जरा-जरा सा..
फालसा किनारा..
...एक लम्बी कविता को ..
...लिखने के बाद ..
काटे हुए ..
..गैरजरूरी..
शब्दों जैसी..
...पलकों में बंद..
...शबनम जितनी..
..मैं..
तुम्हारी पूरी ज़िन्दगी का..
एक बहुत ही छोटा सा हिस्सा भर हूँ..
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२
सुनो..
गिरी पड़ी..
किताबों को..
..जब सही जगह रखो..
उनसें गिरा कोई..
खत..
मिले तो..
..फिर न पढ़ना..
मेरा नाम..
गर लो...
तो होंठों पर उंगली रखना..
बताओ !
क्या तुम्हें पता है..
क्या तुम्हें पता है..
सितारे टूट कर..
सच्ची में नहीं गिरा करते..
दुनिया में..
किसी जगह..
सपनें भी नहीं उगा करते..
मैं जानती हूँ..
भले ही देखूं..
आखरी माले से..
आसमां..
दूर नज़र आएगा..