मंगलवार, 12 जुलाई 2011

ये इतना आसान नहीं होगा...
नज्मों में मेरा अब से नहीं होना...
....तुम्हें पहले से ज्यादा ध्यान रखना होगा..
कवि कहीं ये बात भूल नहीं जाये...

कवि को चेताते रहना..
आखरी पुल से गुजरते वक्त..
उस तरफ़ नहीं देखे
जहाँ मैं और तुम खड़े सोच रहे थे
...अब किस तरफ़ जाये...

मोल भाव किये जामुन..
रास्ते में नहीं भूल जाये...
लेकिन मोहन पार्क की सीढ़ियों से...
निशान मिटाना याद रखे...

रास्तों को पार करते हुए..
दोनों तरफ़ देखें..
ये जरुरी है...
जहाँ भीड़ ज्यादा है ..
वहां कुछ बुरा ही हो..
ये जरुरी नहीं...

सिर्फ़ छूई-मुई को पानी देते हुए
ध्यान रखे...
सभी पौधे छूई-मुई नहीं होते..
पर हर छूई-मुई छूई-मुई होती है...

फिर भी अगर उसकी नज्मों में..
मैं थोड़ा बहुत रह जाऊं ...
तो कवि से कहना...
....चल हऊ कर दे...