तारें,
टिमटिमाएंगें नहीं,
घुंघरुओं की तरह बजेंगे..
अपनी ही राख की
किसी दबी हुई चिंगारी से
जल उठेंगे
सपनो के अलाव..
रेगिस्तानों में
जंग लगी चरखी की
आवाज़ से
जाग जायेंगे
सोये हुए कुओं के पानी..
बारिश,
हो चुकी होगी..
धूप से भरी
दहलीज़ पर
बैठकर
पढूंगी तब
तुम्हारी दी हुई
आखरी किताब...
बारिश,
जवाब देंहटाएंहो चुकी होगी..
धूप से भरी
दहलीज़ पर
बैठकर
पढूंगी तब
तुम्हारी दी हुई
आखरी किताब...
Aah! Ye panktiyan bahut dard de gayeen...
और फिर शुरू होगी
जवाब देंहटाएंघुंघरुओं की रुनझुन
सपनों के सुलगने
और रेगिस्तानी कुओं के जल मे
एक अनोखी और अंतहीन हलचल ......,
तब तुम्हारी किताब के
एक एक हर्फ़ से
मुस्कराओगे तुम
लगातार ।
तारें,
जवाब देंहटाएंटिमटिमाएंगें नहीं,
घुंघरुओं की तरह बजेंगे..
इन पंक्तियों की उदास खूबसूरती में गुम हूँ...
दर्पण से इसे बज्ज़ किया है, पहले लगा जैसे उसी ने लिखा हो लेकिन यहाँ है झरने का सोता... बहुत सुन्दर लिखा है सारे बिम्ब बड़े खुबसूरत हैं, बस थोडा और होता तो और बेहतर होता... यही भेजा होता हिंद युग्म पर !
जवाब देंहटाएंवक्त को बायीं ओर ले जाने का धन्यवाद.....दर्द आशोब वो आखिरी किताब थी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता का धन्यवाद
सत्य
यह फंतासी भरी कविता अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंआपके ब्लाग का नाम भी बड़ा प्यारा है
जवाब देंहटाएंआपके सपनों से मेरी कोई जान-पहचान नहीं है
यदि होती तो यह जरूर कहता
वे आपको कभी न सोने दे
अवतार सिंह पाश ने कहा है
सबसे खतरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना
सपनों को तो जिन्दा रहना चाहिए
और हां...
कविता भी शानदार है
जबरदस्त पंच के साथ कविता खत्म नहीं होती
बल्कि पाठक
आखिरी किताब के बारे में सोचने लगता है.
आपके ब्लाग पर आकर अच्छा लगा
अच्छी कविता.
जवाब देंहटाएंहम है
जवाब देंहटाएंतुमसे मुखातिब कुछ इसतरह
वक्त मे
घुंघुरु की तरह
रात मे
सुफेद चाँदनी के साथ
जलता चाँद मध्म
प्यास मे
एक मृग मिरीचिका
कस्तुरी से लिपटा तू
किताब मे
रौशनाई सी
गुलाबी इश्क को
पढता तू !
आखिरी किताब का नशा...
जवाब देंहटाएंतारें,
टिमटिमाएंगें नहीं,
घुंघरुओं की तरह बजेंगे..
..वाह! क्या बात है!
.बड़ी प्यारी लगी यह कविता.
मैं मुस्कुरा रहा हूँ...यूं ही, बस यूं ही!
जवाब देंहटाएंमैं तो कभी पता भूला नहीं था मैम।
sweet dreams :-)
दर्पण के साथ इत्तेफाकी....कभी कभी वाकई तुम चकित करती हो...
जवाब देंहटाएंबारिश,
हो चुकी होगी..
धूप से भरी
दहलीज़ पर
बैठकर
पढूंगी तब
तुम्हारी दी हुई
आखरी किताब...
i love this one.....
kya kehoon..kho gayi hoon bas!awesome
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद आज आपको फिर पढ़ा तो लगा मैंने बहुत miss कुछ कर दिया
जवाब देंहटाएंwah. bahut sunder likhi hai aapnen.
जवाब देंहटाएंAj pahali baar apke blog par aana hua hai.
जवाब देंहटाएंachhi lagin apki rachnayen.........
बारिश,
हो चुकी होगी..
धूप से भरी
दहलीज़ पर
बैठकर
पढूंगी तब
तुम्हारी दी हुई
आखरी किताब...
bahut prabhavit kiya in panktiyon ne.....
अपनी ही राख की
जवाब देंहटाएंकिसी दबी हुई चिंगारी से
जल उठेंगे
सपनो के अलाव..
