मंगलवार, 30 मार्च 2010

याद है..
वो पीपल पुराना सा.
डलकती,लटकती,
उलझती शाखाये.
झूलें कई पड़े थे ,
मगर,
टूटी नहीं कभी,
बोझ से उसकी बाहें..

ताश की बाज़ी,चोसर के पासे,
हंसी के ठहाके,
कुछ गहरी सी बातें.
कुछ छुपना छुपाना,
कुछ मिलना मिलाना..

अमावास को जलाये,
कई दिए थे पड़े,
मन्नतो के धागे,
बरसो से थे बंधे..

कई बदले मौसम,
कई आई ऋतुए .
लिपटती डोरें ,
उतरती पतंगे.
डलती शामें,
लौटते परिंदे.
खुशनुमा यादो के,
बुझने लगे सूरज.
कोई पूछने न आये,
क्यूँ उदास है छाँव,
और क्यूँ चुप हो गये साए..

उम्र के आखरी पडाव में,
रह जाती ही तन्हाई ,
और बस चंद यादें ..

13 टिप्‍पणियां:

  1. "पीपल तो अब दिखते ही नहीं हैं पर यादों में ,प्रतीक के रूप में वे अभी भी कायम हैं...

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  2. Hello Dimple,

    It reflects all the pain and sadness.
    But I tell you.... your writing skills are fantastic.

    I can draw a new picture everytime I read your composition.

    Perfect and really good one!

    Regards,
    Dimple

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  3. ताश की बाज़ी,चोसर के पासे,
    हंसी के ठहाके,
    कुछ गहरी सी बातें.
    कुछ छुपना छुपाना,
    कुछ मिलना मिलाना..

    अनगिन यादे है. कुरेद दिया फिर से.
    सुन्दर

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  4. उम्र के आखरी पडाव में,
    रह जाती ही तन्हाई ,
    और बस चंद यादें ...

    सच कहा है ..... अंतिम दोनो में वो सब याद आता है जो इस तेज़ी में भूल जाता है ... अच्छा लिखा है बहुत ही ...

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  5. सीरियसली यार...डरा दिया तुमने तो
    परिवार थोडा बढ़ा लें तो कैसा रहेगा!!!

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  6. सच कहें तो खूब मज़ा नही आया.. इस बार!

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  7. "अमावास को जलाये,
    कई दिए थे पड़े,
    मन्नतो के धागे,
    बरसो से थे बंधे.."

    यही सब तो याद देता है हमेशा.. वो हर एक धागा जो किसी और के लिये बान्धा था.. और उम्र के आखिरी पडाव को देखा नही पर मेरा भी मानना यही है कि तन्हाई और खट्टी मिश्री यादो के साथ ही उसे जिया जाता होगा।

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  8. टाइम लाइन की तरह ...पूरी जिंदगी सिमटी है कविता में ...

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  9. काव्य में जीवन के अनेकों-अनेकों पड़ाव
    शामिल हैं ,,,,,सुख,,दुःख,,,पीड़ा,,आनंद,,,,
    सब कुछ लफ़्ज़ों में सिमट आया है
    खूबसूरत लहजा ,,,स्तरीय शैली
    वाह .

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  10. जिसका कोई नहीं उसका भगवान होता है महसूस तो करो

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  11. I have been there, and am glad you took me to walk down the memory lane. I really appreicate the fact that your poems give me chance to revisit some relations and places. Keep writing.

    To darshan

    Sorrry for not responding to your post immediately.I think self-pity and sadism are big words and reflect judgemental attitudes. Not all males think the way you think, not all women are fortunate to have someone like you around. Women are leaving men far behind but we can not make generalisations. We do not live in a vaccum so can not take responsibilty for other people's action. Even in developed countries the middle rungs of success ladder are hard to get to by women and top rungs are out of reach. As you go up in the hiearchy you do not see much of this gender there. Women do not need special rights or quotas as humans they need equal rights. Do not take things too personally and let us leave this blog for commenting on Dimple's beautiful poems.

    Cheers mate

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