tag:blogger.com,1999:blog-6027169361733927297.post6442065757122274917..comments2023-11-03T15:39:20.105+05:30Comments on सपने जो सोने नहीं देते : डिम्पल मल्होत्राhttp://www.blogger.com/profile/07224725278715403648noreply@blogger.comBlogger32125tag:blogger.com,1999:blog-6027169361733927297.post-80716475869866097532011-02-18T15:41:46.167+05:302011-02-18T15:41:46.167+05:30कोई झूला जैसे बहुत ऊँचाई से नीचे आता है ना!...बस क...कोई झूला जैसे बहुत ऊँचाई से नीचे आता है ना!...बस कुछ उसी तरह का मन है...<br /><br />बा-कमाल...Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/03422827390527124568noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6027169361733927297.post-5364052339594770832011-02-13T21:37:12.767+05:302011-02-13T21:37:12.767+05:30Nice, Dear!Nice, Dear!Dr Varsha Singhhttps://www.blogger.com/profile/02967891150285828074noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6027169361733927297.post-23575880826218040762011-02-13T11:24:19.623+05:302011-02-13T11:24:19.623+05:30बेहतरीन लेखबेहतरीन लेखDudhwa Livehttps://www.blogger.com/profile/13090138404399697848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6027169361733927297.post-22954404214619427972011-02-08T12:02:40.296+05:302011-02-08T12:02:40.296+05:30कौन कहा फीट है और कौन कहा मीस फीट है
बसंत पंचमी ...कौन कहा फीट है और कौन कहा मीस फीट है <br />बसंत पंचमी की बहुत बहुत शुभकामनाएamar jeethttps://www.blogger.com/profile/09137277479820450744noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6027169361733927297.post-45416077247120248042011-01-27T22:32:28.219+05:302011-01-27T22:32:28.219+05:30soch rahi hoon...aise khat kabhi un nigaahon mein ...soch rahi hoon...aise khat kabhi un nigaahon mein aa pate hain ya nahi....jiske liye likhe gaye hain.pallavi trivedihttp://kuchehsaas.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6027169361733927297.post-62389077437626032082011-01-27T22:04:19.875+05:302011-01-27T22:04:19.875+05:30दर्द,प्रेम,विरह सब कुछ धुंधला सा बिम्बित होते हुए ...दर्द,प्रेम,विरह सब कुछ धुंधला सा बिम्बित होते हुए भी बहुत स्पष्ट नजर आया. न जाने कितनी परतें जो ज्यों ज्यों खुलीं अपनी सी लगीं जाने क्यों? न जाने क्यों?Meenu Kharehttps://www.blogger.com/profile/12551759946025269086noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6027169361733927297.post-72203345207752508762011-01-27T16:33:09.396+05:302011-01-27T16:33:09.396+05:30आह ..आपके यहाँ आवाजें कैद हो जाती हैं ...मेरे यहाँ...आह ..आपके यहाँ आवाजें कैद हो जाती हैं ...मेरे यहाँ ये एक ज़जीरे पे इकट्ठी होती रहती हैं जो अंतरिक्ष में हैं कहीं ... एक बेहद दिलचस्प और नयी बात कही आपने ..तारे को काले धागे से बाँधने से बारिश रुकने की बात ....बेहद खूबसूरत <br /><br />कोई झूला जैसे बहुत ऊँचाई से नीचे आता है ना!...बस कुछ उसी तरह का मन है..<br /><br />शायद मन को इससे ज्यादा अच्छी उपमा दे पाना असंभव है ...