शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

आज,
कच्चे पक्के रास्तों से गुजरना हुआ.
सब वैसा ही था.

आज भी,
'ब्लैक बोर्ड' पे लिखा सवाल,
नहीं निकला मुझसे.
मेरी झुकी गर्दन...
झुकी निगाहों पे...

चुभी,
...कई हंसती आँखे.

कई होंठ बुदबुदाये,
''पागल''
इतना आसान सवाल भी नहीं जानती.

नहीं जानते...
मुझे कितनी जरुरत है दुआओ की?

मेरी पेंटिंग की कॉपी में ...
मिला पहला 'गुड',
अभी भी फीका नहीं पड़ा था.

चलते चलते चुभा,
कुछ पांव में.
मेरी टूटी पायल थी.
जिसे,
कभी फैंक नहीं पाई मैं...

वो 'पत्थर' जिन्हें टकरा के....
निकलती थी चिंगारिया,
ज्यो के त्यों पड़े थे.

मैंने उठाया ....
महकते हुए कागज़ पे
लिखा 'इक नाम'.
मुट्ठी में दबा के फैंक दिया उन रास्तो पे कही.....
जहा चीज़े पड़ी रहती है बरसों तक.....
'ज्यूं' की 'त्यूं' .....

पीछे पलट के देखने के मोह को रोका.......
आसमां की ओर देख के....
बस इतना कहा,

खुदाया.......
''मेरी रूह टिक जाए बस अपनी जगह"

28 टिप्‍पणियां:

  1. हैरत है... मैं कल ही शामिल हुआ और 'राज़' खोल दिया... वैसे यह बवंडर क्यों ?

    मुझे लगता है मैंने आज की सबसे सशक्त कविता पढ़ी है... कुछेक लाइन को मौलिकता लिए हुए हैं... प्रायोगिक जैसे...

    ब्लैक बोर्ड पे लिखा सवाल नहीं निकला मुझसे....
    मेरी झुकी गर्दन...
    झुकी निगाहों पे...
    चुबी कई हंसती आँखे....
    कई होंठ बुदबुदाये.....
    ''पागल''

    हाँ चुबा को चुभा कर लें... अच्छे ब्लॉग पर इस्पेल्लिंग की गलतियाँ खटकता है...

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  2. कई होंठ बुदबुदाये.....
    ''पागल''
    इतना आसान सवाल भी नहीं जानती.....
    नहीं जानते ....
    मुझे कितनी जरुरत है दुआओ की....

    waah bahut sundar ..behtreen rachna likhi hai aapne shukriya

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  3. मैंने उठाया ....
    महकते हुए कागज़ पे लिखा....
    इक नाम....
    मुट्ठी में दबा के फैंक दिया उन रास्तो पे कही.....
    जहा चीज़े पड़ी रहती है बरसो तक.....
    वाह ! अद्भुत
    बहुत सुन्दर कविता और अभिव्यक्ति

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  4. प्‍यारा लि‍खा है

    मुझे याद आया ऐसे ही एक बार एक कागज हमने भी कि‍सी के सामने फेंका था, और वो उड़ता उड़ता पता नहीं कहां गया, और ऐसे ही जि‍सको पढ़ना था वो भी।

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  5. सागर जी सही कहा अपने नाम से सबसे बेहतरीन शुरुआत ....बधाई ....!!

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  6. मैंने उठाया ....
    महकते हुए कागज़ पे
    लिखा 'इक नाम'.
    मुट्ठी में दबा के फैंक दिया उन रास्तो पे कही.....
    जहा चीज़े पड़ी रहती है बरसों तक.....
    'ज्यूं' की 'त्यूं' .....

    bahut hi khubsoorat ahsaas aur lajabaab abhivyakti..
    (apne blog par dimpi ke comments dekh, dekhne chali aayee..kaun hain ye mohtarma??...aur arey ye to apni raj niklin...jo pahli posts se hi mera hausla badhaati aaye hain.thanx a ton raj arrr Dipti :):) )

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  7. ....................
    ............
    .......

    (क्यूंकि कुछ टिप्पणियाँ बस 'टिप्पणियाँ' नहीं होती.)

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  8. '' मेरी पेंटिंग की कॉपी में ...
    मिला पहला 'गुड',
    अभी भी फीका नहीं पड़ा था. ''
    कभी भी फीका न पड़े आपकी कविता में 'गुड 'का तत्व ...........
    सुन्दर कविता ... ...

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  9. इश्क और हुस्न की बर्बादियां एक है,
    दास्ताने मोहब्बत कुछ फ़र्क नही कहानी-ए-बर्बादी से!

    सुन्दर भाव सुन्दर शब्द!

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  10. apni jagah siraf pathar tika karte hain ...roohein to hoti hain bhatakane ke liye..lekin ye kavita sundar hai aur ..

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  11. खुदाया ...मेरी रूह टिक जाए बस अपनी जगह ..
    जीने को और क्या चाहिए ..!!

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  12. अरसे बाद वैसी कविता पढने को मिली जिसकी चाह मन में थी.
    बरसों पहले समंदर के हवाले किया गया किसी आत्मीय का पत्र,जो अनायास ही हाथ लग गया हो.
    सुंदर काव्य.

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  13. शायद आप नही जानते होगे कि क्यों आपकी कविता इतनी पसंद आती हैं...और इतनी अपनी सी लगती हैं...
    ..और आपकी कविताएं मानवीय मन को सबसे सहज रूप मे अभिव्यक्त करते हुए भी उसकी पवित्रता को बचाये रखती हैं..दिल के कुछ सबसे पाक खयाल अनायास अपनी जगह बना लेते हैं कविता में..जैसे विवशता को सहज तरीके से स्वीकारना
    डूबते सूरज के पीछे पीछे चलती हूँ,
    जब डूब जाता है तो लौट आती हूँ।
    कही वो भी कोई उगता सूरज तो नहीं है?
    ..और दुःखों के बावजूद जीवन से सकारात्मक कम्प्रोमाइज
    तूं शर्मिंदा न होना...
    न आ पाने पे अपने....
    कोइ मजबूर हालात रहे होंगे......

