पता नहीं क्यों..आपसे कितना भी चिढ जाऊं..पर आपकी बात ना मानूं ऐसा नहीं कर पाती..आपने कहा था डायरी लिखूं...नहीं लिखना चाहती थी...फिर भी ....दुनिया बदल जाना किसे कहते है..मैंने अभी जाना नहीं था..एक दरवाज़ा बाहर की तरफ़ खुलता था ..एक अंदर की तरफ़..सामान उतारा जा चुका था..गाड़ी धूल की लकीर अपने पीछे छोड़ती हुई जाती दिखी...जी चाहा भाग के धूल का एक छोर पकड़ लूँ..पर..मैं अपनी जगह से हिली तक नहीं..ना बाहर जाने के लिए ना अंदर जाने के लिए..सब मेरी जानकारी में
मेरी मर्जी से हो रहा था..फिर भी मैं हैरान थी...मुझे पता नहीं ..मैंने कब अंदर जाने वाला दरवाज़ा खोला..दुनिया,बदल जाना मैंने जान लिया था..एक भी ऐसा चेहरा नहीं जिसे मैंने पहले देखा हो.ऐसी कोई भी आवाज़ नहीं जिसे पहले सुना हो..मैं वहां क्यों थी..मुझे वहां नहीं होना चाहिए था..मैं अपना भला बुरा नहीं जानती ..ना जानना चाहती हूँ......रेलिंग पर खड़े हुए सूर्य अस्त को देखती रही ..कितना बुरा लग रहा था उसका यूँ चले जाना..जाने कब आंसू बहने लगे कब हिचकियाँ बंध गयी..मुझे कुछ पता नहीं कितनी आवाज़े मुझे बहला रही थी..मैं किसी को नहीं जानती..मैं किसी को जानना भी नहीं चाहती..
मैं कुछ सुनना नहीं चाहती..मुझे यहाँ नहीं रहना..मुझे बस लौटना है अपनी दुनिया में..घंटो रो लेने के बाद मैं चुप थी..पर उदास..बेहद उदास....एक रात..एक सुबह..एक दोपहर ..कुछ ना खाने के बाद मैंने जाना भूख किसे कहते है..सूर्य फिर जा रहा रहा..मैं गीली आँखों से उसे देखती रही..मुझे यहीं रहना है..मैंने आँखे उठा के सब और देखा..चेहरों को पहचानने की कोशिश की..पहले माले से चौथे माले तक की सीढ़ियों को गिना..
कॉरीडोर में पड़े गमलो में पौधो को छुहा..खाना भी खाया......मैं वहाँ थी जहाँ मुझे नहीं होना चाहिए था..पर आप कहते हो कि वहीँ होना चाहिए था..आपकी बात मना नही कर सकती....
मेरी मर्जी से हो रहा था..फिर भी मैं हैरान थी...मुझे पता नहीं ..मैंने कब अंदर जाने वाला दरवाज़ा खोला..दुनिया,बदल जाना मैंने जान लिया था..एक भी ऐसा चेहरा नहीं जिसे मैंने पहले देखा हो.ऐसी कोई भी आवाज़ नहीं जिसे पहले सुना हो..मैं वहां क्यों थी..मुझे वहां नहीं होना चाहिए था..मैं अपना भला बुरा नहीं जानती ..ना जानना चाहती हूँ......रेलिंग पर खड़े हुए सूर्य अस्त को देखती रही ..कितना बुरा लग रहा था उसका यूँ चले जाना..जाने कब आंसू बहने लगे कब हिचकियाँ बंध गयी..मुझे कुछ पता नहीं कितनी आवाज़े मुझे बहला रही थी..मैं किसी को नहीं जानती..मैं किसी को जानना भी नहीं चाहती..
मैं कुछ सुनना नहीं चाहती..मुझे यहाँ नहीं रहना..मुझे बस लौटना है अपनी दुनिया में..घंटो रो लेने के बाद मैं चुप थी..पर उदास..बेहद उदास....एक रात..एक सुबह..एक दोपहर ..कुछ ना खाने के बाद मैंने जाना भूख किसे कहते है..सूर्य फिर जा रहा रहा..मैं गीली आँखों से उसे देखती रही..मुझे यहीं रहना है..मैंने आँखे उठा के सब और देखा..चेहरों को पहचानने की कोशिश की..पहले माले से चौथे माले तक की सीढ़ियों को गिना..
कॉरीडोर में पड़े गमलो में पौधो को छुहा..खाना भी खाया......मैं वहाँ थी जहाँ मुझे नहीं होना चाहिए था..पर आप कहते हो कि वहीँ होना चाहिए था..आपकी बात मना नही कर सकती....
मानो तो देव नहीं तो पत्थर
जवाब देंहटाएंमानो तो पानी, नहीं तो गंगा जल
और
मानो तो भावनाओं की बहती नदी नहीं तो बेकार
"रेलिंग पर खड़े हुए सूर्य अस्त को देखती रही,
कितना बुरा लग रहा था उसका यूँ चले जाना,
जाने कब आंसू बहने लगे कब हिचकियाँ बंध गयी,
मुझे कुछ पता नहीं कितनी आवाज़े मुझे बहला रही थी"
ये बात बहुत पसंद आई.
वो, जिसकी बातें टाली नहीं जा सकतीं उसपे अहसान कब करते हैं हम... हमें तो पूरी कविता में प्यार ही प्यार दिखा... अहसान कहाँ...
जवाब देंहटाएंbahut sundar abhiwyakti ....swagat hai !!
जवाब देंहटाएंजी चाहा भाग के धूल का एक छोर पकड़ लूँ ...
जवाब देंहटाएंye kya kah diya.... :)
भावमयी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंकॉरीडोर में पड़े गमलो में पौधो को छुहा..खाना भी खाया..ये भी आपपे अहसान किया..मैं वहाँ थी जहाँ मुझे नहीं होना चाहिए था..पर आप कहते हो कि वहीँ होना चाहिए था..आपकी बात मना नही कर सकती....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब भावों को पिरो कर गज़ब प्रस्तुति.
bhut khubsurat bhaavo ko shabdo me dhal diya apne...
जवाब देंहटाएंअजी आप एहसान बहुत करने लगे हैं आजकल....हम तो सोचते थे आप खुश होंगे यें सारी बातें मान कर :-)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंउदास कर दिया तुमने... न जाने क्या क्या याद दिला दिया!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
खूबसूरत शैली
जवाब देंहटाएंखूबसूरत भावनाओं
और
खूबसूरत उदासी में भीगी हुई
खूबसूरत तहरीर ....
ज़िन्दगी में
हालात के सच ही तो
सच मान लिए जाते हैं
हमेशा ही . . . !!
आलेख,
रचनात्मक कृति है
सो बहुत खूबसूरत है
GOD BLESS
har ek shabd dil par asar karti hai.....umda abhivyakti
जवाब देंहटाएंकितनी सुंदर डायरी लिखती हो ...
जवाब देंहटाएंओर कल मैंने " यही सच है " रजनीगंधा तीसरी बार देखने के बाद पढ़ी.....
जवाब देंहटाएंकिताब अभी भी साथ है तो उसका रोना महसूस कर पाया. बेचारे बुकमार्क की हालत का कभी ख़याल नहीं आया. शायद इंसान होने की गवाही है ये :)
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति....!!!!
जवाब देंहटाएंbeautiful !
जवाब देंहटाएंbhaawuk...
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है वाह.............
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