<br /> <br />मन तक उतरती बातें हैं यहाँ ... :)स्वप्निल तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/17439788358212302769noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6027169361733927297.post-26763920684425346632011-01-27T13:59:31.947+05:302011-01-27T13:59:31.947+05:30yah kavitatmak khat bahut achcha likha hai.yah kavitatmak khat bahut achcha likha hai.mridula pradhanhttps://www.blogger.com/profile/10665142276774311821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6027169361733927297.post-30939541843377722162011-01-27T11:08:10.570+05:302011-01-27T11:08:10.570+05:30इस पत्र को कितना भी एक्सटेंड किया जा सकता था..और ए...इस पत्र को कितना भी एक्सटेंड किया जा सकता था..और एक जिल्द युक्त किताब भी बन जाए, तब भी उसे एक मुश्त पढना आसान ही होगा..<br />हालांकि पत्र की समाप्ति धीरे-धीरे उस परीलोक से निकालने में सहायक भी रहती है और यह 'निषेध का निषेध' करने जैसा है और अंत में पाठक उसी मनोस्थिति में लौट आता है , जहाँ से उसने चलना प्रारंभ किया था , पर एक<br />तुलनात्मक प्रगति के साथ ..एक ऐसी प्रगति जो सीधी रेखा में नहीं बल्कि पेंच की चूड़ियों की तरह चक्कर खाती हुई और ऊपर उठती हुई होती हैDChttps://www.blogger.com/profile/02011311076382006162noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6027169361733927297.post-61450322353446192972011-01-26T23:30:06.144+05:302011-01-26T23:30:06.144+05:30मैं तुम्हे खुश देखना चाहती हूँ..पर मैं खुश क्यूँ ...मैं तुम्हे खुश देखना चाहती हूँ..पर मैं खुश क्यूँ नहीं हूँ?...क्या सुलग-सुलग जाता है मेरे भीतर..उफ़!...शायद मैं पागल होने का उम्मीदवार हूँ...तुम किसी परी कथा से हो..और सुखांत कहानियाँ मिसफिट हैं मेरी जिंदगी मे...जैसे मै मिसफिट हूँ दुनिया मे।<br /><br />डिम्पल जी बहुत ही बढ़िया लिखा है ये ख़त एक दम दिल के तारों को झनझनाता सा चला गया. बड़े सुकून से लिखा है आपने. उम्दा.रचना दीक्षितhttps://www.blogger.com/profile/10298077073448653913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6027169361733927297.post-78862668235411596082011-01-26T21:08:00.712+05:302011-01-26T21:08:00.712+05:30सोंचा, थोडा मौन यहाँ भी रख दूं...सोंचा, थोडा मौन यहाँ भी रख दूं...ओम आर्यhttps://www.blogger.com/profile/05608555899968867999noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6027169361733927297.post-80522976501943334262011-01-26T19:16:27.618+05:302011-01-26T19:16:27.618+05:30अजीब बात है न अपने जन्मदिन के इतना नजदीक कोई इतना ...अजीब बात है न अपने जन्मदिन के इतना नजदीक कोई इतना इमोशनल कैसे हो जाता है ....<br />ख़त में कई जगह ब्रेक है....लगा जैसे लिखने वाले ने कुछ लिख कर फिर मिटा दिया है....फिर आगे बढा....फिर कुछ लिखा ओर मिटा दिया.......ख़त भेजते वक़्त दो बार रुका..ओर आखिरी में कुछ लेने फिर पेन से काट दी......डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6027169361733927297.post-38717821476434906752011-01-26T12:36:07.150+05:302011-01-26T12:36:07.150+05:30मिसफिट .. कहीं यह शब्द ही तो मिसफिट नहीं..मिसफिट .. कहीं यह शब्द ही तो मिसफिट नहीं..Manoj Khttps://www.blogger.com/profile/06707542140412834778noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6027169361733927297.post-6293997560342755192011-01-26T10:39:26.513+05:302011-01-26T10:39:26.513+05:30Us dard ko baandhne ki koshish me ho jo tumhe lie ...Us dard ko baandhne ki koshish me ho jo tumhe lie beh raha h... Magar aapki lekhni ki koi koshish na naakam thi aur na h... :)monalihttps://www.blogger.com/profile/00644599427657644560noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6027169361733927297.post-77372589479644649422011-01-26T10:14:46.132+05:302011-01-26T10:14:46.132+05:30मेरे दोस्त लोग जानते हैं कि मैं गद्य पढ़ने में कमज...