मंगलवार, 14 सितंबर 2010

लम्हात

तुम पहले पुरुष हो...
और मैं पहली स्त्री...
ऐसा कुछ याद तो नहीं पड़ता...
मैं भूल गयी हूँ,
ऐसा भी नहीं है....
ये प्यार भी नहीं है,
पहला पहला....
कई सदियो तक का सफ़र...
और फिर पहुंचा है हम तक....

जब होगा इक नया युग..

तब भी...
किसी पूर्व से निकलेगा कोइ नया सूरज,
और छिप जायेगा किसी नए पश्चिम में......
फिर छिड़ेगा पहली बारिश का अनहद नाद....

तब भी...
अवशेष दबे होंगे प्यार के,
किसी नज़म के तले..
कही कही होंगे निशाँ किसी दर्द के,
दबे पांव चलने के....
आँखे भी नम होंगी ज़रा ज़रा सी बात पर.....
मिल जायेगी कही दुबक के बैठी हुई मुस्कान भी......

वो नया युग होगा....
मैं पहली स्त्री हूँगी...
और तुम पहले पुरुष......


**********************

रुक गयी...
छींक यूँ आते आते मुझको.....
तूं रह गया......
याद करते करते मुझको....
किसी और ख्याल ने,
रास्ता तेरा काटा होगा.......

दैनिक राशिफल-
आज कोइ शुभ समाचार मिलेगा.....


*************************



तूं शर्मिंदा न होना...
न आ पाने पे अपने....
कोइ मजबूर हालात रहे होंगे......
मगर..
इक बार बताओ तो सही....
तुम
उस रोज़
आये क्यूँ नहीं???



*************************


कई बार हटाया,
फ़िर आ ही जाते है....
दीवार के इस कोने में...
कभी उस कोने में....
महीन महीन,
कितने भी हटाओ...
आज या कल,
ये फ़िर होंगे....
ज़हन की दीवारों पे,
यादो के जाले......



*********************



टूट भी नही पाता,
और जुड़ता भी नही....
सिमटता भी नही किसी तरह...
बिखरता भी नही है....
मेरा और तुम्हारा रिश्ता,

सदियो से लगी खुलती ही नही,
कई बार तुमने तोड़नी चाही
कई बार मैंने भी...
बड़ी पेचीदा गांठे है इसकी....



*****************************





तुम कहते हो चलो रोंप देते है,
गुलमोहर के पेड़ सडको के दोनों तरफ़।
ताकि आने वाली पीढिया कर सके,
इश्क की बातें इनके नीचे।
मैं पूछती हूँ पिछली पीढियो ने ,
ये क्यूँ नहीं रोपे ???


**********************



शून्य से शीर्ष तक जाना था,
मुझे साथ तुम्हारे।
मन ही मन कुछ जोड़ के,
कुछ घटा के,
न जाने क्या सोच के।
तुम मुझे सिफ़र पे ही छोड़ गये।


मैं कहा जाऊँ अब?






मैं वाकिफ नही हूँ इन रास्तो से.
इस तरफ़ अकेलेपन का जंगल है.
तो उस और तन्हाई का समन्दर ।
आगे भी गहरे अंधेरे है।
और पीछे?
वो दुनिया जिसे मैं दाँव पर लगा आयी थी.........


**************************



मेरे रेत के घरोंदे,
हर रात कौन तोड़ जाता है??
अक्सर सोचती,
हर सुबह,
नया घर बनाते हुए।
आज सुबह,
तुम्हारे पाँव पे मिट्टी लगी हुई देखी........

42 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा संकलन है...पर ये सब किस मोड़ से जा रहे हैं!!!

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  2. अच्छी रचनायें.....
    पढ़कर बेहद अच्छा लगा ।
    बधाई

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  3. dimple...tumhe daad deti hoon..kya racha tumne..beautiful...तब भी...
    अवशेष दबे होंगे प्यार के,
    किसी नज़म के तले..
    कही कही होंगे निशाँ किसी दर्द के,
    दबे पांव चलने के....
    आँखे भी नम होंगी ज़रा ज़रा सी बात पर.....
    मिल जायेगी कही दुबक के बैठी हुई मुस्कान भी......


    वो नया युग होगा....
    मैं पहली स्त्री हूँगी...
    और तुम पहले पुरुष......

    जवाब देंहटाएं
  4. गोया तुम्हे पढता हूँ कई लोग याद आते है ..........मेरी एक पसंदीदा शख्स है .परवीन शाकिर .....उन्होंने बेइंतिहा डूब के लिखा है ओर बिना इस दुनिया की परवाह किये ......ज्यादातर मोहब्बत पर .....मसलन



    "नींद इस सोच से टूटी अक्सर
    किस तरह कटती है राते उस की "


    मोहब्ब्बत अजीब शै. है ...कितना लिखो इसके सफ्हे कभी ख़त्म नहीं होते .. ...ओर देखो न हर आदमी मोहब्बत पर नहीं लिखता....!

