मंगलवार, 12 जुलाई 2011

ये इतना आसान नहीं होगा...
नज्मों में मेरा अब से नहीं होना...
....तुम्हें पहले से ज्यादा ध्यान रखना होगा..
कवि कहीं ये बात भूल नहीं जाये...

कवि को चेताते रहना..
आखरी पुल से गुजरते वक्त..
उस तरफ़ नहीं देखे
जहाँ मैं और तुम खड़े सोच रहे थे
...अब किस तरफ़ जाये...

मोल भाव किये जामुन..
रास्ते में नहीं भूल जाये...
लेकिन मोहन पार्क की सीढ़ियों से...
निशान मिटाना याद रखे...

रास्तों को पार करते हुए..
दोनों तरफ़ देखें..
ये जरुरी है...
जहाँ भीड़ ज्यादा है ..
वहां कुछ बुरा ही हो..
ये जरुरी नहीं...

सिर्फ़ छूई-मुई को पानी देते हुए
ध्यान रखे...
सभी पौधे छूई-मुई नहीं होते..
पर हर छूई-मुई छूई-मुई होती है...

फिर भी अगर उसकी नज्मों में..
मैं थोड़ा बहुत रह जाऊं ...
तो कवि से कहना...
....चल हऊ कर दे...

27 टिप्‍पणियां:

  1. कवि को चेताते रहना..
    आखरी पुल से गुजरते वक्त..
    उस तरफ़ नहीं देखे
    जहाँ मैं और तुम खड़े सोच रहे थे
    ...अब किस तरफ़ जाये...

    गजब!

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  2. तस्वीर बहोत सुन्दर है. बाकी कहना जरुरी नहीं है.

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  3. और हैरत है इतना ठंढी तासीर !

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  4. सिर्फ़ छूई-मुई को पानी देते हुए
    ध्यान रखे...
    सभी पौधे छूई-मुई नहीं होते..
    पर हर छूई-मुई छूई-मुई होती है...

    बेहतरीन.
    ---------

    कल 13/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  5. अमां यार डिम्पल...इतनी खूबसूरत कविता की तारीफ करने को वो पुरसुकून, दिलकश शब्द कहाँ से लाऊं...ऐसा प्यारा, ऐसा मासूम.

    दिल ले गयी यार तुम तो.

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  6. सच में सपने सोने नही देते .... बहुत सुंदर रचना

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  7. हर छुईमुई सिकुड़ने के बाद अपना विस्तार पा ही जाती है, मानसिकता सँवारनी पड़ेगी।

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  8. कवि को चेताते रहना..
    आखरी पुल से गुजरते वक्त..
    उस तरफ़ नहीं देखे
    जहाँ मैं और तुम खड़े सोच रहे थे
    ...अब किस तरफ़ जाये...
    Bahut khoob!

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  9. पुल, जामुन, मोहनपार्क, छुईमुई.. जैसे कहीं देखा हुआ सा.. जैसे कहीं सुना हुआ सा.. जैसे कभी गुजरा हूँ इधर से.. :-)

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  10. अपन भी पंकज भाई के पीछे-पीछे ही गुजरे इधर से..मगर रस्ता भटक रहे हैं बीच से.. ;-)

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  11. सपने सच नहीं होते...अक्सर..ज़िंदगी भर याद आते हैं ऐसे सपने ...अच्छी रचना...आपके ब्लॉग पर आई...अच्छा लगा ...कई रचनाएँ पढ़ी..बढ़िया लिखती हैं ,आप

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  12. कवि को चेताते रहना..
    आखरी पुल से गुजरते वक्त..
    उस तरफ़ नहीं देखे
    जहाँ मैं और तुम खड़े सोच रहे थे
    ...अब किस तरफ़ जाये...

    बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ ..

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  13. इत्तेफकान अगले दिन गुजरा था सो वाकिफ हूँ इन रास्तो से ....वैसे नज़्म ओर शायर का साथ ज्यादा रूमानी रहता है

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  14. Re Ladki kahan hai aajkal ? aati bhi hai to senti hi karti hai bas....yahan Luknow ke jamun ab zubaan baigni nahi karte....pahle jaisi mithas, khatass aur kasilapan bhi nahi....lekin teri kavita tasty hai ...Thodi si chakh loon kya ? :-)

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  15. सिर्फ़ छूई-मुई को पानी देते हुए
    ध्यान रखे...
    सभी पौधे छूई-मुई नहीं होते..
    पर हर छूई-मुई छूई-मुई होती है...


    ये बात लिखने के लिये भावुकता का कितना बड़ा दौरा झेलना पड़ता है, ये वो लिखने वाला ही समझ सकता है।

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  16. कितनी सुंदर कविता है!

    कवि को चेताते रहना..
    आखरी पुल से गुजरते वक्त..
    उस तरफ़ नहीं देखे
    जहाँ मैं और तुम खड़े सोच रहे थे
    ...अब किस तरफ़ जाये...

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  17. क्यूंकि कुछ टिप्पणियाँ बस 'टिप्पणियाँ' नहीं होती...



    par hamaari har tippani..

    bas........

    tippani hoti hai.......

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  18. karta/kaarak/kaaran.....

    karam..

    kyaa kyaa nahin hai...jo ek second mein bijali ki tarah aankhon ke aage daud gayaa...


    kyaa karein...



    हऊ कर दे..




    par kaise................????????????????

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  19. बेहतरीन रूमानी कविता ... शब्द मन में तैर रहे है .. और यादो को आगाज़ कर रहे है कि एक नज़्म और लिखा जाए ..

    आभार
    विजय

    कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

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  20. सभी पौधे छूई-मुई नहीं होते..
    पर हर छूई-मुई छूई-मुई होती है...

    कितना कुछ कह जाती है .....

    सच में कुछ सपने सोने नहीं देते ......

    यदि मीडिया और ब्लॉग जगत में अन्ना हजारे के समाचारों की एकरसता से ऊब गए हों तो कृपया मन को झकझोरने वाले मौलिक, विचारोत्तेजक आलेख हेतु पढ़ें
    अन्ना हजारे के बहाने ...... आत्म मंथन http://no-bharat-ratna-to-sachin.blogspot.com/

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  21. सिर्फ़ छूई-मुई को पानी देते हुए
    ध्यान रखे...
    सभी पौधे छूई-मुई नहीं होते..
    पर हर छूई-मुई छूई-मुई होती है...

    कुछ रिश्ते भी ऐसे ही होते है
    बातों की गर्मी से छुई-मुई से मुरझा जाते हैं....

    ***punam***
    bas yun...hi..

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  22. पहले तो में आप से माफ़ी चाहता हु की में आप के ब्लॉग पे बहुत देरी से पंहुचा हु क्यूँ की कोई महताव्पूर्ण कार्य की वजह से आने में देरी हो गई
    आप मेरे ब्लॉग पे आये जिसका मुझे हर वक़त इंतजार भी रहता है उस के लिए आपका में बहुत बहुत आभारी हु क्यूँ की आप भाई बंधुओ के वजह से मुझे भी असा लगता है की में भी कुछ लिख सकता हु
    बात रही आपके पोस्ट की जिनके बारे में कहना ही मेरे बस की बात नहीं है क्यूँ की आप तो लेखन में मेरे से बहुत आगे है जिनका में शब्दों में बयां करना मेरे बस की बात नहीं है
    बस आप से में असा करता हु की आप असे ही मेरे उत्साह करते रहेंगे

    जवाब देंहटाएं

...क्यूंकि कुछ टिप्पणियाँ बस 'टिप्पणियाँ' नहीं होती.