गुरुवार, 29 दिसंबर 2011


नहीं कोई उम्मीद ..
नहीं..कोई अपेक्षा नहीं..
फिर भी कुछ ऐसा...
 जो अच्छा है..
.कितना कुछ है हममें ..
और कुछ भी नहीं..
एक बार..
 ले चलो वहां...
... जहाँ काशनी फूल खिले हो...

..जहाँ हवा बहे तो महसूस हो....
 इत्मीनान हो..
कुछ जरा आराम हो...
जहाँ  ख्वाबों की मूर्त ना हो धुंधली ..
...बसंत के दिन ..
पतझड़ की तरह हो ठन्डे ..
खामोशी की तहें बिछी हो..
बंद करदे शोकगीत गाना..
रात का वो..
अकेला पंछी..
तब..
तुम्हारी सांसों के पत्ते
अचानक से गिरे..
तोड़ दे मेरे मौन को..
मौन...
... स्याह रात के अँधेरे सा मौन..
रुको नहीं ..
कुछ कहते-कहते..
थकूं नहीं मैं सुनते-सुनते..
हलचल हो बस इतनी..
पानी में कंकर जितनी..
ले चलो वहां..

जहाँ...

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर आह्वान .. तथास्तु

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  2. वाह ………कोमल भावो को बहुत ही प्रेम से सहेजा है।

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  3. इत्मीनान हो..
    कुछ जरा आराम हो...
    जहाँ ख्वाबों की मूर्त ना हो धुंधली ..
    बहुत सुन्दर
    vikram7: आ,मृग-जल से प्यास बुझा लें.....

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  4. बेहतरीन........आपको नववर्ष की शुभकामनायें

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  5. अपने में अपनी सी सीमित अपने हृदय की हर धड़कन।

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  6. kitne din baad kuch likhi ho.. lekin isko padhne ke baad afsos nahi hua... mashallah...:)

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  7. Bahut badhiya.

    तुम्हारी सांसों के पत्ते
    अचानक से गिरे..
    तोड़ दे मेरे मौन को..
    aur
    पानी में कंकर जितनी..

    bahut sahi likha hai.

    Agar socha jaye ki patton ke girne ki aawaazein nahi hoti to khyaal aur bhi khoobsuurat ho jaata hai.

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