तुम,
जिसे मैं याद करती हूँ..
..याद करती हूँ,
शरद ऋतू में,
आंगन में छिटकी चांदनी,
जाने अब कब आयेगी..
जब बगीचे में,
चंपा या जूही की,
नाज़ुक सी डाली पे,
लहलहाया था पहला फूल..
जब कोई मेघ,
किसी एक पहाड़ी से सटा,
मधुर गर्जन करता हुआ,
बिखेरता था स्वर्गीय छटा..
सूरज मिलके जलकणों से,
जादूगरी दिखाता..
जाने कैसे कैसे,
अनुपम इंदरधनुष बनाता..
साँझ ढले,
आकाश का पहला तारा,
अस्ताचल में जाते हुए,
मानो..
कहता है ,
मुस्काते हुए,
"पुन :आऊंगा"
प्रकृति की ख़ूबसूरत छटा के बीच सिमटा एक इंतजार और एक वादा... "पुन: आऊंगा"
जवाब देंहटाएंशब्दों का ख़ूबसूरत लैंडस्केप !!!
और एक इंतज़ार शुरू हो जाता है....
जवाब देंहटाएंजब कोई मेघ ..........गर्जन
जवाब देंहटाएंअंतश्चेतना को गुदगुदाती हुई सरस स्मृतियों मे अवगाहन को विवश कर गयी पंक्तियाँ ।
अनिर्वचनीय ।
आकाश का पहला तारा,
जवाब देंहटाएंअस्ताचल में जाते हुए,
मानो..
कहता है ,
मुस्काते हुए,
"पुन :आऊंगा"
याद करने के लिये इनके अलावा भी तो बहुत कुछ है
बहुत सुन्दरता से कही रचना
वाह क्या प्राकृतिक छठा बिखेरी है आपने ....पढ़ कर मन प्रसन्न हो गया. ....प्रकृति के सानिध्य से बेहतर और क्या :-)
जवाब देंहटाएं"साँझ ढले,
जवाब देंहटाएंआकाश का पहला तारा,
अस्ताचल में जाते हुए,
मानो..
कहता है ,
मुस्काते हुए,
"पुन :आऊंगा""
वाह, दुनिया के सारी खूबसूरत चीजो को ऐसे ही बार बार आना चाहिये.. वेरी क्यूट :)
बहुत ही सुन्दर चित्रण्……………होली की हार्दिक शुभकामनायें।
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