गुरुवार, 19 नवंबर 2009

तुम पहले पुरुष हो...
और मैं पहली स्त्री...
ऐसा कुछ याद तो नहीं पड़ता...
मैं भूल गयी हूँ,
ऐसा भी नहीं है....
ये प्यार भी नहीं है,
पहला पहला....
कई सदियो तक का सफ़र...
और फिर पहुंचा है हम तक....

जब होगा इक नया युग..

तब भी...
किसी पूर्व से निकलेगा कोइ नया सूरज,
और छिप जायेगा किसी नए पश्चिम में......
फिर छिड़ेगा पहली बारिश का अनहद नाद....

तब भी...
अवशेष दबे होंगे प्यार के,
किसी नज़म के तले..
कही कही होंगे निशाँ किसी दर्द के,
दबे पांव चलने के....
आँखे भी नम होंगी ज़रा ज़रा सी बात पर.....
मिल जायेगी कही दुबक के बैठी हुई मुस्कान भी......

वो नया युग होगा....
मैं पहली स्त्री हूँगी...
और तुम पहले पुरुष......

29 टिप्‍पणियां:

  1. सच सुना है ....इतिहास अपने आप को दोहराता है....

    जवाब देंहटाएं
  2. वो नया युग होगा....
    मैं पहली स्त्री हूँगी...
    और तुम पहले पुरुष......

    सब ऐसा ही चाहते हैं। लेकि‍न फि‍र आने वाले दि‍न इति‍हास बनते जाते हैं, और उम्र भर इति‍हास जीना कौन चाहता है?

    जवाब देंहटाएं
  3. तब भी...
    अवशेष दबे होंगे प्यार के,
    किसी नज़म के तले..
    कही कही होंगे निशाँ किसी दर्द के.....

    SAB KUCH NIRANTAR HI TO HAI ... CHALTA HUVA ... US DOUR SE SADIYON KA SAFAR TAY KAR IS DOUR MEIN AAYA HAI ... PREM TO BAS PREM KI ANYBHOOTI HI SAMAJHTA HAI ... SADIYON SE SADIYON TAK KA SAFAR ....
    BAHUT HI GAHRI RACHNA ... MAINE PAHLE BHI KAI BAAR LIKHA HAI AAJ FIR LIKH RAHA HUN ... AAPKI KAVITAAYEN KISI DOSRI DUNIY MEIN JABRAN KHEENCH KAE LE JAATI HAIN ....

    जवाब देंहटाएं
  4. सुना है ....इतिहास अपने आप को दोहराता है....
    बार बार दोहराता है.

    जवाब देंहटाएं
  5. भावपूर्ण कविता....ये चक्र तो अनावरत चलता ही रहेगा...सब इन अहसासों से रूबरू होंगे अपने अपने हिस्से की धूप समेटे...

    जवाब देंहटाएं
  6. तब भी...
    अवशेष दबे होंगे प्यार के,
    किसी नज़म के तले..
    कही कही होंगे निशाँ किसी दर्द के,
    दबे पांव चलने के....
    आँखे भी नम होंगी ज़रा ज़रा सी बात पर.....
    मिल जायेगी कही दुबक के बैठी हुई मुस्कान भी..
    वाह लाजवाब

    जवाब देंहटाएं
  7. रूमानी जज्बों को बहुत ही नफासत के बयां किया है आपने। दिल में उतर गयी आपकी कविता।
    ------------------
    11वाँ राष्ट्रीय विज्ञान कथा सम्मेलन।
    गूगल की बेवफाई की कोई तो वजह होगी?

    जवाब देंहटाएं
  8. शाश्‍वत प्रेम की उतनी ही शाश्‍वत कविता.प्रेम के मूल आदिम रूप को समेटे.
    सुंदर.

    जवाब देंहटाएं
  9. prem ka anhad naad sadiyon se goonj raha hai aur goonjta rahega magar har kisi ke liye uske mayne alag hain........prem ke bheene bheene ahsason mein dubati rachna.

