सोमवार, 1 मार्च 2010

लिख लिख के ,
मिटा देना चाहती हूँ..

कैनवास  पे,
सभी रंगों को गडमड कर दूँ.

पानी में छपाक छपाक,
छींटे उडा के चलूँ.

ताश की बाज़ी,
बारी बारी,
खुद ही खेलते हुए हार जाऊ.

अमावस पे,
चाँद को न आने के उलाहने दूँ..

साज़ को सज़ा दे दूँ,
ख़ामोशी की..

पूरब सूरज के बिना रहे,
फूल मना कर दे खिलने से..

जाते हुए दिन को,
सुबक सुबक के,
पीछे से आवाज़े दूँ..
के रुक जाओ..

..लेकिन..
बिना आंसू पोंछे,
सूरज की आग में,
 ख्वाहिशो की,
आहुति दे दूँ..

मैं ये सब,
बासबब,
बाइरादा ,
पर बेवजह चाहती हूँ..

31 टिप्‍पणियां:

  1. बिना आंसू पोंछे,
    सूरज की आग में,
    ख्वाहिशो की,
    आहुति दे दूँ..
    हाँ कभी कभी बेवजह भी कुछ करने को जी चाहता है

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  2. होली की हार्दिक शुभकामनाए इस आशा के साथ की ये होली सभी के जीवन में
    ख़ुशियों के ढेर सरे रंग भर दे ....!!

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  3. आपके लेखन ने इसे जानदार और शानदार बना दिया है....

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  4. बहुत बढ़िया!


    ये रंग भरा त्यौहार, चलो हम होली खेलें
    प्रीत की बहे बयार, चलो हम होली खेलें.
    पाले जितने द्वेष, चलो उनको बिसरा दें,
    खुशी की हो बौछार,चलो हम होली खेलें.


    आप एवं आपके परिवार को होली मुबारक.

    -समीर लाल ’समीर’

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  5. ये दुनियां तमाम हुनरमंदों और दुनियादार लोगों से भरी पड़ी है अटी पड़ी है.आयें थोडा बेसबब की चाह करें, कुछ अराजक हो जाएँ.

    होली की शुभकामनाएं.

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  6. अरे वाह, शायद पहली बार आपके ब्लॉग पर आयी, बड़ी सुंदर कविता है। सूरज की आग में ख़्वाहिशों की आहूति...ख़ास ख़ूबसूरत

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  7. अच्छा लिखते हो
    लेकिन मत बहको
    रात रानियों के तरह महको
    कोकिल हो कुछ गाओ
    जग जीवन महकाओ
    शब्द साधना है
    यूं मत बिखरो
    दुनिया के लिए
    खुद को दहकाओ
    आओ मेरे साथ
    एक बार फिर
    जिंदाबाद मोहब्बत है
    गाओ ,गाते जाओ


    रंग लेकर के आई है तुम्हारे द्वार पर टोली
    उमंगें ले हवाओं में खड़ी है सामने होली

    निकलो बाहं फैलाये अंक में प्रीत को भर लो
    हारने दिल खड़े है हम जीत को आज तुम वर लो
    मधुर उल्लास की थिरकन में आके शामिल हो जाओ
    लिए शुभ कामना आयी है देखो द्वार पर होली

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  8. कैनवस के बचे सारे रंगों के साथ बासबब, बाइरादा, बावजह आपको होली की ढेर सारी शुभकामनाएँ :-)

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  9. Very well written , I hope I was good with ideas and words as you are.Your poems reflect deep insight into human nature. However not everyone has the courage to bring forth those hiddeen, unreasonable desires which have no explanations. Happy Holi, I wish you happiness all the way in your life.Keep writing, 'cause I always look forward to read your poems. Sometimes I comment , sometimes I don't but I always love your work.

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  10. "उर्दू के शब्दों से कविता गति और लयमय हो गई है, बढ़िया....."
    प्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com

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  11. कविताएं पढ़ते हुए लगता है कि आपने ज़िन्दगी के छोटे छोटे पल किस गहराई के साथ जीये हैं. पंक्तियाँ सजीव दिखाई देती है. हर बात से कोई नयी बात निकला करती है. लम्बी चौड़ी बातें सार्थक हों ये जरूरी तो नहीं मगर कुछ पंक्तियाँ बखूबी कहती है कि बासबब, बाइरादा होते हुए भी बहुत बार कुछ बेवजह क्यों हो जाया करता है.

