क्यूँ न चुरा पाए वो पल..
के मिलना न लगता इक ख्वाब..
हालाकि तब भी ख्वाब लगा,
और अब भी..
हालाकि तब भी ख्वाब लगा,
और अब भी..
टेबल पे गिरा पानी,
अनछुए सैंडविच,
यूँ ही पड़े फ्रेंच फ्राइज़
भाप उड़ा उड़ा के आखिर ठंडी हुई कॉफ़ी,
और गर्म होते जूस,
सब यू ही पड़े थे,
और जाने का वक़्त भी आ गया?
अनछुए सैंडविच,
यूँ ही पड़े फ्रेंच फ्राइज़
भाप उड़ा उड़ा के आखिर ठंडी हुई कॉफ़ी,
और गर्म होते जूस,
सब यू ही पड़े थे,
और जाने का वक़्त भी आ गया?
ऐसे कैसे?
टेबल पे पड़ी चीजों के साथ मैं भी वही रह गयी,
तुम्हारी यादो के साथ..
कहाँ लौट पाई वहां से..
चीज़े भी कैसी होती है न..
अभी थी अभी नहीं..
तुम मुझसे और मैं..
मैं भी तुमसे..
मिलना चाहते थे गले..
..पर..
मैं भी तुमसे..
मिलना चाहते थे गले..
..पर..
पर सिर्फ हाथ मिलाये हमने..
जानां..
सुनो...
सुनो न...
चलो न इक बार वापिस चले..
वो सैंडविच ,वो कॉफ़ी
ठन्डे हो जायेंगे..
उनकी खातिर चलो न..
रेस्तरां का कोना सूना होगा..
चलो न उसकी खातिर चले..
सुनो...
सुनो न...
चलो न इक बार वापिस चले..
वो सैंडविच ,वो कॉफ़ी
ठन्डे हो जायेंगे..
उनकी खातिर चलो न..
रेस्तरां का कोना सूना होगा..
चलो न उसकी खातिर चले..
अच्छा ठीक है..
कुछ भी कह लेना मुझे.
शोना..
बिट्टू..
और बकवास इंसान भी...पर इक बार चलो फिर से वहां..
Badhiya Abhivyakti ! Wapis Aata Hoon.
जवाब देंहटाएं:)
कोमल सी अनुभूति ....... स्मृतियों को सँजोती ...सपने देखती हुई ।
जवाब देंहटाएंbahut hi khoob....yaadon ko sametti rachna...kuch apna sa laga..
जवाब देंहटाएंOh ! Kitna dard hai is rachaname!
जवाब देंहटाएंbahut khub
जवाब देंहटाएंshandar kavita
shkaher kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
bahut khub...
जवाब देंहटाएंbas yaad saath hai....
achhi rachna ke liye badhai ho..
mere blog par is baar..
नयी दुनिया
jaroor aayein....
रेस्तरां का कोना सूना होगा..
जवाब देंहटाएंचलो न उसकी खातिर चले..
बेहतरीन रचना के लिये साधुवाद
वाह! बेहतरीन!
जवाब देंहटाएंटेबल पे पड़ी चीजों के साथ मैं भी वही रह गयी,
जवाब देंहटाएंतुम्हारी यादो के साथ..
कहाँ लौट पाई वहां से..
टुकड़ों में बिखर हुआ वजूद, जाने कहाँ कहाँ छूट जाया करता है. याद की जुगाली मौसम के साथ नहीं होती वरन आदत बन के बैठ जाया करती है. किसी चौपाये की पीठ पर जंगली परिंदे की तरह लौट लौट आती है हर बार छिटक जाने के बाद भी.
hamara comment kahan hain? kal hi de diya tha hamne is post par.....aapne publish nahi kiya :-)
जवाब देंहटाएं@ priya aapne kiya hi nahi:)
जवाब देंहटाएंस्पष्ट रूप से मैं निराश हुआ हूँ.... विगत तीन कविताओं में काफी सुधर दिखा था... ना यहाँ मुझे कंटेंट नज़र आ रहा है ना ही कोई शिल्प ही... ऐसा कमेन्ट बुरा लग सकता है पर आपने न्याय नहीं किया इसके साथ मैं यह कह सकता हूँ...
