बुधवार, 1 दिसंबर 2010


कई बार सोचती हूँ..
कि तुम्हें आज न सोचूं...
और कुछ और
सोचूं..
..मैं..

सच..
कुछ और सोचा भी..
न जाने फिर भी...
..तुम..

जाड़ों की रात की सर्द हवा सी
तुम्हारी आवाज़...
भूल जाती हूँ सुनते-सुनते
कि क्या कह रहे हो..
अगर टोक के बीच में से पूछ लो कभी तो...
नहीं बता पाऊँगी...
कहाँ थे
..तुम..

तुम्हारी हंसी की सीढियां..
उतरती चढ़ती रहती हूँ..
..मैं..

जाओ अब ..
जाते हुए कहते हो जब..
मन चाहता है कि ठहर जाओ
और बस एक क्षण
..तुम..

19 टिप्‍पणियां:

  1. जाओ अब ..
    जाते हुए कहते हो जब..
    मन चाहता है कि ठहर जाओ
    और बस एक क्षण
    ..तुम..

    सारा प्यार समेट लिया है इन पंक्तियों मे।

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  2. बहुत दिन बाद आपको पढ़ा अच्छा लगा..
    ढेर सारा प्यार उमड़ आया आपकी कविता के माद्ध्यम से....
    बहुत खूब...
    मुट्ठी भर आसमान...

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  3. Main Tumse Baatein Karna Chahti Hun
    Main Tumhe Sunna Chahti Hun
    Main Kuch Kehna Chahti Hun
    Tum Kuch Kehte Kyun Nahin
    Tum Kch Puchte Kyun Nahin



    पता नहीं किसका है डिम्पल....पर कभी पढ़ा था ....आगे भी कुछ था ....पर शायद इतना बेहतर नहीं......मन किया इसे एडिट कर दूँ...........आज तुम्हे पढ़ा तो याद आया .सो कोपी पेस्ट कर रहा हूँ.........

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  4. भावुक, अर्थयुक्त और संप्रेषणीय प्रस्तुति।

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  5. दिल को छू गयी कविता। शुभकामनायें।

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  6. खूब.. आज फिर आपकी लेखनी का कमाल देखा.

    मन चाहता है कि ठहर जाओ
    और बस एक क्षण
    ..तुम..


    बहुत ही बढ़िया..

    मनोज

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  7. तुम्हे आज ना सोचूं ...
    सोचा तन्हाई में तुझे ना सोचूं ...
    तू और तन्हाई ...
    मुमकिन कहाँ थी ...

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  8. शायद पहली बार पढ़ रही हूँ आपको .अच्छी लगी आपकी अभिव्यक्ति.

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  9. सोच की नमी छु जाती कहीं...

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  10. What a nice work done dear!!
    I simply loved it :)
    Nice words, nice perception!

    Tcare!

    Regards,
    Dimple

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  11. जाओ अब ..
    जाते हुए कहते हो जब..
    मन चाहता है कि ठहर जाओ
    और बस एक क्षण.... बहुत ही बढ़िया..

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  12. बहुत अच्छी रचनाये हैं आपकी. मन को छू गयी . इतने सुंदर लेखन के लिए बधाई.

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...क्यूंकि कुछ टिप्पणियाँ बस 'टिप्पणियाँ' नहीं होती.