रविवार, 2 मई 2010

दीवार पे अब भी ,
निशां है चौरस से,
वहां कभी,कोई,
तस्वीर रही होगी.

उभरता है कोई घर..
दरवाजों की दरारों से,
सटी ख़ामोशी.

मुझे याद है अच्छी तरह से..
अब भी नज़र आती है,
दहलीज़ पे खड़ी वो,
गर्म हवाओ से,
उड़ता आँचल ,
सर पे टिकाती.
तेज़ धूप से बचने को,
आँखों पे हाथ की ओट बनाती.
इंतज़ार,
डाकिये का,
किसी के ख़त का.
खुश्बूओं को उल्टती ,पलटती.
इससे पढ़वाती,
उससे जवाब लिखवाती..

लिखने वाली मैं,
आगे मिले जाके तुम्हे..
उसके दुपट्टे की,
चिड़ियाँ,
खुले आस्मां में,
उड़ने लगती.

मुझे याद है अच्छी तरह से..
इक दिन,
चिट्ठी नहीं,
इक तार आई..
चट्टान सा उसका चेहरा,
चेहरे की चुप्पी,
चुप्पी में न ख़त्म होने वाला इंतज़ार.
इंतज़ार,
बह चुके पानिओं का..
चूल्हे की आग ,
फूंक मार के जलाती.
धुंए से,
सुरमयी आंखे,
धुआं धुआं हो जाती..
आदतन,
निगाह दरवाज़े की तरफ अब भी उठती .
दुप्पटे की चिड़िया पर अब नहीं उडती.
उसकी लरजती आवाज़ ,
मेरी पीठ से आज भी टकराती.
" कुड़े! डाकियां नई आया अज्ज?"

36 टिप्‍पणियां:

  1. bahut hi achhi rachna...
    निगाह दरवाज़े की तरफ अब भी उठती .
    दुप्पटे की चिड़िया पर अब नहीं उडती.
    waah kya baat hai.......
    bahut hi sundar...
    regards.
    http://i555.blogspot.com/

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  2. दीवार पे अब भी ,
    निशां है चौरस से,
    वहां कभी,कोई,
    तस्वीर रही होगी.
    हर अस्तित्व कोई न कोई निशान छोड़ ही जाता है
    बेहतरीन

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  3. निगाह दरवाज़े की तरफ अब भी उठती .
    दुप्पटे की चिड़िया पर अब नहीं उडती.
    उसकी लरजती आवाज़ ,
    मेरी पीठ से आज भी टकराती.
    "कूड़े ! डाकियां नई आया अज्ज?"
    ईतज़ार ... बहुत अच्छी काव्यायात्मक भावाभिव्यक्ति।

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  4. उसके दुपट्टे की चिड़िया.....,..
    विलक्षण प्रयोग डिम्पल जी ! रचना प्रशंसनीय ।

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  5. निगाह दरवाज़े की तरफ अब भी उठती .
    दुप्पटे की चिड़िया पर अब नहीं उडती.
    ..... samay parivartan per aadtan wahi khyaal, wahi intzaar , wahi sawal

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  6. एक शब्द चित्र बना दिया आपने ......

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  7. चट्टान सा उसका चेहरा,
    चेहरे की चुप्पी,
    चुप्पी में न ख़त्म होने वाला इंतज़ार.

    Khoobsurati... gehraai... aur likhne ka kya andaaz!!

    Waah!

    Regards,
    Dimple

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  8. rahne do, chodo bhi jaane do yaar....dakiya nahi aaya to kya....Email aaega,fax aayega ya may bhi banda khud aa jaye....thodi serious poetry hain so light mood ka comment de diya.....hope you wont mind

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  9. ये पेंटिंग पे कविता लिखी है या कविता पे पेंटिंग बनाई गयी है....वैसे दोनों हीं अच्छे हैं
    पर दुपट्टे की चिड़िया के उड़ने और फिर नहीं उड़ने की बात पसंद आयी.

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  10. superb! well done and congratulations for writing something which is beyond comparison.

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  11. बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति!

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  12. निगाह दरवाज़े की तरफ अब भी उठती .
    दुप्पटे की चिड़िया पर अब नहीं उडती.
    उसकी लरजती आवाज़ ,
    मेरी पीठ से आज भी टकराती.
    "कूड़े ! डाकियां नई आया अज्ज?"

    डिम्पल जी,
    अच्छा लगा एक पूरी व्यथा-कथा कविता में पढ़ कर. इंतजार तो होता ही ऐसा है !!!