मेरे दोस्त लोग जानते हैं कि मैं गद्य पढ़ने में कमजोर आदमी हूँ, पर इस पद्यात्मक गद्य को पढ़ना रुचिकर लगा| डिंपल जी बधाई|www.navincchaturvedi.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6027169361733927297.post-38452536624334052362011-01-26T01:29:09.178+05:302011-01-26T01:29:09.178+05:30तारों को बाँध लेना इतना आसान नही होता..ना ही बारिश...तारों को बाँध लेना इतना आसान नही होता..ना ही बारिशों को थाम कर रख पाना..रेस्तराँ का नीला अँधेरापन न जाने कितनी खाली टेबल-चेयर्स का गवाह होता है..जो कभी गुलज़ार रहती थीं..आवाजें तब भी गूँजती रहती हैं देर तलक..उस गली से जितनी बार गुजरो..उन आवाजों का लम्स महसूस किया जा सकता है..मगर अकेलेपन की यह खुसूसियत है कि हर रिक्त-स्थान के वापस भरे जाने की गुंजाइश भी बाकी रहती है..जिंदगी वक्त के तमाम पिजनहोल्स के संग अपनी ’फ़िटनेस’ खुद ही तलाश लेती है..सो वक्त का हिसाब-किताब रखने से ज्यादा जरूरी जिंदगी का हिसाब रखना है..और जब गले मे कोई दर्द अटका हो तो पिनक-पिनक के भी रो लेना चाहिये! :-)<br />पोस्ट अच्छी और हृदयस्पर्शी होने के बावजूद फ़्लो बिखरता सा लगता है बीच बीच मे..और कांटीन्यूटी टूटती सी लगती है..जैसे कई चित्रों को कोलाज मे एक-दूसरे पर चेप दिया हो..अधूरापन बाकी रहता है पोस्ट मे..मगर फिर अधूरापन तो जिंदगी मे भी बाकी रहता है!!अपूर्वhttps://www.blogger.com/profile/11519174512849236570noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6027169361733927297.post-6480330985879254942011-01-26T00:42:03.617+05:302011-01-26T00:42:03.617+05:30हमने सनम को खत लिखा !
खत मे लिखा ............ !
अद...हमने सनम को खत लिखा !<br />खत मे लिखा ............ !<br />अद्भुत !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!सुशीला पुरीhttps://www.blogger.com/profile/18122925656609079793noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6027169361733927297.post-11633835882535312812011-01-25T23:35:35.890+05:302011-01-25T23:35:35.890+05:30यही दुनिया है तो फ़िर ऎसी ये दुनिया क्यों है...
न...यही दुनिया है तो फ़िर ऎसी ये दुनिया क्यों है...<br /><br />नीले रंग में लिखी ये डायरी जिसमें तुम्हारी-उसकी खुशबु है.. पंक्तियाँ जैसे कागज के कोनो में जाकर नहीं रहना चाहतीं वो बस बीच में सिमट जाना चाहती हैं.. और इनके बीच में रहने से किनारे जो थोडे अधूरे रह गये हैं उनसे कुछ रिसता है..<br /><br />बहुत बढिया और ’फ़िट’ लिखा है दोस्त.. :-)Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय)https://www.blogger.com/profile/01559824889850765136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6027169361733927297.post-47029896927549590052011-01-25T23:27:10.827+05:302011-01-25T23:27:10.827+05:30दर्पण के फेस बुक के स्टेटस पर जब ये पढ़ा , ये बता...दर्पण के फेस बुक के स्टेटस पर जब ये पढ़ा , ये बताना कि क्या सच में हवा में आवाज़े कैद हो जाती है ? तो ऐसा लगा अब इसे नहीं पढूंगा , फिर कोई जानलेवा या फिर चमत्कृत कर देने वाला वाकया गढा होगा ! जब चटाका लगाया तो फिर यहाँ पहुँच गया , सोचता हूँ अब की ये स्टाइल तो दर्पण के लिए संयोजित किया गया था गुलज़ार के बाद ! मगर अब तो कोई और भी अलग सा तेवर दिखा रहा है ! वाकई सराहनीय बेहद उम्दा बधाई !