आपकी पंक्तियों में घूम गया..कुछ गलियां मिल गईं। जानी अनजानी...। आपने कितना सच कहा है। कभी ये दबी हुई राख ही अंदर अंदर जला देती है....दबी चिंगारी से रोशनी का सबब बनेगी...पर रोशनी होगी भी तो अपने जले हुए सपनों से....खास और खूबसूरत धुले हुए दिन पर तुम्हारी आखरी किताब पढ़ूंगी....या आखरी यादें याद करुंगी या याद ही आखरी बार करुंगी....बारिश से धुला दिन होगा या आंसुओं से भींगी आंखों को दिन धुला लगेगा....दहलीज पर बैठकर ..उसके बाद दहलीज पार कर कौन सी दिशा में चल दूंगी....कौन जाने..या दहलीज में ही सिमट जाउंगी....
आपकी इन चंद पंक्तियों के आरपार जाने की कोशिश करना भी कई आयाम खोल रहा है...मालूम नहीं कितने पलों को जीना फिर से पड़ जाता है कभी-कभी.....सोच का दायरा सच में अनेक सोपान अनेक मंजिले तय कर लेता है कई बार।
बेहद सुंदर प्रस्तुति..
तीन बातें -
जवाब देंहटाएं१.- खलील जिब्रान पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए मैं हृदय से आपका आभारी हूँ ...शुक्रिया
२. आपकी ब्लॉग की हर पोस्ट के साथ उससे मिलती तस्वीरों की मैं दाद देता हूँ ....इस मामले में आप मेरी ही तरह लगती हैं |
३. लफ्जों पर अच्छी पकड़ है आपकी, आपकी रचना एक उत्कृष्ट साहित्यिक कृति चाहे न हो, पर उसमे कुछ बात है ...........गुलज़ार साहब की तरह आपका एक अलग अंदाज़ दिखता है.......शुभकामनाये |
आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी......आपको फॉलो कर रहा हूँ |
कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
http://jazbaattheemotions.blogspot.com/
http://mirzagalibatribute.blogspot.com/
http://khaleelzibran.blogspot.com/
http://qalamkasipahi.blogspot.com/
एक गुज़ारिश है ...अगर आपको कोई ब्लॉग पसंद आये तो कृपया उसे फॉलो करके हौसलाफजाई करें .....शुक्रिया
मतलब की किताब को पढ़कर उसका चार्म ख़त्म करना नहीं चाहती है नायिका.. जानती है कि किताब आखिरी है.. अब ताउम्र बंद किताब के साथ जिया जा सकता है.. पर पढ़ लेने के बाद बची जिंदगी कटेगी कैसे.. ? बहुत अच्छा लिखा डिम्पल...!
जवाब देंहटाएंएक और बात जो कहनी रह गयी थी.. वो रेगिस्तान की जंग लगी चरखी वाला बिम्ब मुझे बेहद पसंद आया..
जवाब देंहटाएंबारिश,
जवाब देंहटाएंहो चुकी होगी..
धूप से भरी
दहलीज़ पर
बैठकर
पढूंगी तब
तुम्हारी दी हुई
आखरी किताब..
जब तारे बाज उठेंगे घुँगरू की तरह तो ये शोर चैन से बैठने नही देगा .... जब सपनों के अलआवजालेंगे तो कुछ भी बाकी नही रहेगा ..... हाँ कुछ सकूँ ज़रूर मिलेगा तुझे पढ़ने के बाद ....
बहुत डोर तक ले जाती आई आपकी नज़्म ....
रेगिस्तानों में
जवाब देंहटाएंजंग लगी चरखी की
आवाज़ से
जाग जायेंगे
वाह ! ये चरखी सूत काटने वाली है या कुँए की?
कविता के विषय में अदिक जानकारी न होते हुए भी भाई .
बेहतरीन अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंबधाई....
)
बे-मिसाल।
जवाब देंहटाएंबारिश,
जवाब देंहटाएंहो चुकी होगी..
धूप से भरी
दहलीज़ पर
बैठकर
पढूंगी तब
तुम्हारी दी हुई
आखरी किताब...
......बहुत ख़ूबसूरत...ख़ासतौर पर आख़िरी की पंक्तियाँ....मेरा ब्लॉग पर आने और हौसलाअफज़ाई के लिए शुक़्रिया..
sabse pahle to JANMASHTMI KI SHUBHKAMNAYEN !! Aapki kavita saral or satikta liye hai uske liye badhai kyoki mujh jaise log kam se kam samjh to sakte hai .....bahut sundar !!
जवाब देंहटाएंJAI SHRI RADHE KRISHNA
कमेन्ट बक्से में पूरी कविता ही पेस्ट कर देने का मन है. बहुत ही सुंदर.
जवाब देंहटाएं...तारें,
जवाब देंहटाएंटिमटिमाएंगें नहीं,
घुंघरुओं की तरह बजेंगे..
अपनी ही राख की
किसी दबी हुई चिंगारी से
जल उठेंगे
सपनो के अलाव..
