक यह सफ़र एक नया अर्थ देता है..(मगर उडती परवाजें पुनरुक्ति दोष का शिकार लगता है)
और अमरबेल की जड़ें नही होती..वैसे ही जैसे जाने वाले के कदमों के निशां वक्त की गर्द मे खो जाते हैं..मगर जिस्म के मिट्टी मे लिपटी आवाज का सोंधापन....जैसे बारिश के हो चुकने के तमाम वक्त बाद तक भीनी खुशबू मिट्टी से आती रहती है..
कविता के लिहाज से दूसरा और आखिरी से पहला स्टैंजा बाकी के मुकाबले कुछ फ़ीका सा लगा..मगर कुल मिला कर यह पढ़े जाने के देर बाद तक जेहन मे खुशबू सी महकती रहती है..भूले सी ही मगर अपनी परछाई छोड़ जाती है..रात के बरअक्स..
पहले गालिबन कहते थे अब अपुर्वन कहते हैं....
जवाब देंहटाएंसिर्फ इतना कह सकता हूं कि बेहतरीन....अपूर्व जी के विश्लेषण के बाद भी.....बेहतरीन....दिल कूल कूल हो गया..अंग्रेजी शब्द इसलिए कि सारे शब्द तो आपने समेट लिए हैं. मैं कहां से लाउं शब्द।
जवाब देंहटाएंwell done! No one can say better than what you have said in your poem.
जवाब देंहटाएंये इत्तफाक था या लाज़मी ?
जवाब देंहटाएंकि
तुम वक़्त का
इक नन्हा सा टुकड़ा
जब कर रहे थे मेरे नाम
तभी बिरह के अनगिनत पल
सेंध लगा रहे थे वहीँ ,...
गुलज़ार की नज़मों की याद आ जाती है जब कभी आपकी नजमें पढ़ता हूँ ... कई बार पढ़ने पर अलग अलग अर्थ निकल कर आते हैं ... लाजवाब है ये नज़म भी इस कड़ी में ...
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जवाब देंहटाएंmere blog par meri nayi kavita,
हाँ मुसलमान हूँ मैं.....
jaroor aayein...
aapki pratikriya ka intzaar rahega...
regards..
http://i555.blogspot.com/
bahut achhi lagi kavita aapki
जवाब देंहटाएंaap ko badhai ho
तेरे जाने के बाद
जवाब देंहटाएंढूँढती रहती हूँ
अमर बेल की जडें
जिस्म की मिट्टी में
तुम्हारी आवाज अब भी
लिपटी हुई है..
luvd these lines very much
andar tak uttar gai aapki rachna...bahut khoob!!!
जवाब देंहटाएंhttp://liberalflorence.blogspot.com/
great, kabhi kabhi achanak koi pathar apse hat jata hai aur niche se kuch chamkte moti nikal padte hai.. kuch aisa hi hua, maine next Blong per click kiya aur apka blog nikal aaya. kuch khaas baat hai...
जवाब देंहटाएंAmit K Tyagi at http://yezindagihain.blogspot.com/
ये इत्तफाक था या लाज़मी ?
जवाब देंहटाएंकि
तुम वक़्त का
इक नन्हा सा टुकड़ा
जब कर रहे थे मेरे नाम
तभी बिरह के अनगिनत पल
सेंध लगा रहे थे वहीँ
मेरे लिए पूरी नज़्म यही है ......ओर सच पूछूँ तो मै इसे आगे बढ़ने भी नहीं दूंगा ......पता नहीं तुमने परवीन शाकिर क पढ़ा है या नहीं ...मै उस बंदी को इसलिए पसंद करता हूँ के छोटे छोटे लफ्ज़ के टुकडो से वो पूरी ईमारत खड़ी कर देती है ........ऐसी जो कई दिनों कई बरसो तक अपना रंग कायम रखती है ......
चौथे,पांचवें और छठें स्टैंजा में विक्षोह के क्षणों को मार्मिक ढंग से चित्रित करने का प्रयास किया गया है लेकिन इस प्रयास ने शुरुआत की बेहतरीन पंक्तियों के वजन को कम कर दिया है. अंत मार्मिक है.
जवाब देंहटाएं...जड़ें वहीँ जमती हैं जहाँ की मिट्टी नम हो.
...अच्छी कविता के लिए बधाई.
प्रेम की कोंख में
जवाब देंहटाएंजो भी उगता है
पता नहीं...इतना सुन्दर कैसे हो जाता है
आश्चर्य सा होता है हमेशा...
meri nayi kavita..
जवाब देंहटाएंtum aao to chiraag raushan hon...
तेरे जाने के बाद
जवाब देंहटाएंढूँढती रहती हूँ
अमर बेल की जडें
जिस्म की मिट्टी में
तुम्हारी आवाज अब भी
लिपटी हुई है..
laajabaab, bahut badhiya.
मुझे अब तक नहीं मालूम
जवाब देंहटाएंकि उस दिन
तुम्हारी आँखे
हँसती थी
बोलती थी
या फिर उदास सी थी..
vivj2000.blogspot.com
लम्हा लम्हा रौशन होती गयी
जवाब देंहटाएंजब जब तेरे ख्यालो को सीने से लागाया
खुश्बूये मोह्ब्बत जब जब जवाँ हुई
वक्त को ठ्हरा हुआ पाया !
bahut sundar!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर शब्दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...
जवाब देंहटाएंतेरे जाने के बाद
ढूँढती रहती हूँ
अमर बेल की जडें
जिस्म की मिट्टी में
तुम्हारी आवाज अब भी
लिपटी हुई है..
लम्बा समय!..और कुछ नया नही??
जवाब देंहटाएंbahut hi sunder rachna.
जवाब देंहटाएंतेरे जाने के बाद
जवाब देंहटाएंढूँढती रहती हूँ
अमर बेल की जडें
जिस्म की मिट्टी में
तुम्हारी आवाज अब भी
लिपटी हुई है.
kaise kahun, tippani ke liye shabd talashne jaa raha hun..har bhaag ek kavitaa hai
:)
जवाब देंहटाएंkyunki kuchh tipanniyaan bas tipanniyan nahin hotin
मैं चिटठा जगत की दुनिया में नया हूँ. मेरे द्वारा भी एक छोटा सा प्रयास किया गया है. मेरी रचनाओ पर भी आप की समालोचनात्मक टिप्पणिया चाहूँगा. एवं यह भी जानना चाहूँगा की किस प्रकार मैं भी अपने चिट्ठे को लोगो तक पंहुचा सकता हूँ. आपकी सभी की मदद एवं टिप्पणिओं की आशा में आपका अभिनव पाण्डेय
जवाब देंहटाएंयह रहा मेरा चिटठा:-
**********सुनहरीयादें**********
गज़ब के भावो का सागर लहराया है जिसमे से बाहर आने का मन ही नही कर रहा…………अति उत्तम रचना।
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