<br /><br />अर्श"अर्श"https://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6027169361733927297.post-81729672292812660362011-01-25T22:22:04.323+05:302011-01-25T22:22:04.323+05:30पढ़ा तो सोचने लगा कि ये खत किसने किसको लिखा? नायक न...पढ़ा तो सोचने लगा कि ये खत किसने किसको लिखा? नायक ने नायिका को या नायिका ने नायक को...? क्योंकि कुछ टिप्पणियाँ बस टिप्पणियाँ <b>ही</b> होती हैं, तो तनिक लिबर्टि लेना चाह रहा हूँ वोडाफोन वाली से :-) कि कोई भटकता न फिरे रेस्तरां-दर-रेस्तरां उसी नीले अंधेरे की तलाश में...कि ये खत बस यूं ही लिखा रखा रहे और प्रेषित न हो...कि टिप्पणियां कभी-कभार बस टिप्पणियां ही रहें।<br /><br />बड़े दिनों बाद पढ़ने आया था तुम्हें। अपूर्व की कविता के बाद एक कविता की तलाश में फिरता हुआ, मालूम न था नीले खत से टकरा जाऊंगा।गौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6027169361733927297.post-10994032120446545162011-01-25T19:34:26.690+05:302011-01-25T19:34:26.690+05:30मन की सतह पर रेंगती ....पीड़ा....जो सुस्त-सुस्त बहत...मन की सतह पर रेंगती ....पीड़ा....जो सुस्त-सुस्त बहती हैअनिल कान्तhttps://www.blogger.com/profile/12193317881098358725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6027169361733927297.post-22902704646687802352011-01-25T14:19:28.811+05:302011-01-25T14:19:28.811+05:30जैसे मै मिसफिट हूँ दुनिया मे।
-- very touching.....जैसे मै मिसफिट हूँ दुनिया मे।<br />-- very touching...<br /> aapka hamare blog par aana hamare liye blissful hoga, whn hav time...plzz.meemaanshahttps://www.blogger.com/profile/01448224110676809874noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6027169361733927297.post-40405200721859495692011-01-25T13:15:51.183+05:302011-01-25T13:15:51.183+05:30कोई नहीं इस दुनिया में मिसफिट रहने वाली तुम अकेली ...कोई नहीं इस दुनिया में मिसफिट रहने वाली तुम अकेली नहीं .....हम भी हैं मिसफिट. लेकिन एक कंफ्यूजन है ....".मैं दुनिया में मिसफिट हूँ या दुनिया मुझमे "प्रियाhttps://www.blogger.com/profile/04663779807108466146noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6027169361733927297.post-37383770945746125852011-01-25T12:50:45.905+05:302011-01-25T12:50:45.905+05:30महसूस कर रहीहूँ और उसी मे डूब उतर रही हूँ ……………कुछ...महसूस कर रहीहूँ और उसी मे डूब उतर रही हूँ ……………कुछ अहसास लफ़्ज़ो से परे होते हैं और दर्द उनका शरीके हयात होता है…………और कुछ कहने के लिये शब्द नही है…………बस वो भीना भीना अह्सास है जिसे शब्द नही दिया जा सकता।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6027169361733927297.post-9069567544228060192011-01-25T11:06:39.114+05:302011-01-25T11:06:39.114+05:30"निर्मम घड़ी छोटे से क्षण के लिए भी चुप नही क..."निर्मम घड़ी छोटे से क्षण के लिए भी चुप नही करती.जैसे तुम्हारा ख्याल.....यूँ अकेलेपन का भी एक स्वाद होता है " <br /><br />क्या मह्सूस किया इस से गुज़र कर ये बताने का सामर्थ्य नहीं है शब्दों में…। I was spell-bound. लेखन में सब कुछ कहते हुए भी कुछ अनकहा छोड़ देना एक बड़ी कला है… आपके हर हर्फ़ में एक अनकही टीस सी मह्सूस हुई और यही पाठक को देर तक जोड़ के रखती है खुद से…। बहुत बधाई!Ravi Shankarhttps://www.blogger.com/profile/08004933931335889834noreply@blogger.com