....वाह, वाह!...बहुत खूब!....
ghunghroo ki runjhun badi mast hai
जवाब देंहटाएंhttp://liberalflorence.blogspot.com/
accha armaan pal rakha hai :)
जवाब देंहटाएंतारें,
जवाब देंहटाएंटिमटिमाएंगें नहीं,
घुंघरुओं की तरह बजेंगे..
बेहद सुंदर प्रस्तुति..
Der se aane ke liya bada waala SORRY....jaise pahle bhi kah chuke hai....EXCELLENT Use of unusual metaphor
जवाब देंहटाएंबारिश,
जवाब देंहटाएंहो चुकी होगी..
धूप से भरी
दहलीज़ पर
बैठकर
पढूंगी तब
तुम्हारी दी हुई
आखरी किताब...
इन खूबसूरत पंक्तियों से गुज़रते हुए
मन की भावनाएं मुखर हो उठती हैं
कुओं के पानी से
सपनो के अलाव की तपिश का अंदाज़ा होने लगता है
और...
ज़ाहिर सी बात है....
तारे....
घुंघरुओं का साथ पा लेने को
बेचैन हो उठते हैं ....... !!
बहुत ही अच्छा काव्य
सच ! बहुत ही अच्छा .
पढूंगी तब
जवाब देंहटाएंतुम्हारी दी हुई
आखरी किताब...
......बहुत ख़ूबसूरत...ख़ासतौर पर आख़िरी की पंक्तियाँ....मेरा ब्लॉग पर आने और हौसलाअफज़ाई के लिए शुक़्रिया..
आपको और आपके परिवार को कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंHi Dimple,
जवाब देंहटाएंnice poem yaar!!
Sameena@
www.lovelypriyanka.blogspot.com
www.myeasytocookrecipes.blogspot.com
बारिश,
जवाब देंहटाएंहो चुकी होगी..
धूप से भरी
दहलीज़ पर
बैठकर
पढूंगी तब
तुम्हारी दी हुई
आखरी किताब...
बहुत सुंदर, वाह वाह.....
Hello Dimple,
जवाब देंहटाएंBahut achha likha hai...
Kya baat, Kya baat, Kya baat!! :)
Climax itni achhi tarah likha hai aapne... Fantastic!
Regards,
Dimple
अपनी ही राख की
जवाब देंहटाएंकिसी दबी हुई चिंगारी से
जल उठेंगे
सपनो के अलाव.
सुंदर अभिव्यक्ति..
umda rachna...
जवाब देंहटाएंA Silent Silence : Mout humse maang rahi zindgi..(मौत हमसे मांग रही जिंदगी..)
Banned Area News : Konkona Sen Sharma And Ranvir Shorey To Wed Today
शिक्षक दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंक्या सिर्फ ये शब्द काफी होगा ???
जवाब देंहटाएंबेहतरीन!!!
behatreen rachna. kp it up
जवाब देंहटाएंmere blog per padhaarne ka dhanyawaad ... sachmuch .. kyuki aapke blog per padhaarne ka avsar mila aur itni khoobsoorat kavitayein padhne ka bhi ...
जवाब देंहटाएंek alag andaaz hai aapka, dilchasp aur khoobsoorat
god bless
RC
बहुत देर इस टिप्पणी बक्से में इधर उधर छितराने के बाद यही कहकर जा रहा हूँ कि मुझे ये कविता बहुत अच्छी लगी.. :-।
जवाब देंहटाएंएक शब्द मेरा भी रख लो, भले ये आखिरी नहीं है
जवाब देंहटाएंस्मृतियों का सुन्दर आह्वान।
जवाब देंहटाएंآپکو ید کی بہت بہت مبارکباد
जवाब देंहटाएंنظم کی تعریف خود نظم کر رہی ہے
حفیظ احمد انصاری
आपको भी गणेश चतुर्थी की शुभकामनाएं और ईद मुबारक।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर कविता
Thanks for visiting my blog. You have used nice metaphors in you poem...enjoyed the read.
जवाब देंहटाएंकविता बहुत दिन पहले पढ़ी थी...आज फिर तुम्हें देखा तो याद आई तुम्हारी, सोचा देख लूं कि तुम्हें बताया भी था कि नहीं.
जवाब देंहटाएंये वाली कविता सहेज के रखने वाली टाइप है. जो सामने दीखता है उसके परे, बहुत कुछ परतों में छिपाती एक उलझी हसीं सी गुत्थी है.
थोडा ज्यादा लिखा करो.
aah.. jane kaisa waqt hoga wo jab ye sab kuch ghatit ho chuka hoga aur nayika wo kitab padh rahi hogi... kai frem men bant di hai ye kavita aapne...samjh nahi aataa ki kis frame me kaid hua jaaye...kaun si image ke sath ruka jaye...hats off....... :)
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता बढ़िया अभिव्यक्ति मनभावन अनुभूति...
जवाब देंहटाएंबधाई!! :-)
आखिरी किताब....
जवाब देंहटाएंवाह वाह वाह..
अद्भुत...