जवाब देंहटाएंकोई और रास्ता तलाशिये
अनुभूत ।
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय ।
जवाब देंहटाएं@Dimple kiya tha...may be kuch technical fault ho @ sagar shilpgat kamiyon ki baat karein to ho sakta hai .....Lekin content ka na nazar aana mujhe nahi samajh aaya....Ye khoobsoorat content hi to kavita ki jaan hai aur bakhoobi deliver kiya hai dimple ne apne thought ko .....Haan shilpgat waali baat to sweekar sakte hain ham
जवाब देंहटाएंwhich Mc D? where?
जवाब देंहटाएंI can pay to see the situation..if it exists yet!
मुझे वो गज़ल याद आ गयी -
जवाब देंहटाएं"न जी भर के देखा, न कुछ बात की।
बडी आरजू थी, मुलाकात की.."
आपने अपना जो स्टैन्डर्ड बना दिया है, उस लिहाज से सागर की शिल्प वाली बात से सहमत हू लेकिन किसी ने यह भी तो कहा है कि -
"किन लफ़्ज़ों में अपनी बात लिखूं? ग़ज़ल की मैं तहज़ीब निभाहूँ , या अपने हालात लिखूं?"
शिल्प के नाम पर तो हम हमेशा ’कविता सा’ ही लिखते है और ’आज़ाद नज़्मे’.. कभी ऐसा ही कुछ यहा लिखा था..
तुम मुझसे और मैं..
जवाब देंहटाएंमैं भी तुमसे..
मिलना चाहते थे गले..
..पर..
पर सिर्फ हाथ मिलाये हमने..
बेहद महीन अनुभूति को दर्शनीय बना दिया आपने
कविता की नवीनता बांधती है और चित्र....
कुछ बातें शायद शब्दों से पर होती हैं
is post ko pad kar hi lagta hai ki wo ehsaas ab tak zinda hai.. bikhri hui chheezo ko abhi tak sameta nahi hai.. bas isi umeed mein ki wo wapis aayega ya hum khud hi use wapis le kar jayege...
जवाब देंहटाएंDimple is baar phir dhoond nikala hai tumne ek chhupa hua ehsaas.
-Shruti
आपकी कविता बहुत ही अच्छी लगी ... भाव लिए ....
जवाब देंहटाएंsundar rachana,bahot achha laga padh kar
जवाब देंहटाएंकाव्य , शिल्प , कथ्य , बुनावट
जवाब देंहटाएंसभी कुछ तो नज़र आ रहा है
टेबल , जूस , कोफी , खान-पान
वो लम्हे , आप और मेहमान
सभी अपने-अपने-से लग रहे हैं
हर शब्द ...
मानो दर्पण में निहार रहा है खुद को
अब क्या कहूं ...
"भगवान् का आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ रहे"
काफी रहेगा ना ....!!
कुछ नम हवाये
जवाब देंहटाएंबार बार खींच लेती है
मन को अपनी शीतलता मे !
मै भी ओम जी साहब के साथ खर्चा-पानी साझा कर सकता हूँ (हालांकि ज्यादा तो वही पे करेंगे..बड़े होने के नाते)..अगर उनकी दर्ख्वास्त मानी जाती है तो..
जवाब देंहटाएंbhavnayo ko vistar diya hai aapne...poetry nahi ye feelings hai..
जवाब देंहटाएंसार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंमैं चिटठा जगत की दुनिया में नया हूँ. मेरे द्वारा भी एक छोटा सा प्रयास किया गया है. मेरी रचनाओ पर भी आप की समालोचनात्मक टिप्पणिया चाहूँगा. एवं यह भी जानना चाहूँगा की किस प्रकार मैं भी अपने चिट्ठे को लोगो तक पंहुचा सकता हूँ. आपकी सभी की मदद एवं टिप्पणिओं की आशा में आपका अभिनव पाण्डेय
जवाब देंहटाएंयह रहा मेरा चिटठा:-
**********सुनहरीयादें**********