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  13. स्मृतियाँ कितने कथानक सँजोए हैँ इस रचना में ।
    उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।

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  14. बाप रे! उपर से तो तीन बार पढ गया अब नीचे से शुरु करुँ..... . नही नही आप गलत समझ रहे हैँ कविता मेरी समझ मे आ गयी ... बस कुछ् ओर तलाश रहा था. कुछ विशेष है इसमे जिसके लिये शब्द अभी नहि मिल रहेँ हैडिम्पल .. फिर फिर आता हूँ
    सत्य

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  15. "दीवार पे अब भी ,
    निशां है चौरस से,
    वहां कभी,कोई,
    तस्वीर रही होगी."

    सबसे पहले इनके लिये वाह... किसी तस्वीर के कभी दीवार पर होने के निशान..ये निशान भी अद्भुत होते होगे न जैसे सभ्यताओ की खुदाई मे निशान मिलते है और उन निशानो पर कहानिया गढी जाती है.. वैसा ही कोई निशान..

    "उसके दुपट्टे की चिड़िया.....,.."
    अरूणेश जी ने बडी प्यारी उपमा उठायी.. मुझसे तो वो मिस हो गयी थी :) अच्छे कमेन्ट्स हमेशा पोस्ट्स को नये आयाम और नये तरीको से देखते है..
    बहुत दिनो बाद आपकी मार्का कविता.. your signature style poem..

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  16. कमेन्ट करने के बाद देखा तो दर्शन भी कुछ कुछ हम जैसा ही बोल रहे है.. :) शायद इसी को वाईब्स कहते है..

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  17. लम्बे वक्त तक दीवार के बदन से बावस्ता हर तस्वीर का दीवार से एक रिश्ता हो जाता है....कि तस्वीर के हट जाने, टूट कर बिखर जाने के बाद भी एक सूनापन रह जाता है..दीवार के उस हिस्से में..उसी तस्वीर का इंतजार करता सा..मुसलसल..
    ..वो निशान की नही भरे जा पाते हैं..चाहे कितनी भी नयी तस्वीरें न रख दी जाँय...दीवार की गोद मे..

    ..ऐसे ही जब काम की तलाश मे एक मुल्क ’घर’ कहे जाने वाले स्पेस से निकल जाता है..तो बाकी का बचा एक मुल्क उसी ’घर’ को घर बनाये रखते हुए अपने उस जुदा हिस्से का इंतजार करता है..उसकी चिट्ठियों की आमद पर कान रखता है..उसके हिस्से के दुखो को खुद पर ले लेने की कामना के साथ..
    ..और वक्त एक नदी की तरह बहता रहता है इन दो मुल्कों के किनारों के बीच..मगर जब किसी दिन एक आखिरी पैगाम की किश्ती दूसरे पार उतरती है..तो फिर वह मुल्क मुल्क नही रहता..घर घर भी नही रह जाता....इंतजार सांसों की तरह बेलिबास हो जाता है....दुपट्टॆ की चिडियाँ उम्मीदों की आखिरी लौ की तरह डूब जाती हैं..
    ..हाँ मगर जिंदगी बचाये रखने के लिये एक भरम बच जाता है

    इंतज़ार,
    बह चुके पानिओं का..

    और रह जाती है एक खोखली सी आवाज..

    "कूड़े ! डाकियां नई आया अज्ज?"

    यकीनन एक मास्टरस्ट्रोक..अधूरेपन की गहरायी के साथ..ऑसम!

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  18. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  19. दीवार पे अब भी ,
    निशां है चौरस से,
    वहां कभी,कोई,
    तस्वीर रही होगी.

    उभरता है कोई घर..
    दरवाजों की दरारों से,
    सटी ख़ामोशी.

    जैसे गीत में दिल, प्यार वगैरह का जीकर होता है, क्यों ना एक गिनती करें की रोज़ ब्लॉग पर गुलज़ार का कितनी बार जिक्र होगा है...

    पहले से बहुत बेहतर लिख रही हैं आप... इसे बनाये रखिये...

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  20. निगाह दरवाज़े की तरफ अब भी उठती .
    दुप्पटे की चिड़िया पर अब नहीं उडती.
    ,.... Gahre bhavon se ot-prot rachna... Bhaut kuch bolta pyara sa chitra....
    Sundar Prastuti ke liye dhanyavaad.

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  21. इंतज़ार .... कूड़े ! डाकियां नई आया अज्ज?" ... बहुत खामोशी से बहुत कुछ कह गया ये इंतज़ार ..... गहरी संवेदना ...

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  22. Ek dastaan sunayi deti rahi..ek tasveer dikhayi deti rahi..

