शनिवार, 10 अक्तूबर 2009


उगता सूरज नहीं देख पाई कभी,
पर कल्पना कई बार की है।
डूबते सूरज के पीछे पीछे चलती हूँ,
जब डूब जाता है तो लौट आती हूँ।
कही वो भी कोई उगता सूरज तो नहीं है?




तुम कहते हो चलो रोंप देते है,
गुलमोहर के पेड़ सडको के दोनों तरफ़।
ताकि आने वाली पीढिया कर सके,
इश्क की बातें इनके नीचे।
मैं पूछती हूँ पिछली पीढियो ने ,
ये क्यूँ नहीं रोपे ???



उसके आने की खुशी और दुःख है उस पुल का।
जो बन रहा है मेरे शहर के दरवाजे पर।
वो आयेगा तो क्या सोचेगा,
कैसा बिखरा उखडा सा है शहर इसका???

20 टिप्‍पणियां:

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  2. तुम कहते हो चलो रोंप देते है,
    गुलमोहर के पेड़ सडको के दोनों तरफ़।
    ताकि आने वाली पीढिया कर सके,
    इश्क की बातें इनके नीचे।
    मैं पूछती हूँ पिछली पीढियो ने ,
    ये क्यूँ नहीं रोपे ???
    prashan to bahut hi jayaz hai...

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  3. डूबते सूरज के पीछे पीछे चलती हूँ,
    जब डूब जाता है तो लौट आती हूँ।
    कही वो भी कोई उगता सूरज तो नहीं है?
    doobte aur ugte sooraj mein koi fark nahi hai.. wahi sooraj chand ghanto baad ugta hai. fark to SAMAY ka hai dost..
    ताकि आने वाली पीढिया कर सके,
    इश्क की बातें इनके नीचे।
    मैं पूछती हूँ पिछली पीढियो ने ,
    ये क्यूँ नहीं रोपे ???
    hein ji? nahi rope the kya? chanv to mil rahi hai kahin se..

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  4. जो कहन था सभी ने कह दिया, इतना हीं कहूँगा लाजबाव !!!!

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  5. मैं पूछती हूँ पिछली पीढियो ने ,
    ये क्यूँ नहीं रोपे ???
    शास्वत प्रश्न ...
    डूबते सूरज के पीछे पीछे चलती हूँ,
    जब डूब जाता है तो लौट आती हूँ।
    कही वो भी कोई उगता सूरज तो नहीं है?
    उलझन है ..वह उगता सूरज था तो दो पहर रुक कर देखना था ना ...

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  6. मैं पूछती हूँ पिछली पीढियो ने ,
    ये क्यूँ नहीं रोपे ???
    मलाल सार्थक है. हमारी हसरते पूरी नही हुई पर हम अगली पीढी को तो दे.

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  7. कोई ये भी तो सोचे
    कि उसके आने की ख़ुशी में हीं
    बनाया जा रहा है ये नया पुल..

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  8. उसके आने की खुशी
    और दुःख है उस पुल का।
    जो बन रहा है मेरे शहर के दरवाजे पर।
    वो आयेगा तो क्या सोचेगा,
    कैसा बिखरा उखडा सा है शहर इसका ?

    ये सबसे खूबसूरत है .... बहुत बढ़िया !

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  9. तुम कहते हो चलो रोंप देते है,
    गुलमोहर के पेड़ सडको के दोनों तरफ़।
    ताकि आने वाली पीढिया कर सके,
    इश्क की बातें इनके नीचे।
    मैं पूछती हूँ पिछली पीढियो ने ,
    ये क्यूँ नहीं रोपे ???




    हम्म!!!!!!!!!!!!
    ये ख्याल काफी बेहतरीन है ...

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  10. तुम कहते हो चलो रोंप देते है,
    गुलमोहर के पेड़ सडको के दोनों तरफ़।
    ताकि आने वाली पीढिया कर सके,
    इश्क की बातें इनके नीचे।
    मैं पूछती हूँ पिछली पीढियो ने ,
    ये क्यूँ नहीं रोपे ???tabhi to ishk nahi , aage kee pidhi ke liye ek saugaat hamari taraf se

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  11. AAPKI RACHNAAYEN PADH KAR MAN SUNSAAN RAASTE PAR NIKAL JAATA HAI AUR TANHAAI MEIN BAATEN KARTA HUVA LAGTA HAI ......
    HAR RACHNA APNE AAP SE JAISE KUCH POOCHTI RAHTI HAI .... UDAASI KA AAVRAN ODE CHUPCHAAP CHALTI HUYEE RACHNA .....

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  12. ਜਿਸਦੀ ਏਨੀ ਸ਼ਿੱਦਤ ਨਾਲ਼ ਉਡੀਕ ਹੁਣ ਤਾਂ ਆ ਜਾਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਉਸਨੂੰ ।

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  13. सुंदर... ओस की बूंद की तरह...

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  14. डूबते सूरज के पीछे पीछे चलती हूँ,
    जब डूब जाता है तो लौट आती हूँ।

    यही है एक चिरंतन उम्मीद, एक सतत इंतजार, एक अवश्यंभावी प्रारब्ध और एक अनवरत जीवन
    बस इन दो पंक्तियो को पढ़ने के बाद आगे नही पढ़ पाया.

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  15. तुम कहते हो चलो रोंप देते है,
    गुलमोहर के पेड़ सडको के दोनों तरफ़।
    ताकि आने वाली पीढिया कर सके,
    इश्क की बातें इनके नीचे।
    मैं पूछती हूँ पिछली पीढियो ने ,
    ये क्यूँ नहीं रोपे ???

    great !!!

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  16. तुम कहते हो चलो रोंप देते है,
    गुलमोहर के पेड़ सडको के दोनों तरफ़।
    ताकि आने वाली पीढिया कर सके,
    इश्क की बातें इनके नीचे।
    मैं पूछती हूँ पिछली पीढियो ने ,
    ये क्यूँ नहीं रोपे ??? ye khyaal bhi ishq ki galiyon me hi aaya hai. vichaarniya hai. baaki bhaav pahle ki tarah umda.

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  17. कहते हैं कविता में प्रश्न कविता के रस को कम कर देता है और जिज्ञासा की ओर खींच देता है। किंतु यह कोई क्यों नहीं कहता कि ऐसे प्रश्न उपजते कैसे हैं जो मन को भी झिंझोड दे? प्रेम ही हो, कविता यह नहीं चाहती। प्रयोग हो, यह भी जरूरी नहीं। और कोई कविता के माध्यम से किसी नतीज़े पर पहुचे यह भी जरूरी नहीं होता। जरूरी यह होता है कि रचना है, उसके अंतर में प्रेम,पीडा, प्रश्न, उम्मीद, आकांक्षा सब कुछ है तो वाह कविता का मज़ा ही आ जाता है। राज जी, मैं तो कहुंगा आप काबिलेतारीफ हैं। और यही वजह है कि मुझे आपको पढने में ज्यादा अच्छा लगता है।

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  18. जिंदगी के उजाडपन को बडी नफासत से सजाया है आपने। इस सोच को सलाम करने को जी चाहता है।
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