वणजारे हो ...सपनों की वणज करते हो..ऊँचे दाम भी नहीं फिर भी जाने क्यूँ सपनों को खरीदने की हिम्मत नहीं होती..किससे सीखे इतने मीठे लफ्ज़ बोलते हो जो बेचते हो जब सपने...जानते हो जो लफ्ज़ नहीं बोलते हो इससे भी मीठे है..इस राह से लौटोगे..लौटते वक़्त फिर से दिखा जाना बचे हुए सपने..सफ़र में मुझे याद नहीं करना..मेरी ऑंखें उतनी उदास नहीं जितनी दिखती है..ये नींद से उतनी नहीं भरी जितनी सपनों से भरी है......किसी पत्थर युग में ये बुत तुमने घडा है..तुम्हें पता होगा.हर आने वाले दिन को कलम से काटती रहूंगी...लौट के आना कि शामें अब सिल्ली सांवली सी है...हथेली पर लगी महिन्दी सी महकती नहीं है..आना कि गेहूं की पैलियों में बिखरी सरसों चुनेंगे.आना कि टूनेहारी स्याह रातों में अपने अपने आस्मां के सितारें गिनेंगे..चमकते मैं और फीके तुम गिनना.तुम्हें दिखाउंगी नये मौसम में बनाये है पंछियों ने नये घोंसलें फिर से...तुम आना कि तुम बिन रास्तों पर नजर टिकाये बांवरी पीली दोपहरें मारी-मारी फिरती है..मन उड़ा उड़ा सा रहता है तुम बहुत दूर जो बसते हो..मैं पत्तियां झुकाए उदास पेड़ सी खफा लगूंगी तुम्हें..तुम मनाना मुझे मेरे बचपन वाले नाम को पुकार कर..आधी-आधी रात उठ कर तुझे हाक मारने को जी चाहता है..सोये हुए घूक अँधेरे के सीने में छिप जाऊं ..मेरे होंटों को चूम ले तेरा ज़िक्र..मोती रंग की चांदनी गवाही देगी कि दूज का चाँद मुस्कराता है बिलकुल तुम्हारी तरह..
तुम आना..........
तुम आना..........
सपने...सपने...सपने...
जवाब देंहटाएंबनजारे सपने......!!
लाजवाब अंदाज़ ...
जवाब देंहटाएंसब आते,
जवाब देंहटाएंबस आस जगाते..
बेहद खूबसूरत अंदाज़ !!!
जवाब देंहटाएंsundar andaje byan!
जवाब देंहटाएंबड़े दिनों बाद ब्लॉग पर दस्तक दी है आपने। खूबसूरत एहसास!
जवाब देंहटाएंbehtreen andaaz....
जवाब देंहटाएंमेरी ऑंखें उतनी उदास नहीं जितनी दिखती है..ये नींद से उतनी नहीं भरी जितनी सपनों से भरी है.....
जवाब देंहटाएंआप इतने दिनों के बाद ब्लॉग पर आयी हैं. काफी अच्छा लगा.
अंतर्मन को सुकून देती पोस्ट...
Kisi kavita ke samaan ye lekhan hai!
जवाब देंहटाएंइंतिहा हो गयी इन्तेज़ार की...
जवाब देंहटाएं"मेरे होंटों को चूम ले तेरा ज़िक्र..मोती रंग की चांदनी गवाही देगी कि दूज का चाँद मुस्कराता है बिलकुल तुम्हारी तरह.."
क्या कहूँ और...
.मैं पत्तियां झुकाए उदास पेड़ सी खफा लगूंगी तुम्हें..तुम मनाना मुझे मेरे बचपन वाले नाम को पुकार कर..आधी-आधी रात उठ कर तुझे हाक मारने को जी चाहता है..सोये हुए घूक अँधेरे के सीने में छिप जाऊं ..मेरे होंटों को चूम ले तेरा ज़िक्र..मोती रंग की चांदनी गवाही देगी कि दूज का चाँद मुस्कराता है बिलकुल तुम्हारी तरह..
जवाब देंहटाएंकित्ता सुन्दर लिखा है डिम्पल...
सपने सपने सपने ... एक ही सांस में पढ़ गया .. गज़ब का लिखा है ...
जवाब देंहटाएंcomment number 6, 12 & 13 koi LIKE kiyaa
जवाब देंहटाएंaur kavita ko bhi bahut LIKE kiya