    जवाब देंहटाएं
  10. वो नया युग होगा....
    मैं पहली स्त्री हूँगी...
    और तुम पहले पुरुष......
    सुन्दर अभिव्यक्ति और आदिम लालसा और ललक

    भावपूर्ण

    जवाब देंहटाएं
  11. इतिहास अपने आप को दोहरा कर ही रहेगा

    जवाब देंहटाएं
  12. वो नया युग होगा....
    मैं पहली स्त्री हूँगी...
    और तुम पहले पुरुष..


    -आयेगा..जरुर आयेगा वो युग!!

    जवाब देंहटाएं
  13. Beautiful!!

    तब भी...
    अवशेष दबे होंगे प्यार के,
    किसी नज़म के तले..
    कही कही होंगे निशाँ किसी दर्द के,
    दबे पांव चलने के....
    आँखे भी नम होंगी ज़रा ज़रा सी बात पर.....
    मिल जायेगी कही दुबक के बैठी हुई मुस्कान भी......

    जवाब देंहटाएं
  14. आपके ब्लाग पर आपकी तश्वीर तो नहीं है
    मगर आप ने अपनी कविताओं के लिए
    जिन तश्वीरों का चयन किया है
    वे लाजवाब हैं।
    अच्छा लिखते हैं आप।

    जवाब देंहटाएं
  15. आँखें भी नम होगी जरा जरा सी बात पर...

    नमी सब कविताओं में व्याप्त हैं. कभी मन को खुली धूप भी दिखाओ कहीं.

    जवाब देंहटाएं
  16. unhe ye jid ki mujhe dekh kar kisi ko na dekh
    mera ye shauk ki sabko salam karta chaloon...

    जवाब देंहटाएं
  17. आपकी इस अद्वितीय कविता की मनस्थिति किसी बारिश से भीगी और देर से जागी उस सुबह की तरह लगती है..जिसके लिये गुजरा हुआ कल खूबसूरत मगर धुँधली सी यादों से महकता हुआ हो..पुराने दर्पण की तरह

    ऐसा कुछ याद तो नहीं पड़ता...
    मैं भूल गयी हूँ,
    ऐसा भी नहीं है....
    ये प्यार भी नहीं है,

    .मगर जिसका आज असीम आशाओं और संभावनाओं से भरा हुआ हो..शफ़्फ़ाक धुले आसमान की तरह...

    तब भी...
    अवशेष दबे होंगे प्यार के,
    किसी नज़म के तले..
    कही कही होंगे निशाँ किसी दर्द के,
    दबे पांव चलने के....

    और फिर अनहद-नाद तो........
    ......
    ....खैर यह पूरी कविता ही एक अनहद-नाद की तरह है...प्रेम के शाश्वत्य का दैवीय गान करता अन्हद-नाद..समय के आहत-नाद को चुनौती देता....!!!

    नजम की वर्तनी मे करेक्शन की गुन्जाइश है..अगर मैं सही समझा हूँ तो...

    जवाब देंहटाएं
  18. यह भाव अच्छा लगा चेतना के स्तर पर ।

    जवाब देंहटाएं
  19. मुकम्मल तारीफ के लिए शायद लफ़्ज कम पड़ें. ह्रदयस्पर्शी रचना. बहुत बहुत बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  20. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  21. @darpan
    ओह फिजिक्स भी थी क्या इस कविता में..आप कहते हो तो होगी...
    कॉकटेल बनाने के क्लास आप से ही लेने पड़ेंगे अब.. ;-)

    जवाब देंहटाएं
  22. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  23. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  24. @डर-पन
    ह्म्म अग्रीड टु डिसएग्री !!
    मुझे तो फिजिक्स नही जिऑग्रफ़ी नजर आ रही है फिर (डाइमेन्शन<>डाइरेक्शन)
    मगर चूँकि यहाँ मॉडरेटर (कान खींचने वाला) कोई और है (पराया घर/स्कूल) सो चलो अपनी लड़ाई कहीं और (प्राची के उस पार) ले कर चलते हैं...

    जवाब देंहटाएं
  25. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं

...क्यूंकि कुछ टिप्पणियाँ बस 'टिप्पणियाँ' नहीं होती.