    गुलमोहर के पेड़ सडको के दोनों तरफ़।
    ताकि आने वाली पीढिया कर सके,
    इश्क की बातें इनके नीचे।
    मैं पूछती हूँ पिछली पीढियो ने ,
    ये क्यूँ नहीं रोपे ???
    i love this.......

    and regarding this.......


    तूं शर्मिंदा न होना...
    न आ पाने पे अपने....
    कोइ मजबूर हालात रहे होंगे......
    मगर..
    इक बार बताओ तो सही....
    तुम
    उस रोज़
    आये क्यूँ नहीं???




    मुझे परवीन फिर याद आती है ......

    शायद तुम्हारी तरह मोहब्बत उनका पसंदीदा सफहा था...इसलिए .....सो उनका एक शेर .....

    निकले है . तो रस्ते में . कही . शाम भी होगी
    सूरज भी मगर आयेगा इस राह -गुज़र से

    i like these two more........

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  5. डिम्पल जी ! आपकी पहली कविता ही काफी है एक बार के लिए,आपकी लघु कविताएँ भी प्रभावी हैं किन्तु यदि आप उन्हे बारी बारी से पोस्ट करती तो अधिक सुंदर होता । आपको बहुत बहुत बधाई ।

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  6. छींक यूँ आते आते मुझको.....
    तूं रह गया......
    याद करते करते मुझको....

    --

    मुझे सबसे सुन्दर यह पंक्तियाँ लगी.
    आपकी भाषा बहुत ही सरल और प्रवाहमान है. पढकर एक अजीब सुकून मिलता है.. लगता है मेरे दिल में जो उधेड़बुन है उसे किसी ने यहाँ लिख दिया है..

    मनोज खत्री
    http://www.manojkhatrijaipur.blogspot.com/

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  7. wahhh dimpale bahut khoob !! likhte rahiye swagat Hai mere blog par bhi padharen !!

    JAI HO MANGALMAY HO

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  8. shayad kuch lambi ho gayi post......
    achhi rachnaon ke bawzood bojhil si lagi.....

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  9. dimple ji bahut sunder kavitayen hai sari ki sari inhe padhkar to jinhe ishq nahi hai use bhi ho jayega.....

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  10. बड़े दिनो बाद ख़ालिस भाव उतारने को मिले हृदय में।

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  11. प्रवीण पांडे जी ने सही कहा है... बड़े दिनों बाद कैसी खालिश भाव पढने को मिले... बेजोड़... हो ना हो अबकी ६० होने कि दुआ समय पहले पूरी जरुर होगी.

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  12. सुशीला पुरी जी की टिप्‍पणी को ही हमारी भी टिप्‍पणी मानी जावे.

    धन्‍यवाद.

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  13. सुंदर सुंदर भावपूर्ण रचना...प्रस्तुति के लिए बधाई ..हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामना

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  14. ६०... ;)

    इत्त्फ़ाक है कि अनुराग जी ने जो पसंद की वही वाली मैंने बज पर शेयर की है :-) सारे टुकडे अजीबो अजीब (गरीब नहीं कहूंगा) हैं.. कुछ ’शायद’ पहले ही तुम्हारे ही ब्लॉग पर पढे हुये हैं सही से याद नहीं आता.. कुछ ’देजा वू’ टाईप अहसास हो रहा है..

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  15. गजब...गजब!!

    मगर इतना कम क्यूँ लिखा जा रहा है..जरा नियमित हों.

    शुभकामनाएँ.


    हिन्दी के प्रचार, प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है. हिन्दी दिवस पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं साधुवाद!!

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  16. बहुत सुन्दर, शानदार और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो प्रशंग्सनीय है! बधाई!

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  17. डिम्पल जी,

    एक-एक कविता बेहतरीन है -

    "टूट भी नही पाता,
    और जुड़ता भी नही....
    सिमटता भी नही किसी तरह...
    बिखरता भी नही है....
    मेरा और तुम्हारा रिश्ता,

    सदियो से लगी खुलती ही नही,
    कई बार तुमने तोड़नी चाही
    कई बार मैंने भी...
    बड़ी पेचीदा गांठे है इसकी...."

    "मेरे रेत के घरोंदे,
    हर रात कौन तोड़ जाता है??
    अक्सर सोचती,
    हर सुबह,
    नया घर बनाते हुए।
    आज सुबह,
    तुम्हारे पाँव पे मिट्टी लगी हुई देखी........"

    ऐसा लगा जैसे गुलज़ार साहब की नज्मे पढ़ रहा हूँ ..........आपकी लेखनी काफी ऊचाइयों को छूती है .......पर एक बात मेरा मशवरा है की एक बार में एक रचना हो तो उसे पड़ने का मज़ा बढ़ जाता है | मेरी शुभकामनाये |

    कभी फुर्सत में हमारे ब्लॉग पर भी आयिए-
    http://jazbaattheemotions.blogspot.com/
    http://mirzagalibatribute.blogspot.com/
    http://khaleelzibran.blogspot.com/
    http://qalamkasipahi.blogspot.com/

    एक गुज़ारिश है ...... अगर आपको कोई ब्लॉग पसंद आया हो तो कृपया उसे फॉलो करके उत्साह बढ़ाये|

    जवाब देंहटाएं
  18. कई कई रोज में उतरे होंगे ये सफ्हे..नहीं??