    फिर जब आज आप यह कहते हो

    आज भी,
    'ब्लैक बोर्ड' पे लिखा सवाल,
    नहीं निकला मुझसे.
    कई होंठ बुदबुदाये,
    ''पागल''
    इतना आसान सवाल भी नहीं जानती.

    तो यह ईमानदारी अपनी सहज साधारणता के साथ न जाने कितने दिलों मे प्रतिध्वनित होती है..
    और उन्ही दिलों का अपनी छोटी उपलब्धियों की खुशी से जलता १० वॉट का सीएफ़एल..जो रोशनी भले कम देता हो..मगर बहुत लम्बी उमर तक देता है रोशनी

    मेरी पेंटिंग की कॉपी में ...
    मिला पहला 'गुड',
    अभी भी फीका नहीं पड़ा था...
    तो लगता है कि सच इन्ही गुड और नाट-सो-गुड बातों से मिल कर बना है हमारा जीवन.
    फिर अपनी तमाम अच्छी स्मृतियों के बीत जाने के बाद भी उनसे जुड़े रहने का सहज मोह

    चलते चलते चुभा,
    कुछ पांव में.
    मेरी टूटी पायल थी.
    जिसे,
    कभी फैंक नहीं पाई मैं...

    और फिर अपने बस मे न होने के बावजूद खुद को सम्हाल पाने की गुजारिश..दुआ

    नहीं जानते...
    मुझे कितनी जरुरत है दुआओ की?
    ''मेरी रूह टिक जाए बस अपनी जगह"

    सच कहूँ तो आप खुद नही जानते होगे कि आप क्या लिखते हो..और क्या तासीर है उसकी..
    आमीन

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  14. Raaz.......aapka blog pahle bahut khoobsoorat tha....hamko to wahi purana pasand tha....sach mein Dreams Unlimited...aur ye jo aap kalam se jaadoo karti hai na kamaal hai.... sabne itni tareef ki hai..ki ham kya bole .......bas dil se dua nikalti hai " God bless you"

    regards,
    Priya

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  15. खुदाया.......
    ''मेरी रूह टिक जाए बस अपनी जगह"

    Ruh to badal nahiN sakti isliye tiki rahegi magar ab profile picture ki tarah nam badalne ka silsila to nahiN shuru ho jayega !?

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  16. सबके कहने के बाद कुछ कहने लायक बचा नहीं सिर्फ इसके सिवा ...
    'मेरी रूह टिक जाए बस अपनी जगह"

    अति सुंदर!

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  17. पीछे पलट के देखने के मोह को रोका.......
    आसमां की ओर देख के....
    बस इतना कहा,
    खुदाया.......
    ''मेरी रूह टिक जाए बस अपनी जगह"

    BAHU HI GAHRI BAAT .... ANOKHE SAFAR SE GUZARTI HUYE RACHNA .... SADAK PAR FAINK DIYA VO NAAM FIR ROKE RAKKHA APNI ROOH KO ....
    BAHUT MUSHKIL HOTA HAI ROKNA AISE MEIN APNE DIL KO ..... LAJAWAAB PRASTUTI HAI ....

    जवाब देंहटाएं
  18. कुछ अच्छे ब्लॉग जाने कैसे छूट जाते हैं..खैर अब फीड संजो लिया है....!

    चलते चलते चुभा,
    कुछ पांव में.
    मेरी टूटी पायल थी.
    जिसे,
    कभी फैंक नहीं पाई मैं...

    खुदाया.......
    ''मेरी रूह टिक जाए बस अपनी जगह"
    आह; खुदाया ये रूह..! रूह की तो तासीर ही नहीं है रुकने की...! इसीलिये लोग अरमां पे आह भरते हैं...!
    शिल्प..यूँ जैसे अपने-आप से बातें करूं और अकेले काली रात में एक रास्ते पर कहीं किसी कुत्ते की भौं-भौं भी ना सुनायी दे रही हो...और "'ज्यूं' की 'त्यूं' " वाली चीजों को घूरता चला जा रहा होऊँ...! मुझे तो ऐसा ही लगा..सच्ची ...!!!

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  19. मैंने उठाया ....
    महकते हुए कागज़ पे
    लिखा 'इक नाम'.
    मुट्ठी में दबा के फैंक दिया उन रास्तो पे कही.....
    जहा चीज़े पड़ी रहती है बरसों तक.....
    'ज्यूं' की 'त्यूं' .....

    apne pyaar apni aastha ko banayein rakhne ki har mumkin koshish..
    har jagah har taraf har cheez mein dikhta bas ek wahi
    uski har yaad ko uski har baat ko yahan tak ki uske naam ko hamehsa ke liye sanjone ki koshish..

    har baar ki tarah Raj (Dimple) aapki yeh rachna aapke dil ka har haal keh gayi.

    -Sheena

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  20. कविता के बड़े होने की जिद को पूरा कर पाना मुश्किल है. सागर सही कहते हैं और सबने सराहा है इसे तो बेजा नहीं है. म्हने थारी सगली कवितावां घणी दाय आवे... फूटरी अर नितईज ठावी फूटरी.

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  21. कुछ सवाल, जिनके जवाब खोजो तो...खुद को खो देने का डर होता है और मजा भी एक जवाब के विशाल कायनात में मिल जाने का...

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