    और ये क्या पता ठिकाना बदल लिया है आपने ? कई गलियों से घूम के आना पड़ा.

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  12. कुछ अरमान जब तन्हा हो
    निकल पडते है
    खानाबदोशी इरादे से
    तो वह जाते हुये दिन को पुकारते है
    बेवजह
    हंस लेते है और रो लेतेहै
    किसी के नाम को पुकारते हुये
    तन्हाईयो मे !

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  13. कविता बहुत अच्छी बन पड़ी है डिम्पल, सारे ख्याल भी चुने हुए हैं और सभी फुर्सत से किये भी जा सकते हैं... इस गुलदस्ते में सारे फूल छांट कर लगाये हैं आपने.

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  14. ओर ये बेवजह ........कम्बखत कितना जरूरी है जिंदगी वास्ते .......

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  15. बहुत ख़ूब। आगे कुछ समझ ही नहीं पढ़ रहा था कि क्या लिखूं। सच में बहुत ही ख़ूब।

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  16. kya khub likha hai aapne I like your blog

    this is the my blog = www.susheelkumarbhardwaj.blogspot.com

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  17. ये कविता मुझे मनोवैज्ञानिकता के एक सरल अध्याय से निकाल कर ला रही है...मैं सोच रहा हूँ कि इस कविता के सामने आने का कारण कितना महत्वपूर्ण हो सकता है...बस जिसका डर था वही हुआ...शब्दों में बात आई और धुंधली पड़ गई...ऐसा ही कुछ जैसे बच्चे कैनवास पर..गोल चेहरा,चौकोर कान,बैंगनी बाल, या ऐसा ही कुछ भी बिना व्याकरण को छेड़े बना देते हैं...और उनके आगे,, गोगां,मतीसी,ब्राक,गॉग और विन्ची की मोनालिसा भी फीकी लगती है..ये सब बिना किसी वजह के होता है...जैसे कि कहा

    मैं ये सब,
    बासबब,
    बाइरादा ,
    पर बेवजह चाहती हूँ..

    रचना की दृष्टि से नहीं, बचकानी ख्वाहिशों की दृष्टि से इसे देखा है..और पसंद भी आई...

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  18. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  19. अमावस पे,
    चाँद को न आने के उलाहने दूँ..
    और पूर्णिमा पे
    खुल कर आने के

    HAI NA??

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  20. bahut hi pyaari kavita

    http://liberalflorence.blogspot.com/
    http://sparkledaroma.blogspot.com/

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  21. वाह वाह क्या बात है....तोड़ डालो सबकुछ,
    नदी से कह दो बहो उल्टा,
    तितली से कह दो अपने रंग छोड़ दे,
    भोरों से कह दो कलियों पर मडराना छोड़ दे
    चांद से कह दो डुब जाए....
    और क्या....
    सब कुछ कर दो उल्टा-पुल्टा....वाह वाह मजा आ गया....

    क्या बात है

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  22. कविता लाजवाब है, इस पर मेरी टिप्पणी कुछ इस तरह है
    कट रही जिंदगी, यूं रुख बदलकर
    कभी मुस्कुराकर तो कभी आंसू बहा कर.

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  23. ख्याल बहुत ही अनछुआ है आपका .एकदम जुदा जुदा सा लेकिन खूबसूरत आखिरी पंक्ति बिलकुल समझ नहीं पा रहा हूँ शायद आपके लिखने और मेरे पढने के भाव में अंतर है

    बासबब,
    बाइरादा ,
    पर चाहती हूँ..

    जो बासबब है वो बेवजह कैसे हो सकता है दोनों का मतलब तो एक ही है

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  24. hamare bolne ke liye kuch bacha hai kya...SHSSSHSSSSSSS kuch nahi kahenge ham.......wo Amrita Ji ne likha hai na " Khamosh tenu takti rawangi"

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  25. Hello again,

    Where do get all these thoughts from??
    How do you draw such realistic picture using your deep words??

    Simply loved it!
    Regards,
    Dimple

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...क्यूंकि कुछ टिप्पणियाँ बस 'टिप्पणियाँ' नहीं होती.