आज,
कच्चे पक्के रास्तों से गुजरना हुआ.
सब वैसा ही था.
आज भी,
'ब्लैक बोर्ड' पे लिखा सवाल,
नहीं निकला मुझसे.
मेरी झुकी गर्दन...
झुकी निगाहों पे...
चुभी,
...कई हंसती आँखे.
कई होंठ बुदबुदाये,
''पागल''
इतना आसान सवाल भी नहीं जानती.
नहीं जानते...
मुझे कितनी जरुरत है दुआओ की?
मेरी पेंटिंग की कॉपी में ...
मिला पहला 'गुड',
अभी भी फीका नहीं पड़ा था.
चलते चलते चुभा,
कुछ पांव में.
मेरी टूटी पायल थी.
जिसे,
कभी फैंक नहीं पाई मैं...
वो 'पत्थर' जिन्हें टकरा के....
निकलती थी चिंगारिया,
ज्यो के त्यों पड़े थे.
मैंने उठाया ....
महकते हुए कागज़ पे
लिखा 'इक नाम'.
मुट्ठी में दबा के फैंक दिया उन रास्तो पे कही.....
जहा चीज़े पड़ी रहती है बरसों तक.....
'ज्यूं' की 'त्यूं' .....
पीछे पलट के देखने के मोह को रोका.......
आसमां की ओर देख के....
बस इतना कहा,
खुदाया.......
''मेरी रूह टिक जाए बस अपनी जगह"
शुक्रवार, 27 नवंबर 2009
मंगलवार, 24 नवंबर 2009
बड़ा गरूर था उसे...
प्यार पे अपने....
ज़ी कहा पाउंगी..
बिछड़ के....
....नीर से...
बिछड़ के....
....नीर से...
...मर ही जाउंगी...
कहती थी अक्सर....
आज तड़प तड़प के,
किनारे पे दम तोडा उसने....
इक आस सी ...खुली आँखों में...
अब भी थी बाकी...
किसी अधूरे ख्वाब के जैसी...
समन्दर होता तो,
लहर ले लेती आगोश में उसको...
वो दरिया था...
...मजबूर....
अपने ही किनारों में बंधा.......
वो दम तोडती रही....
वो बहता रहा......
**********************************************
थोडा सा ही तो पढ़ा था उसे.....
पर कई बार....
....बहुत ध्यान से.....
कही कुछ छूट न जाये.....
फिर भी जितनी बार पढ़ा....
नये अर्थ मिले....
जैसे आईने में अक्सर...
बदल जाते है चेहरे....
जैसे आईने में अक्सर...
बदल जाते है चेहरे....
वो इंसान था
मगर....
मगर....
फलसफे जैसा..
*******************
न जाने कैसे...
.....अचानक ...
ज़िन्दगी का इक सिरा ...
..हाथ में आ गया...
.....सोचा....
क्यूँ न कुछ हिस्सा फिर से बुन लूँ.......
उधेडा.....
तो उधडती चली गयी...
न जाने क्यूँ....
...मैं बुन नहीं पाई....
जीने जैसे हालात कभी........
*******************
न जाने कैसे...
.....अचानक ...
ज़िन्दगी का इक सिरा ...
..हाथ में आ गया...
.....सोचा....
क्यूँ न कुछ हिस्सा फिर से बुन लूँ.......
उधेडा.....
तो उधडती चली गयी...
न जाने क्यूँ....
...मैं बुन नहीं पाई....
जीने जैसे हालात कभी........
गुरुवार, 19 नवंबर 2009
तुम पहले पुरुष हो...
और मैं पहली स्त्री...
ऐसा कुछ याद तो नहीं पड़ता...
मैं भूल गयी हूँ,
ऐसा भी नहीं है....
ये प्यार भी नहीं है,
पहला पहला....
कई सदियो तक का सफ़र...
और फिर पहुंचा है हम तक....
जब होगा इक नया युग..
तब भी...
किसी पूर्व से निकलेगा कोइ नया सूरज,
और छिप जायेगा किसी नए पश्चिम में......
फिर छिड़ेगा पहली बारिश का अनहद नाद....
तब भी...
अवशेष दबे होंगे प्यार के,
किसी नज़म के तले..
कही कही होंगे निशाँ किसी दर्द के,
दबे पांव चलने के....
आँखे भी नम होंगी ज़रा ज़रा सी बात पर.....
मिल जायेगी कही दुबक के बैठी हुई मुस्कान भी......
वो नया युग होगा....
मैं पहली स्त्री हूँगी...
और तुम पहले पुरुष......
और मैं पहली स्त्री...
ऐसा कुछ याद तो नहीं पड़ता...
मैं भूल गयी हूँ,
ऐसा भी नहीं है....
ये प्यार भी नहीं है,
पहला पहला....
कई सदियो तक का सफ़र...
और फिर पहुंचा है हम तक....
जब होगा इक नया युग..
तब भी...
किसी पूर्व से निकलेगा कोइ नया सूरज,
और छिप जायेगा किसी नए पश्चिम में......
फिर छिड़ेगा पहली बारिश का अनहद नाद....
तब भी...
अवशेष दबे होंगे प्यार के,
किसी नज़म के तले..
कही कही होंगे निशाँ किसी दर्द के,
दबे पांव चलने के....
आँखे भी नम होंगी ज़रा ज़रा सी बात पर.....
मिल जायेगी कही दुबक के बैठी हुई मुस्कान भी......
वो नया युग होगा....
मैं पहली स्त्री हूँगी...
और तुम पहले पुरुष......
सोमवार, 16 नवंबर 2009
रुक गयी...
छींक यूँ आते आते मुझको.....
तूं रह गया......
याद करते करते मुझको....
किसी और ख्याल ने,
रास्ता तेरा काटा होगा.......
दैनिक राशिफल-
आज कोइ शुभ समाचार मिलेगा.....
*************************
मोती यादो के भी पिरोये है जिनमे..
टूटते नहीं अब वो प्यार के रिश्ते..
कई साल लगे थे चीन की दीवार बनने में....
छींक यूँ आते आते मुझको.....
तूं रह गया......
याद करते करते मुझको....
किसी और ख्याल ने,
रास्ता तेरा काटा होगा.......
दैनिक राशिफल-
आज कोइ शुभ समाचार मिलेगा.....
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मोती यादो के भी पिरोये है जिनमे..
टूटते नहीं अब वो प्यार के रिश्ते..
कई साल लगे थे चीन की दीवार बनने में....
बुधवार, 4 नवंबर 2009

कई बार हटाया,
फ़िर आ ही जाते है....
दीवार के इस कोने में...
कभी उस कोने में....
महीन महीन,
कितने भी हटाओ...
आज या कल,
ये फ़िर होंगे....
ज़हन की दीवारों पे,
यादो के जाले......
**************
टूट भी नही पाता,
और जुड़ता भी नही....
सिमटता भी नही किसी तरह...
बिखरता भी नही है....
मेरा और तुम्हारा रिश्ता,
सदियो से लगी खुलती ही नही,
कई बार तुमने तोड़नी चाही
कई बार मैंने भी...
बड़ी पेचीदा गांठे है इसकी....
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