गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

नज़रे तैर के,
दूर चली जाती है
अतीत के फलक तक..

हालाकि याद नहीं ठीक से मुझको
पर कभी बहुत पहले पहल..
..वक़्त...
...रहा होगा..
यही कोई..
धूप का आखरी पहर.
.जगह..
..वही सीमेंट का बेंच..

तुमने कहा था-
अभी तो...
...नाचते है लफ्ज़ो के मोर
कोरे पन्नो पे..
खुशनुमा बादल बरसते है
जब शबनम की तरह..

तुमने कहा था
शायद..
..आने वाले मौसमों को सोच के..
कहीं यूँ न हो के दूर होके..
महसूस करें कोई कमी..
बिछड़ना बस में न रहे..
वक़्त को बीनते-बीनते
थक ना जाये कहीं...
चलो ऐसा करे..
..बात कम-कम करदें..

मुझे बस इतना बतादो...
ये कहते हुए..
...तुम्हारी आँखों में लरज़ रही थी धड़कने..
या कोई सैलाब उतर आया था..
तुम्हारे होंठों की मुस्कान
बराबर बनी हुई थी कि नहीं...

23 टिप्‍पणियां:

  1. डिम्पल की लिखी "Sunset Point" :)

    अब और बचा क्या कहने को !

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  2. तुम्हारी आँखों में लरज़ रही थी धड़कने..
    या कोई सैलाब उतार आया था..
    तुम्हारे होंटों की मुस्कान
    बराबर बनी हुई थी कि नहीं...
    kya shabd bhaw hain

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  3. वक़्त को बीनते-बीनते
    थक ना जाये कहीं...
    चलो ऐसा करे..
    ..बात कम-कम करदें..


    one word........beautiful!
    wut else can i say.....kahin uda le jaati hai apne saath....sways me away....tooooo good :)

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. तकरीबन उसी वक़्त
    धूप के उसी शेडो में
    जब वो सीमेंटी बेंच
    थोड़ी ठंडी होने लगती थी
    उम्र के तमाम सफ्हो को
    पलट कर देखा.......

    कितने बुकमार्क आये है न तुम्हारे हिस्से में !

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  6. तुम्हारी आँखों में लरज़ रही थी धड़कने..
    या कोई सैलाब उतार आया था..
    तुम्हारे होंटों की मुस्कान
    बराबर बनी हुई थी कि नहीं...

    क्या खूब कहा है…………दिल को छू गयी आपकी अभिव्यक्ति।

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  7. यह तस्वीर जो आपने लगायी है, मुझे बड़ी प्यारी है. इस शहर में भी मेरा एक पसंदीदा पार्क है. पार्क के बीचोबीच पेड़ है और ऐसा ही बेंच...... शाम का वक़्त और कहने को क्या कुछ बांकी रह जाता है ... तो जो आपने लिखा है वो बस उसी बचे हुए का एक हिस्सा है.

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  8. मेरी तस्वीर में
    हाथों से आंसू मत समेटना
    जी लेना..
    उस धूल को..
    जहाँ सब बिखरा है
    तेरे नाम से..
    अप्रतिम.. असीम.. एहसास में भींगी है आपकी कविता.....

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  9. जब ऐसा कुछ अतीत बन जाता है...इतने एहसासों से क्यों भर जाता है? शायद जुदा होना भी बहुत खूबसूरत है...क्योंकि इसकी याद हमेशा इतना ज़ेहन में रहती है जितना शायद साथ रहने पर वो शख्स भी नहीं होता...

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  10. pyara...par lagta hai aapne ise janbujh kar abhi adhura chora hai...shayad :)

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  11. लास्ट की चार लाईन्स जबरदस्त है..

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  12. अतीत को समेटे बेहतरीन प्रस्तुति

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  13. चलो ऐसा करें, बातें कम-कम कर दें...लेकिन कहाँ हो पाता है? हो पाता है क्या?

    ये मुझे कवितायें पढ़ना बंद करना पड़ेगा...कई बार सोचा ऐसा कि इन कविताओं को पढ़ने के बाद अपने लिखे पे शर्म-सी आती है। अब समझ में आया कि उस दिन बेवजह का मुझे चने के झाड़ पे चढ़ाया जा रहा था नंबरिंग कर के। नहीं? श्रीमानजी लोगों के कमेंत तलाश कर रहा हूँ। कहाँ हैं सारे के सारे बैरंगी?

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  14. दिल का लरजना,
    मुस्कान का परसना
    कौन जाने क्या था ?
    हाँ! बाते कम कम ही बेहतर होती होंगी शायद
    और खामोशियों पर भी ऐतराज़ हो शायद :-)

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  15. प्रेमदिवस की शुभकामनाये !
    कई दिनों से बाहर होने की वजह से ब्लॉग पर नहीं आ सका
    बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

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  16. bahut khoob, ek do jagah ruk sa gaya ,kuch yaade saath nahi chhodti hai ,,

    zidnagi ke raftaar me aapki ye kavita ne ek sakun diya ..
    badhayi

    -----------
    मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
    आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
    """" इस कविता का लिंक है ::::
    http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
    विजय

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  17. "tum bahut achaa likhti ho" | baki is line ko apne shabdo ki jadugari se behtara kar jaise jee chahe vaise padho.:)
    satya

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  18. aur please jo tumhari kavita ke sath apna link bhi bheje use hata do. :)

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...क्यूंकि कुछ टिप्पणियाँ बस 'टिप्पणियाँ' नहीं होती.