इतिहास के पृष्ठों में,
कब का चुप है.
लटकते सवाल लिए अपने सर पे..
कब का चुप है.
लटकते सवाल लिए अपने सर पे..
..दब जाता है,
कौम जात,
रीति रिवाज़,
वाद विवाद के बोझ तले..
डर जाता है,
कतरे ब्योंते कानून से..
कतरे ब्योंते कानून से..
जंग की खबर से,
बिलखने लगता है.
रोटी की फ़िक्र में,
सहम जाता है.
maslow's law के ,
पहले ही पडाव में,
छुप जाता है,
किसी अँधेरे कोने में,
गुच्छा सा होके..
रुक नहीं पाता,
तेज़ धार के आगे और
डूब जाती है कोई सोहनी..
कच्चा घड़ा,
बेबस छटपटाता है..
मात खाता है,
जब सारे तरकश,
पहुंच से दूर हो जाते है.
तब जंड सा जड़ हो जाता है..
ढाई ही अक्षर है ,
इसलिए अक्सर कम पड़ जाता है..