मंगलवार, 5 जून 2012

आटे की चिड़िया ..(concentration camp prague)

अभी मैंने चित्र बनाने सीखे नहीं थे..
माँ रोटियां बनाती..
...मैं
आटे की चिड़िया ..
वह घर से निर्वासन था..
जिसे मैं लम्बी छुट्टी समझा..
सूखी पहाड़ियों सी माँ की ऑंखें ..
तलाश रही थी एक जगह..
उग आये थे बेवक्त कैक्टस ..
पिता की आँखों की सिलवटों में..
नये दिनों की मोमबत्तियां ..
गुनगुना रही थी
बहन की चमकती आँखों में...
चेहरों पर लगे सभी चेहरे मौन थे..
आटे की चिड़िया 
मेरे हाथ में फडफडा रही थी..
वर्तमान की भागती गाड़ी..
बीत चुके और आने वाले..
जैसा कोई गीत गा रही थी..
साज़ से निकली धुन की तरह..
हर लय मुझसे छूट गयी..
मेरे पास कविता बची थी बोतल में बंद..
पर समन्दर नहीं था..
आस्मां था...
पर दीवारों में छेद नहीं..
मैंने चित्र बनाने नहीं सीखे थे..
चिपकी हुई थी ..
मेरे हाथों से..
आटे की चिड़िया
मैं मर चुका था..
...बहुत दिन हुए...