बुधवार, 4 नवंबर 2009


कई बार हटाया,
फ़िर आ ही जाते है....
दीवार के इस कोने में...
कभी उस कोने में....
महीन महीन,
कितने भी हटाओ...
आज या कल,
ये फ़िर होंगे....
ज़हन की दीवारों पे,
यादो के जाले......



**************



टूट भी नही पाता,
और जुड़ता भी नही....
सिमटता भी नही किसी तरह...
बिखरता भी नही है....
मेरा और तुम्हारा रिश्ता,

सदियो से लगी खुलती ही नही,
कई बार तुमने तोड़नी चाही
कई बार मैंने भी...
बड़ी पेचीदा गांठे है इसकी....

22 टिप्‍पणियां:

  1. bahut hi gahan aur sundar prastutikaran............umda soch ,umda lekhan.

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  2. Raj aapne bahut hi gehre jazbaato ko dikhaya hai

    na tootte hai na simatte hai
    jaane kis bandhan se jude yeh rishte

    -Sheena

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  3. Hello Raj,

    I really liked your concept this time!! Great creation :)

    I want to forget,
    But it is not my fault!
    I want to blame these memories,
    Who make this task of forgetting him impossible :)

    Regards,
    Dimple
    http://poemshub.blogspot.com

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  4. टूट भी नही पाता,
    और जुड़ता भी नही....
    सिमटता भी नही किसी तरह...
    बिखरता भी नही है....
    मेरा और तुम्हारा रिश्ता.... shaandaar.....

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  5. yaadon की ganthe khulne के बाद भी अपने आप लग जाती हैं .......... सच कहा makdi के jaalon की तरह बिन bataaye ही ug आती हैं ........ बहुत ही लाजवाब लिखा है ....

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  6. ये फ़िर होंगे....
    ज़हन की दीवारों पे,
    यादो के जाले......

    टूट भी नही पाता,
    और जुड़ता भी नही....
    सिमटता भी नही किसी तरह...
    बिखरता भी नही है....
    मेरा और तुम्हारा रिश्ता,

    shandaar panktiyan....

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  7. कई बार तुमने तोड़नी चाही
    कई बार मैंने भी...
    बड़ी पेचीदा गांठे है इसकी....
    गौर से देखिये इनमे गाठें नही है और इनकी मजबूती क्या कहने!!
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  8. ये फ़िर होंगे....
    ज़हन की दीवारों पे,
    यादो के जाले......

    gazab.......sometimes you surprise me...

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  9. वे तो बयां कर देते हैं हाल-ए-दिल
    सितम तो मुझ पे होता है सुन-सुन के !

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  10. ज़हन की दीवारों पे,
    यादो के जाले......

    बड़ी पेचीदा गांठे है इसकी....


    यादों के ढीठपन के लिये जालों से और रिश्तों की कॉप्लेक्सिटी के लिये गाँठों से ज्यादा बेहतरीन और स्वाभाविक प्रतीक और क्या हो सकते हैं..
    और अपनी कविताओं मे जिस तरह आप स्पेस और डॉट्स दे कर दिलफ़रेब मिस्टिसिज्म पैदा करते हो यहाँ उसकी तारीफ़ किये बिना भी नही रहा जाता..
    शानदार!!

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  11. वाह राज
    इसबार बिलकुल अलहदा है अंदाज़
    अनूठे प्रतीक अनकही सी कहन
    होती रहे तुम्हारी शिरकत से नज़मो की महफ़िल आबाद
    जिंदाबाद ए मोहब्बत जिंदाबाद

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  12. waah! kya khoob kaha hai..

    ज़हन की दीवारों पे,
    यादो के जाले......

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  13. क्या बात है ... बड़ी देर में पहुच पाया आपके ब्लॉग पर डार्विन के अनालिसिस में गलती है आदमी का ओरिजिन बन्दर नहीं मकडा है जले बुनना ही इसका बुनियादी मिजाज है

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  14. बहुत बेहतरीन लिखा है आपने
    बहुत अच्छा लगा पढ़कर

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  15. Yaado ka jaal sachmuch bahut pechida hota he..
    makadi ke jaalo se tapakta hua rishto ka jo jaal aapne buna sach me dil ko chhuta he..
    kitani baar kahu..aapki rachnao se mujhe bahut sookun milataa he...yah har dil ki baat he, har dimag me koundhati he..shbdo ke jariye pahuchane ki jo aapke paas kalaa he vo ...waaaah kya jabardast he.

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  16. आप सुंदर भावपूर्ण कविताएं लिखती हैं. वे सीधे मन को छूती हुई गुजरती है.

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  17. har baar tareef karna achcha nahi lagta Raaj!.......aapke concept bahut achchey hote hai sochne par majboor karte hue ........

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  18. ये फ़िर होंगे....
    ज़हन की दीवारों पे,
    यादो के जाले......

    बिलकुल लगते ही रहेंगे चाहे जितना हटाओ.

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  19. महीन महीन,
    कितने भी हटाओ...
    आज या कल,
    ये फ़िर होंगे....

    बहुत महीन सोच है आपकी.... बहुत नाजुक...

    और दूसरी रचना का तो एक भी शब्द कापी पेस्ट करना गुनाह सा लग रहा है...
    तारीफ़ करना बेमानी...

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  20. Javab nahi tumhara. Net per itni gambhir Rachana....Vah...vah...prashansniy.

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  21. bahut khubsoorat rachnayein hain apki.. har ek ko padh kar lagta hai khudki kahani ho.. :)

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...क्यूंकि कुछ टिप्पणियाँ बस 'टिप्पणियाँ' नहीं होती.