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  23. कविताओ को समझ कर उनपर अपनी विश्लेषणात्मक टिप्पणी देना अपने बस की बात नही है | जब भी कुछ अच्छा लगता है तो बता देते है कि अच्छा लगा क्यों लगा ये भगवान जाने |

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  24. कभी कभी हैरान कर देती हो....इतना आगे निकल जाती हो .के सोचता हूँ ...ये लिखने वाली कौन है .....अक्सर फॉर्म दिख जाती है ..अक्सर कुछ शोट खेलकर आउट.....ये शायद बेट्समेन की शानदार फार्म में से एक है ....मसलन ....


    मुझे याद है अच्छी तरह से..
    इक दिन,
    चिट्ठी नहीं,
    इक तार आई..
    चट्टान सा उसका चेहरा,
    चेहरे की चुप्पी,
    चुप्पी में न ख़त्म होने वाला इंतज़ार.
    इंतज़ार,
    बह चुके पानिओं का..
    चूल्हे की आग ,
    फूंक मार के जलाती.
    धुंए से,
    सुरमयी आंखे,
    धुआं धुआं हो जाती..
    आदतन,
    निगाह दरवाज़े की तरफ अब भी उठती .
    दुप्पटे की चिड़िया पर अब नहीं उडती.
    उसकी लरजती आवाज़ ,
    मेरी पीठ से आज भी टकराती.
    "कूड़े ! डाकियां नई आया अज्ज?"

    ओर आखिरी लाइन.......

    "कूड़े ! डाकियां नई आया अज्ज?"


    एक तस्वीर सीधे फ्लेश करती है आँखों के सामने .....and i love this line........

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  25. कैसा तो दर्द था इस कविता-नुमा चीज मे और कैसी तो शिद्दत..और कैसी तो तिश्नगी..कि फिर पढ़ने आना ही पड़ा..सोचा बोल भी दूँ..
    "कूड़े ! डाकियां नई आया अज्ज?"
    यहाँ कूड़े होगा या कुड़े?..थोड़ा शक हुआ..सो कन्फ़र्म कर लिया जाय!

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  26. विरह का यह रूप इतना जाना -पहचाना क्यों लगता है डिंपल?
    एक नहीं कई चौरस निशाँ छोडती है कविता...

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  27. इंतजार औऱ विरह .... हमेशा ही लोगो को अपना बना देते हैं....जाने क्यों लोग समझते नहीं....इंतजार और दर्द को जीना कितना कष्टकर है....क्या करें आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं पर ये दर्द अक्सर आंखों में पानी बनकर आ जाता है औऱ रास्ते धुंधले हो जाते है कि फिर बढ़ा ही नहीं जाता ...

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  28. धुंए से,
    सुरमयी आंखे,
    धुआं धुआं हो जाती..
    आदतन,
    kamaal likhtii hain aap.

    जवाब देंहटाएं
  29. अब भी नज़र आती है,
    दहलीज़ पे खड़ी वो,
    गर्म हवाओ से,
    उड़ता आँचल ,
    सर पे टिकाती.
    तेज़ धूप से बचने को,
    आँखों पे हाथ की ओट बनाती.
    इंतज़ार,
    डाकिये का,
    किसी के ख़त का.
    खुश्बूओं को उल्टती ,पलटती.
    इससे पढ़वाती,
    उससे जवाब लिखवाती..

    अति उत्तम....

    जवाब देंहटाएं
  30. -----------------------------------
    mere blog mein is baar...
    जाने क्यूँ उदास है मन....
    jaroora aayein
    regards
    http://i555.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  31. उसकी लरजती आवाज़ ,
    मेरी पीठ से आज भी टकराती.
    " कुड़े! डाकियां नई आया अज्ज?"

    byaan karn da tareeka mainu behadd psand aya...
    ik film akhaan agge ghum gaee ....mubarkaaan

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  32. उसकी लरजती आवाज़ ,
    मेरी पीठ से आज भी टकराती.
    " कुड़े! डाकियां नई आया अज्ज?"
    behadd psand ayee...ik film akhaan agge ghum gaee .....mubarakaaan

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  33. मैं चिटठा जगत की दुनिया में नया हूँ. मेरे द्वारा भी एक छोटा सा प्रयास किया गया है. मेरी रचनाओ पर भी आप की समालोचनात्मक टिप्पणिया चाहूँगा. एवं यह भी जानना चाहूँगा की किस प्रकार मैं भी अपने चिट्ठे को लोगो तक पंहुचा सकता हूँ. आपकी सभी की मदद एवं टिप्पणिओं की आशा में आपका अभिनव पाण्डेय
    यह रहा मेरा चिटठा:-
    **********सुनहरीयादें**********

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