    मेरा पसंदीदा...

    तूं शर्मिंदा न होना...
    न आ पाने पे अपने....
    कोइ मजबूर हालात रहे होंगे......
    मगर..
    इक बार बताओ तो सही....
    तुम
    उस रोज़
    आये क्यूँ नहीं???

    जवाब देंहटाएं
  19. uff....kitna kuch likha hai logon ne ...ham samajh nahi paa rahe kya kahein...waise ham ye saare padh chuke hain purane wale blog par...kuch to save kar pass bhi rakh li....jab kabi dil karta hain to aa jate hain tumhari gali

    जवाब देंहटाएं
  20. शून्य से शीर्ष तक जाना था,
    मुझे साथ तुम्हारे।
    ....
    तुम मुझे सिफ़र पे ही छोड़ गये।
    ......
    वो दुनिया जिसे मैं दाँव पर लगा आयी थी...
    ......
    ......
    nice lines
    its a pleasure to read these poems

    जवाब देंहटाएं
  21. बढ़िया प्रस्तुति,
    यहाँ भी पधारें :-
    अकेला कलम...

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  22. अप्रतिम रचनाएँ...अद्भुत...वाह...
    नीरज

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  23. ....सुंदर रचनाओं का जमघट...एक से बढ कर एक....अति सुंदर!....धन्यवाद डिंपल!

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  24. कोई तो शब्द छोड़ देती
    हर दरो-दिवार से खुरच कर
    पेड़ों से तोड़कर
    चलती हवा से झोंके लेकर
    हर छुपी मुस्कान से चुरा कर
    हर अखबार के राशिफल से
    शुभफल निकाल कर
    अगली से लेकर पिछली पीढ़ी तक
    से बटोर कर
    गुलमोहर छोड़ो पलाश से भी लेकर
    इश्क की दास्तां में तुमने शब्द
    पिरो दिए हैं..

    बताओ कैसे करुं टिप्पणी..........

    जवाब देंहटाएं
  25. रुक गयी...
    छींक यूँ आते आते मुझको.....
    तूं रह गया......
    याद करते करते मुझको....
    किसी और ख्याल ने,
    रास्ता तेरा काटा होगा.......

    ********************

    कई बार हटाया,
    फ़िर आ ही जाते है....
    दीवार के इस कोने में...
    कभी उस कोने में....
    महीन महीन,
    कितने भी हटाओ...
    आज या कल,
    ये फ़िर होंगे....
    ज़हन की दीवारों पे,
    यादो के जाले......

    *****************

    तुम कहते हो चलो रोंप देते है,
    गुलमोहर के पेड़ सडको के दोनों तरफ़।
    ताकि आने वाली पीढिया कर सके,
    इश्क की बातें इनके नीचे।
    मैं पूछती हूँ पिछली पीढियो ने ,
    ये क्यूँ नहीं रोपे ???



    jaan-e-man tum kamaal karti ho...

    जवाब देंहटाएं
  26. bahut sunder rachana hai.वो नया युग होगा....
    मैं पहली स्त्री हूँगी...
    और तुम पहले पुरुष......

    जवाब देंहटाएं
  27. Dimple ji,
    बहुत सुन्दर रचनाएं हैं......I enjoyed the ending lines of each one........... Your style is quite similar to Gulzaar's .....congrats!

    Following is simply brilliant.
    .................
    .......
    नया घर बनाते हुए।
    आज सुबह,
    तुम्हारे पाँव पे मिट्टी लगी हुई देखी........

    जवाब देंहटाएं
  28. प्रत्येक पंक्ति का जवाब नहीं...ह्रदय को छूने वाले भाव और उनको किस तरह शब्दों में पिरोया है, कमाल है...बहुत सुन्दर प्रस्तुति...निम्न पंक्तियों का तो कोई ज़वाब ही नहीं:
    कई बार हटाया,
    फ़िर आ ही जाते है....
    दीवार के इस कोने में...
    कभी उस कोने में....
    महीन महीन,
    कितने भी हटाओ...
    आज या कल,
    ये फ़िर होंगे....
    ज़हन की दीवारों पे,
    यादो के जाले......
    .....आभार...
    http://sharmakailashc.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  29. बहुत दिन हुए आपका कुछ पढने को नहीं मिला

    मेरे ब्लॉग पर मेरी नयी कविता संघर्ष

    जवाब देंहटाएं
  30. बहुत ही भावपूर्ण रचना .... प्रस्तुति के लिए बधाई
    मजा आ गया पढ़कर

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  31. आज सुबह,
    तुम्हारे पाँव पे मिट्टी लगी हुई देखी...बहुत सुन्दर, शानदार और भावपूर्ण रचना

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  32. bahut achcha ..kaphi deeno baad aapki rachna padhne ko mili ..bahut achcha laga...

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  33. हर क्षणिका मौन कर रही है और यही कह रही है
    प्यार कोई बोल नही
    प्यार अह्सास नही
    एक खामोशी है
    सुनती है कहा करतीहै


    दिल के अफ़साने दिल तक पहुँच गये

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